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एक कवि बीबी से अकड़ा

एक ‘कवि’ जब खिन्न हुआ तो  बीबी से ‘वो’ अकड़ा

कमर कसा ‘बीबी’ ने भी शुरू हुआ था झगडा

कितनी मेहनत मै करता हूँ दिन भर ‘चौपाये’ सा 

करूँ  कमाई सुनूं बॉस की रोता-गाता-आता

सब्जी का थैला लटकाए आटे में रंग आता

कभी कोयला लकड़ी लादूँ हुआ ‘कोयला’ आता

दिन भर सोती भरे ऊर्जा लड़ने को दम आता ?

पंखा झल दो चाय बनाओ सिर थोडा सहलाओ

मीठी-मीठी बातें करके दिल हल्का कर जाओ

काम से फटता है दिमाग रे ! चोरों की हैं टेंशन

चोर-चोर मौसेरे भाई मुझसे सबसे अनबन

कितना ही अच्छा करता मै बॉस है आँख दिखाता

वही गधों को गले मिला के दारु बहुत पिलाता

उसके बॉस भी डरते उससे बड़ा यूनियन बाज

भोली- भाली  चिड़ियाँ चूँ ना करती- खाने दौड़े बाज

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बात अधूरी बीबी दौड़ी लिए बेलना हाथ

हे ! कवि तू अपनी ही गाये कौन सुने तेरी बात

सुबह पांच उठती सब करती साफ़ -सफाई घर की

तन की -मन की, पूजा करती घन-घन बजती घंटी

दौड़ किचेन में उसे नहाना कपड़ा  भी पहनाती

चोटी  करती ढूंढ के मोजा, बैज, रूमाल भी लाती

प्यार से पप्पी ले ‘लाली’ को वहां तलक पहुंचाती

फिर तुम्हरे पीछे हे सजना बच्चों जैसा हाल

इतने भोले बड़े भुलक्कड होती मै बेहाल

रंग चोंग के सजा बजा के तुम को रोज पठाती

लुढके रोते से जब आते हो ख़ुशी मेरी सब जाती

दिन भर तो मै दौड़ थकी हूँ कुछ रोमांस तो कर लो

आओ प्रेम से गले लगाओ आलिंगन में भर लो !

हँसे प्यार से कली फूल ज्यों खिल-खिल-खिल खिल हंस लें

ननद-सास बहु-बात तंग मै दिल कुछ हल्का कर लें

छोटे देवर छोटे बच्चे सास ससुर सब काम

आफिस मेरा तुमसे बढ़कर यहाँ सभी मेरे बॉस

आफिस में ही ना टेन्शन है घर में बहुत है टेन्शन

कभी ख़ुशी तो कुढ़ -कुढ़ जीना यहाँ भी बड़ी है अनबन

दस-दस घंटे रात में भी तुम- हो कविता के पीछे

हाथ दर्द है कमर दर्द है आँख लाल हो मींचे

ये सौतन है ' ब्लागिंग' मेरी समय मेरा है खाती

इंटरनेट मोडेम मित्रों से चिढ़ है मुझको आती

मानीटर ये बीबी से बढ़ प्यार है तुमको आता

लगा ठहाके हंस मुस्काते रंक ज्यों कंचन पाता

लौंगा  वीरा और इलायची वो सुहाग की रात

हे प्रभु इनको याद दिला दे करती मै फरियाद

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कवि का माथा ठनका बोला मै सौ 'कविता' पा-लूं

'कविता' एक को तुम पाली हो, सुनता ही बस घूमूं

तुम थक जाती मै ना थकता, कविता मुझको प्यारी

पालो तुम भी दस-दस कविता तो अपनी हो यारी

एक कवि -लेखक  ही तो है- पूजा करता- ‘सुवरन’ पाछे भागे

हीरा मोती और जवाहर-ठोकर मारे-प्रीत के आगे नाचे-हारे

दो टुकड़े -कागज पाती कुछ -वाह वाह सुनने को मरता

प्रीत ‘मीत’ को गले लगाए दर्पण ‘निज’ को आँका करता

खून पसीना अपना लाता मन मष्तिष्क लगाता

टेंशन-वेंशन सब भूले मै, सोलह श्रृंगार सजाता

सहलाता कोमल कर मन से, ढांचा बहुत बनाता

मै सुनार -लो-‘हार’, कभी मै प्रजापति बन जाता

आत्म और परमात्म मिलन से हंस गद-गद हो जाता

हे री ! प्यारी मधु तू मेरी मै मिठास भर जाता

सात जनम तुझको मै पाऊँ सुघड़ सुहानी तू है

साँस  हमारी जीवन साथी जीवन लक्ष्मी तू है

तब बीबी भी भावुक हो झर झर नैनन नीर बहाई

गले में वो बाला सी लटकी कुछ फिर बोल न पायी

दो जाँ एक हुए थे पल में, धडकन हो गयी एक

हे ! प्रभु सब को प्यार दो ऐसा, सब बन जाएँ नेक

'कविता' को भी प्यार मिले, भरपूर सजी वो घूमे

सत्य सदा हो गले लगाये, हर दिल में वो झूले

जैसे कविता एक अकेली कितने दिल को छू हरषाए

आओ हम भी दिल हर बस लें क्या ले आये क्या ले जाएँ ?

हम जब जाएँ भी तो 'हम' हों, 'मै' ना रहूँ अकेला

प्यारी जग की रीति यही है, दुनिया है एक ‘मेला’ !!

---------------------------------------------------------

सुरेन्द्र कुमार शुक्ल 'भ्रमर' ५

८-८-२०१२

कुल्लू यच पी ९ पूर्वाह्न

ब्लागर-प्रतापगढ़ उ.प्रदेश भारत

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Comment by SURENDRA KUMAR SHUKLA BHRAMAR on August 14, 2012 at 11:16pm
प्रिय वाहिद काशीवासी भाई ..रचना आम जिन्दगी के पशोपेश , तकरार और झगडे को दिखा सकी और इस में एक नयी कला नया रूप आप को झलका सुन ख़ुशी हुयी दाद मिली आप से मन अभिभूत हुआ 
सुरेन्द्र कुमार शुक्ल भ्रमर ५ 
Comment by SURENDRA KUMAR SHUKLA BHRAMAR on August 14, 2012 at 11:14pm
आदरणीय मिश्र जी बहुत बहुत आभार आप का प्रोत्साहन हेतु ..रचना आम जिन्दगी की परेशानियों और तकरार के कारणों को दर्शा सकी और अंत में एक हो जाने के सूत्र में समा गयी ...ये आप को अच्छा लगा सुन ख़ुशी हुयी 
सुरेन्द्र कुमार शुक्ल भ्रमर ५ 
Comment by संदीप द्विवेदी 'वाहिद काशीवासी' on August 14, 2012 at 7:22pm
आपकी कविता का आज एक नया रूप आस्वादन को मिला! धन्य हों भ्रमर जी!
Comment by UMASHANKER MISHRA on August 13, 2012 at 11:05pm

घर ग्रहस्थी की आम समस्या को आपने अपने अंदाज में  कविता में प्रस्तुत किया

बहुत ही व्यंग और हास्य पूर्ण है कई जगह आपके द्वारा पति पत्नी के बीच के तकरार को 

बहुत ही अनोखे अंदाज में चित्रित  किया है आदरणीय भ्रमर जी इस सुन्दर रचना के लिए हार्दिक बधाई

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