मेरे दिलबर का जो भी ढब है.. ग़ज़ब है.
रूठ जाने का जो सबब है.. ग़ज़ब है.
ज़िंदगी से गिला बहुत है हमे, पर,
साँस लेने की जो तलब है.. ग़ज़ब है…
आम इंसान हूँ मै,तुम सा ..तुम्ही सा,
लोग कहते हैं तू अजब है…ग़ज़ब है.
वो है संग-दिल, है बेरहम, है सितमगर,
उसपे भी लखनवी अदब है.. ग़ज़ब है.
वो जिसे आज तक किसी ने न देखा,
ज़र्रे-ज़र्रे मे उसकी छब है …ग़ज़ब है.
हमने पूछा था,”चाँद, कब है अमावस?”
चाँद खुद पूछ बैठा, कब है??..ग़ज़ब…
Added by rajneesh sachan on January 4, 2013 at 3:04pm — 8 Comments
अकेल शेरनी
देख बहे अश्कों की धारा , जब चली गुड़िया हमारी !
दूर अकेल रहेगी कैसे , आँखों की पुतली हमारी !
माँ बाप को घर में छोड़कर , सपने ले चली दुलारी !
यों मिलती रही कामयाबी , खिलती जाती फुलवारी !
जब कामयाब हो कर निकली , बैरी राहों में आये !
देख कर अकेल शेरनी को , राहों में जाल बिछाए !
तडपती रही शिकार बनकर , बेबस पर रहम न आये !
वर्मा गयी वो इस दुनिया से , कैसे आंसू ना आये !
श्याम नारायण वर्मा
Added by Shyam Narain Verma on January 4, 2013 at 2:31pm — 2 Comments
तेरी आँखों के सिवा और नज़ारा क्या है
तुझमे मिलती है खुशी और सहारा क्या है
तेरी यादों की कोई रुत तो नहीं होती, गो
दिल तड़प तो रहा है ये इशारा क्या है
गम हैं तो और मुहब्बत के सिवा किस्मत में
और गम में किसी हो मौज इज़ारा क्या है
चाँद निकले है शब-ए-हिज़्र मगर कह दे तू
माह-ए-दह्र में कुछ भी यूँ हमारा क्या है
दिल जला है यूँ बहुत, खाक सिवा सर पे तू
तेरी यादों के सिवा और ये हारा क्या है !!
नोट:- मैंने ये गज़ल ३०मि में लिखी है.…
Added by Raj Tomar on January 4, 2013 at 2:00pm — 2 Comments
आधा सुन के खूब सुनाये
अधजल गगरी छलकत जाए
धैर्य नहीं इक पल भी रखना
चाहे मूरख सब कुछ चखना
क्या है मीठा क्या है खारा
नहीं भा रहा उसे परखना
अंतर में रख घोर अन्धेरा
बाहर बाहर दीप जलाए....................
सुने नहीं वो बात बड़ों की
आंके बस औकात बड़ों की
दिन को देख के नहीं सोचता
गुजरे कैसे रात बड़ों की
बिन अनुभव के बड़ा न कोई
कौन भला इसको समझाए ........................
जो चाहूँ मैं अभी बनालूं
कच्ची माटी ऐसे…
Added by SANDEEP KUMAR PATEL on January 3, 2013 at 3:41pm — 9 Comments
तुम ने कहा,
तुम जी लोगी मेरे साथ हर हाल में,
मुझे शायद इसके लिये भी,
शुक्रिया अदा करना चाहिये तुम्हारा ......
पर क्या तुम जानती हो,
इस कमबख्त दुनियां में
जहां कोई किसी का सगा नहीं,
हालात कैसे हो सकते है....
बोलो जी पाओगी,
जब दुनियां भर के थपेड़े,
बिना दरबाजा खटखटाये,
हमारे कमरे में दाखिल होंगे......
बोलो जी पाओगी,
जब मेरी शायरी में,
तिलमिलाएगी भूख,
नीम से कडबे…
ContinueAdded by अमि तेष on January 3, 2013 at 2:58pm — 13 Comments
तुम लड़की जात हो , तुम्हें अपने दायरे में रहना चाहिए, तुम अनवर की तरह नहीं हो वो तो लड़का है , उसका कुछ नहीं बिगड़ेगा , लेकिन तुम्हारे साथ अगर कुछ उंच नीच हो गया तो हम सबका जीना मुहाल हो जाएगा,,,,ये सीख हमेशा गाँठ बाँध कर रखना.
रोज ही हिदायतों का पुलिंदा शबनम को बाँध कर थमाया जाता था, अब्बू तो दुबई चले गए दो साल पहले , बचे दादी, अम्मी और छोटा भाई अनवर. इस अनवर में छोटे…
ContinueAdded by SUMAN MISHRA on January 3, 2013 at 2:30pm — 3 Comments
Added by राजेश 'मृदु' on January 3, 2013 at 2:22pm — 12 Comments
Added by भावना तिवारी on January 3, 2013 at 1:00pm — 10 Comments
जीने के आसार ले गए,
जीवन का आधार ले गए,
भूखों की पतवार ले गए,
लूटपाट घरबार ले गए,
छीनछान व्यापार ले गए,…
ContinueAdded by अरुन 'अनन्त' on January 3, 2013 at 11:59am — 14 Comments
हर अध्याय
अधूरे किस्से
कातर हर संघर्ष
प्रणय, त्याग
सब औंधे लेटे
सिहराते स्पर्श
कमजोर गवाही
देता हर दिन
झुठलाती हर शाम
आस की बडि़यां
खूब भिंगोई
पर ना आई काम
इन बेखौफ लकीरों ने सबको किया तमाम
फलक बुहारे
पूनो आई
जागा कहां अघोर
मरा-मरा
आकाश पड़ा था
हुल्लड़ करते शोर
किसकी-किसकी
नजर उतारें
विधना सबकी वाम
हिम्मत भी
क्या खाकर मांगे
निष्ठुर दे ना दाम
इन बेखौफ…
ContinueAdded by राजेश 'मृदु' on January 2, 2013 at 4:30pm — 8 Comments
भोर के पंछी
तुम ...
