तेरी आँखों के सिवा और नज़ारा क्या है
तुझमे मिलती है खुशी और सहारा क्या है
तेरी यादों की कोई रुत तो नहीं होती, गो
दिल तड़प तो रहा है ये इशारा क्या है
गम हैं तो और मुहब्बत के सिवा किस्मत में
और गम में किसी हो मौज इज़ारा क्या है
चाँद निकले है शब-ए-हिज़्र मगर कह दे तू
माह-ए-दह्र में कुछ भी यूँ हमारा क्या है
दिल जला है यूँ बहुत, खाक सिवा सर पे तू
तेरी यादों के सिवा और ये हारा क्या है !!
नोट:- मैंने ये गज़ल ३०मि में लिखी है.…
Posted on January 4, 2013 at 2:00pm — 2 Comments
अहा!अब भी चाँद चमकता है
तुम अब भी प्यारी लगती हो.
यूँ अब भी प्यार भटकता है
तुम दुनिया सारी लगती हो !
वो कल के बीते ताने-बाने
तुम आज कहानी लगती हो
वो सुन्दर खाब के अफसाने
तुम जानी पहचानी लगती हो!
देखो,वो सरगम वो साज सभी
तुम मेरी निशानी लगती हो.
मुझे बीता कल सब याद अभी
तुम परियों की रानी लगती हो !! .
Posted on October 17, 2012 at 11:00pm
तेरी यादों का श्रृंगार सजा
मैं भूले गीत सुनाता हूँ.
कृन्दन-रोदन के साज बजा
जीवन रीत सजाता हूँ.
वो वल्लरियों से पल
तेरी सुध से महके ऐसे
फिर से सिंचित कर उर में
मन को फिर समझाता हूँ.
कल बारिस की झनझन में
पैजनियाँ तेरी झंकार गई
मैं उन्हीं पुराने सुर में ही
फिर से गीत सजाता हूँ.
मन पुलकित होता बेसुध मैं
कम्पित करता तार वही
उसी भँवर में बार-बार मैं
घूम-घूम कर आता हूँ.!!
Posted on October 10, 2012 at 7:22pm — 12 Comments
यूँ कभी कभी मन में उठती है तरंग
बार-बार कहता कुछ विचलित मन
मस्तिष्क पटल पर छा जाते वो साज सभी
कानों में आती गुंजन की आवाज़ कभी
दिखती है आँखों में बिजली सी चमक कहीं
लगता है खोया गया सर्वस्व यहीं !
देती है भाँवर सी फेरी वो कभी ख्यालों में मेरे
न जाने क्या पूंछा करती वो मुझसे साँझ सबेरे
बालों को लहरा के हवा आके छू जाती है मुझको
अपलक वो देखा करती पता नहीं क्यों खुद को
खिल गई कली चपला सी…
Posted on July 15, 2012 at 10:00pm — 5 Comments
आवश्यक सूचना:-
1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे
2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |
3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |
4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)
5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |
© 2024 Created by Admin. Powered by
महत्वपूर्ण लिंक्स :- ग़ज़ल की कक्षा ग़ज़ल की बातें ग़ज़ल से सम्बंधित शब्द और उनके अर्थ रदीफ़ काफ़िया बहर परिचय और मात्रा गणना बहर के भेद व तकतीअ
ओपन बुक्स ऑनलाइन डाट कॉम साहित्यकारों व पाठकों का एक साझा मंच है, इस मंच पर प्रकाशित सभी लेख, रचनाएँ और विचार उनकी निजी सम्पत्ति हैं जिससे सहमत होना ओबीओ प्रबन्धन के लिये आवश्यक नहीं है | लेखक या प्रबन्धन की अनुमति के बिना ओबीओ पर प्रकाशित सामग्रियों का किसी भी रूप में प्रयोग करना वर्जित है |
Comment Wall (2 comments)
You need to be a member of Open Books Online to add comments!
Join Open Books Online
its really great to be added , just waiting for approval ,,,,, till then i must say ..........खुशियों ने ऊँचे दामो की फिर पक्की दूकान लगायी
इक तो गाव अभावो का mai
और उपर से ये महगाई
इक नहीं जाने कितने ही सिन्धु रचे मैंने पन्नो पर
लेकिन जब जब प्यास लगी तो बूँद बूँद से ठोकर खायी
तोमर जी नमस्कार ! आपको मेरी ग़ज़ल पसंद आई और आपकी दाद मिली अच्छा लगा । आपको बहुत बहुत धन्यवाद !