For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

अब तो मेरी सांसे भी /तेरी जिद से हार गई

मेरी बिखरी सुबह ओंटकर
तुम्‍हीं खड़े थे बाट जोहकर
कभी रूठकर कभी मनाकर
भाव भंगिमा नए दिखाकर
हर फिसलन पर भीत उकेरे
तुम्‍हीं थाम उस पार गई

लिखकर पहला पत्र तुम्‍हीं को
कलम मेरी पथ हार गई

सदा सुहागन तेरी काया
जब समेटती मेरी छाया
और ठठाते हुल्‍लड़ दिन पर
दांत पीसता सूरज जी भर
तभी दमकते श्रृंग ओट से
तुम्‍हीं तो हर दुख तार गई

कर अधीन हर ताप हमारा
तुम्‍हीं बही रस धार बनी

कच्‍ची रातें ओस नहाई
खोंस कमर जब पूनो आई
एक नटखट हरकारा आया
चांद बुझा ध्रुवतारा आया
दे प्रबोध औ नीर तुम्‍हीं तो
मुझपर अग-जग वार गई

लपक उठा सारी दुश्‍वारि
तुम्‍हीं मुझे झनकार गई

मांगा तुमने कहां देह था
कलुष हीन वह तेरा नेह था
ना थी कोई अंधी गंध ही
आकुल प्रियतम मेरा द्वंद ही
गहन गुहा दुर्गम जीवन के
तुम्‍ही तो ले सब भार गई

हठी मंत्र निष्‍पंद पड़े जब
तुम्‍हीं उन्‍हें ललकार गई

मन बंजारा फिर सब हारा
डूबा फिर से कूल किनारा
काहे फिर ना दरस दिखाते
निष्‍ठुर क्‍यों ना जिया जुड़ाते
मायाजल हदमद मन सीझै
युगरूप बहुत मनुहार हुई

हे अरूप तुम्‍हें पाऊं कैसे
श्‍वांसें भी थक हार गई

Views: 692

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by राजेश 'मृदु' on January 8, 2013 at 11:07am

आप सबका हार्दिक आभार । आदरणीय सौरभ जी आपका आदेश पालन करने की कोशिश कर रहा हूं किंतु कभी-कभी आक्रोश इतना घना हो जाता है कि दुरूह बिंब आ जाते हैं उनसे किस प्रकार मुक्ति पाउं, आशा है आगे भी आपका मार्गदर्शन मिलता रहेगा, सादर

Comment by नादिर ख़ान on January 7, 2013 at 12:19am
कच्‍ची रातें ओस नहाई
खोंस कमर जब पूनो आई
एक नटखट हरकारा आया
चांद बुझा ध्रुवतारा आया
दे प्रबोध औ नीर तुम्‍हीं तो
मुझपर अग-जग वार गई

लपक उठा सारी दुश्‍वारि
तुम्‍हीं मुझे झनकार गई     सुंदर गीत ,राजेश जी बहुत खूब..

Comment by Ashok Kumar Raktale on January 5, 2013 at 8:32am

आदरणीय राजेश कुमार झा साहब सादर, बहुत सुन्दर गीत भाव लय और शब्द संचय ने मुग्ध किया है. सुन्दर प्रस्तुति पर बधाई स्वीकारें.


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on January 3, 2013 at 10:05pm

भाई राजेशजी, हार्दिक बधाई स्वीकारें. आपकी पंक्तियों में नैसर्गिक प्रवाह होता है. इस हेतु रचनाकार भी कोई विशेष प्रयास संभवतः नहीं करता. एक विन्दु पर यह कथ्य प्रस्तुतिकरण के लिहाज से रचनाकार का सबल पक्ष है, तो आगे भी इसका अन्यतम निर्वहन बना रहे, इसके प्रति मेरे जैसा पाठक आश्वस्ति भी चाहता है. साथ ही साथ, यह भी उचित होगा कि ऐसे अबाध संप्रेषण को अभिनव बिम्ब भी उपलब्ध कराये जायें. रचना की कुछ पंक्तियों में ये परिलक्षित भी हैं. किन्तु, उनकी अदम्य उपस्थिति रचना की कालजयीता के लिए धनात्मक संपुट का कारण होगी.

