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अश्रुओं से सींचता
हर स्वप्न मन का ,
प्रेम का प्रारब्ध
परिवर्तित विरह में ,
इन्द्र धनुषी हास
अधरों के निकट आ,
दे रहा प्रतिक्षण
प्रशिक्षण वेदना को !…
ContinuePosted on May 1, 2013 at 9:30pm — 11 Comments
Posted on February 2, 2013 at 11:30am — 16 Comments
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भावना जी,
आपका ओपन बुक ओनलाइन में आपका स्वागत है...