बुजुर्गों के पाँव तले जन्नत का आभास होता है
सभी रिश्तों में उनसे रिश्ता बहुत खास होता है
जिस घर में मात कौशल्या दशरथ तात नहीं होते
वो अपना घर नहीं होता वहां वनवास होता है
क्यूँ भूलते हम अपना जीवन उनके ही दम से है
उनके बिना तो घर का आँगन भी उदास होता है
तमस के साए पनपते हैं वहां उनके अनादर से
उनकी ख़ुशी से घर के हर कोने में उजास होता
जहां वृद्धों का हो निरादर छत वो सुरक्षित है कहाँ
उनकी चरण वंदना में देवों का वास होता है
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Comment
कपूर रस्तोगी जी बहुत बहुत हार्दिक आभार आपका
हार्दिक आभार प्रिय संदीप कुमार पटेल जी जिसने इस सच्चाई को समझ लिया वहां वृद्धाश्रम जैसी संस्थाओं की जरूरत नहीं होगी हमारी आधुनिक पीढ़ी इस सच्चाई से भटक रही है इसी लिए ये भाव रचना के रूप में उभरे
हार्दिक आभार रेखा जी आपको रचना पसंद आई
बहुत सुन्दर बात कही है आदरणीया आपने चाँद पंक्तियों में सारतत्व कह डाला है इस जीवन का जिससे लोग जानबूझ कर दूर होते जा रहे हैं
आत्मसुख की खोज में भटक रहे हैं सर्वसुख की परिपाटी को भुला चुके हैं
साधुवाद इस रचना के लिए आपको
स्नेह भरा ये आशीष यूँ ही लुटाते रहिये
जहां वृद्धों का हो निरादर छत वो सुरक्षित है कहाँ
उनकी चरण वंदना में देवों का वास होता है ,बुजुर्गों को समर्पित इस सुंदर रचना पर बहुत बहुत बधाई आदरणीय राजेश जी
कुमार गौरव अजीतेंदु जी रचना पसंद आई हार्दिक आभार
प्रिय प्राची जी हार्दिक आभार रचना को सराहने हेतु
बुजुगों को समर्पित इस रचना हेतु हार्दिक साधुवाद आदरणीया राजेश कुमारी जी.
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