रहस्यमय भोर के निर्दोष पंछी
तुमसे उदित होता था मेरा आकाश,
सपने तुम्हारे चले आते थे निसंकोच,
खोल देते थे पल में मेरे मन के कपाट
और मैं ...
मैं तुम्हें सोचते-सोचते, बच्चों-सी,
नींदों में मुस्करा देती थी,
तुम्हें पा लेती थी।
पर सुनो!
सुन सकते हो क्या ... ?
मैं अब
तुम्हें पा नहीं सकती थी,
एक ही रास्ता…
Added by vijay nikore on January 2, 2013 at 2:30pm — 28 Comments
अंततः हम एकल ही थे
स्मृति में कहाँ रही सुरक्षित
जन्म लेने की अनुभूति
और ना होशो हवास में
मौत को जी पायेंगे
समस्त
कौतुहल विस्मय
अघात संताप
रणनीति कूटनीति तो
मध्य में स्थित
मध्यांतर की है
उसमे भी
जब तुमने
ज़मीन छीनकर ये कहा की
सारा आकाश तुम्हारा
मैंने पैरों का मोह त्याग दिया
और परों को उगाना सीख लिया
अब बाज़ी मेरे हाथ में थी
लेकिन हुकुम का इक्का
अब भी तुम्हारे…
ContinueAdded by Gul Sarika Thakur on January 2, 2013 at 9:33am — 12 Comments
दामिनी तुम जिंदा हो
हर औरत का हौंसला बनकर
न्याय की आवाज़ बनकर
वक्त की ज़रूरत बनकर
आस्था की पुकार बनकर
एकता की मिसाल बनकर
तुम लाखों दिलों में जिंदा हो
न्याय की उम्मीद बनकर…
ContinueAdded by नादिर ख़ान on January 1, 2013 at 10:25pm — 8 Comments
मुल्क की इस पाक माटी को मुबारक हो ये साल
संग सी वीरों की छाती को मुबारक हो ये साल
चल पडा है कारवाँ अधिकार अपने मांगने
इस बगावत करती आंधी को मुबारक हो ये साल
आग हर दिल में जला दी फूंक के डर का कफ़न
हो चली रुखसत जो बेटी को मुबारक हो ये साल…
Added by SANDEEP KUMAR PATEL on January 1, 2013 at 4:00pm — 7 Comments
हाँ हमें कुछ शर्म करना चाहिये
या हमें अब डूब मरना चाहिये
देश क्यों बदला नहीं कुछ आज तक
देश को क्यों और धरना चाहिये
दर्द ही है जख्म की संवेदना
क्यों भला इससे उभरना चाहिये
रों रही है माँ बहन औ बेटियां
जिन्दगी इनकी सवरना…
ContinueAdded by अमि तेष on January 1, 2013 at 11:47am — 12 Comments
छंद हरिगीतिका :
(चार चरण प्रत्येक में १६,१२ मात्राएँ चरणान्त में लघु-गुरु)
शुभकामना नववर्ष की सत,-संग औ सद्ज्ञान हो.
करिये कृपा माँ शारदा अब, दूर सब अज्ञान हो.
हर बालिका हो लक्ष्मी धन,-धान्य का वरदान हो.
सिरमौर हो यह देश अब हर, नारि का सम्मान हो.
सादर,
--अम्बरीष श्रीवास्तव
Added by Er. Ambarish Srivastava on January 1, 2013 at 10:00am — 28 Comments
Added by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on December 31, 2012 at 7:30pm — 13 Comments
तार-तार विश्वास, मगर जीवन चलता है.. .…
Added by Saurabh Pandey on December 31, 2012 at 7:30pm — 28 Comments
माननीय अटलबिहारी जी की एक रचना की प्रसिद्ध पंक्ति "आओ फिर से दिए जलाएं "से प्रेरित
टूटे मन के खँडहर तन में
सूने अंतर के आँगन में …
ContinueAdded by seema agrawal on December 31, 2012 at 12:30pm — 15 Comments
चाँद सितारों से लड़ना आसान नहीं
क्या होगा अब हश्र कोई अनुमान नहीं
वक़्त निभाएगा अपना दायित्व "अजय "
मेरे हांथों में अब कोई सामान नहीं................
.
जो बांटा करता है सबको जीवन रस ,
पीने को बस गरल मिला केवल उसको
जो पथ पर तेरे फूलों का बना बिछौना ,
काँटों का इक सेज मिला केवल उसको
कैसी हैं हम सन्तति , हम पूत कहा के ,
बचा सके इक जननी का सममान नहीं
वक़्त निभाएगा अपना दायित्व "अजय "
मेरे हांथों में अब कोई सामान नहीं…
Added by ajay sharma on December 31, 2012 at 12:30am — 4 Comments
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