इस प्रयास के लिए बहुत-बहुत बधाई स्वीकार करें और ऐसे ही रचनात्मक बने रहें.

सादर


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on January 3, 2013 at 8:16pm

बहुत बहुत सुन्दर गीत, निःशब्द हूँ ...

हार्दिक बधाई स्वीकार करें आ. राजेश झा जी 

Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on January 3, 2013 at 5:59pm

भाव प्रधान रचना, सुन्दर भावों की अभिव्यक्ति के लिए हार्दिक बधाई श्री राजेश कुमार झा जी

Comment by राजेश 'मृदु' on January 3, 2013 at 5:42pm

श्रद्धेय विजय जी, बहुत आभार, कृपया स्‍नेह बनाए रखें

Comment by vijay nikore on January 3, 2013 at 5:05pm

आदरणीय राजेश जी,

अति सुन्दर!

मन बंजारा फिर सब हारा
डूबा फिर से कूल किनारा
काहे फिर ना दरस दिखाते
निष्‍ठुर क्‍यों ना जिया जुड़ाते
मायाजल हदमद मन सीझै
युगरूप बहुत मनुहार हुई

बधाई।

विजय निकोर
 

Comment by राजेश 'मृदु' on January 3, 2013 at 4:51pm

आदरणीय गंभीर सिंह जी, संदीप जी एवं सुमन जी रचना का संज्ञान लेने के लिए हार्दिक आभार

Comment by Gambhir Singh on January 3, 2013 at 4:24pm
सुंदर रचना ।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"आदरणीय ज़ैफ़ जी आदाब, ग़ज़ल पर आपकी आमद और ज़र्रा नवाज़ी का तह-ए-दिल से शुक्रिया।"
6 minutes ago
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"जनाब आज़ी तमाम साहिब आदाब, ग़ज़ल पर आपकी आमद और ज़र्रा नवाज़ी का तह-ए-दिल से शुक्रिया। भाई-चारा का…"
6 minutes ago
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"आदरणीय संजय शुक्ला जी आदाब, ग़ज़ल पर आपकी आमद और ज़र्रा नवाज़ी का तह-ए-दिल से शुक्रिया।"
12 minutes ago
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"जी, ऐसा करना मुनासिब होगा। "
27 minutes ago
Aazi Tamaam replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"अच्छी ग़ज़ल हुई आ बधाई स्वीकार करें"
30 minutes ago
Aazi Tamaam replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"अच्छी ग़ज़ल हुई आ इस्लाह भी ख़ूब हुई आ अमित जी की"
32 minutes ago
Aazi Tamaam replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"जी आ रिचा अच्छी ग़ज़ल हुई है इस्लाह के साथ अच्छा सुधार किया आपने"
34 minutes ago
DINESH KUMAR VISHWAKARMA replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"आदरणीय संजय जी सादर नमस्कार। ग़ज़ल के अच्छे प्रयास हेतु हार्दिक बधाई आपको ।"
43 minutes ago
Zaif replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"आ Sanjay Shukla जी, बहुत आभार आपका। ज़र्रा-नवाज़ी का शुक्रिया।"
59 minutes ago
Zaif replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"आ Euphonic Amit जी, बहुत आभार आपका। ज़र्रा-नवाज़ी का शुक्रिया।"
1 hour ago
Zaif replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"आ Dinesh Kumar जी, अच्छी ग़ज़ल कही आपने, बधाई है। "
1 hour ago
Zaif replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"आ Richa यादव जी, अच्छी ग़ज़ल कही आपने, बधाई। इस्लाह से बेहतर हो जाएगी ग़ज़ल। "
1 hour ago

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service