(१) बच्चों के प्रति
दिल से प्रणाम करो, पढ़-लिख नाम करो,
हाथ आया काम करो, यही देश प्रेम है,
अपना भले को मानो, दुष्ट ही पराया जानो,
सबका भला ही ठानो, यही देश प्रेम है |
सदा सद-बुद्धि धरो, बुद्धि से ही युद्ध करो,
हवा-पानी शुद्ध करो, यही देश प्रेम है |
जिम्मेदारी ये हमारी, खुश रहें नर-नारी,
बचे न कोई बीमारी, यही देश प्रेम है ||
(२) समझदारी
आर्कीटेक्ट जोरदार, ठेकेदार दमदार,
अच्छे रखें किरदार, जिनमें ईमान है |
थोड़ा सा ही अंतर है, लगता है माल वही,
अच्छी नई तकनीक, भवन की जान है |
मत घबराएं कभी, बहका कोई न पाए,
वाल बांधें नौ-नौ इंची, यही फरमान है |
माल अच्छा ही लगाएं, मजबूत देश बने,
भवन भूकंपरोधी, तो ही कल्याण है ||
(३) ऐतिहासिक तथ्य
'सिन्धु' से ही 'हिन्दू' बना, कहते जिसे हैं जाति,
'हिन्दू' सुविचारधारा जाति नहीं, शान है |
सच्चे सारे आदि-ग्रन्थ, जिनमें है रामसेतु,
सच्चे ही हैं धर्मग्रन्थ, सामने प्रमाण है |
बेचो नहीं रामसेतु, इसमें जो थोरियम है,
कहते हैं साइंटिस्ट, कहता विज्ञान है |
उठा यदि पूरा देश, भग्न होंगें तेरे केश,
दिल में रहेगा क्लेश, खुद ज्ञानवान है ||
--अम्बरीष श्रीवास्तव
Comment
स्वागत है आदरणीय अग्रज उमाशंकर जी ! तीनों घनाक्षारियों के भावों की दिल खोल कर सराहना करने के लिए आपके प्रति हार्दिक आभार आदरणीय ! सादर
प्रिय अम्बरीश जी तीनो रचना अपने अपने जगह बिलकुल सही है
सिन्धु' से ही 'हिन्दू' बना, कहते जिसे हैं जाति,
'हिन्दू' सुविचारधारा जाति नहीं, शान है | आपका सौ प्रतिशत समर्थन है
समझदारी
आर्कीटेक्ट जोरदार, ठेकेदार दमदार,
अच्छे रखें किरदार, जिनमें ईमान है | जहां ना पहुंचे रवि वहाँ पहुंचे कवि.... इस क्षेत्र में आपने रचना धर्मिता के द्वारा अपने उद्देश्य पूर्ण सुविचार को कविता के माध्यम से प्रकट किया...... आपकी सकारात्मक सोच को सादर अभिवादन
मजबूत देश बने, आपके देश प्रेम की कामना को सादर अभिवादन
बच्चों के प्रति....बहुत ही शिक्षा प्रद कविता है.....भलाई जिसका मूल तत्व है . ...यही देश प्रेम है
बच्चों के लिए आपके इस रचना पर सादर आभार
आदरणीय मित्रों ! यू ए ई से प्रकाशित ई पत्रिका अनुभूति / अभिव्यक्ति की संपादक आदरेया पूर्णिमा वर्मन ने इन तीनों घनाक्षरियों को 'अनुभूति' में आज ही प्रकाशित किया है !
धन्यवाद भाई संजय कुमार सिंह जी आपका स्वागत है ...
स्वागत है आदरणीय सौरभ जी ! अपने विशिष्ट अंदाज़ में सराहना के लिये कोटि-कोटि आभार मित्रवर ! तीसरे छंद के अंत में उलझन जैसा कुछ भी तो नहीं है आदरणीय .....सब कुछ तो आईने की तरह स्पष्ट है ....सादर
और अधिक स्पष्ट करने के लिए आप इसे ऐसे भी पढ़ सकते हैं
'उठ खड़ा यदि देश,एक भी न होगा केश,
दिल में रहेगा क्लेश, खुद विद्वान है ||'
स्वागत है आदरणीय बागी जी ! इन घनाक्षारियों को पसंद करने के लिए आपके प्रति हार्दिक आभार ! सादर ....
धन्यवाद भी कुमार गौरव जी !
Rachna achchi hai, sandesh deti rachna, rachnakar ko badhai.
तीन छंद, तीन संदेश. वाह !
देश प्रेम पर छंद अच्छा किया बच्चों को अर्पित किया आदरणीय. उन कोमल मृतिका को ही अब साँचने का भगीरथ प्रयास परिणामी होगा. अधिकांश वयस्कों की कारगुजारियों और उनके हठ व अहं को देख कर तो सद्-पुरुष ही नहीं उनकी आत्मा तक रोती है. राक्षस क्या ऐसे ही न होते होंगे जिनका संहार करने अक्सर देव अवतार लेने को बाध्य होते रहे हैं ?!
दूसरे कवित्त में आपने अपने डोमेन के जॉरगन में सभी को संदेश दिया है. बहुत सुन्दरता से भाव अभिव्यक्त हुए हैं.
तीसरे छंद का प्रारम्भ सनातन तथ्य को साझा करता हुआ उठा है. कितु इस छंद के आखिरी पद में मैं थोड़ा उलझ गया.
बहरहाल, इस संदेशपरक अभिव्यक्ति के लिये आपको सादर बधाइयाँ.
अम्बरीश भाई, तीनो घनाक्षारियां बहुत ही अच्छी बनी हैं, समाज को एक सन्देश देने का प्रयास आपकी रचनाओं में सदैव ही परिलक्षित होता है, कथ्य और शिल्प वाह वाह, बहुत बहुत बधाई आदरणीय इन कृतियों के लिए |
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