हर अध्याय
अधूरे किस्से
कातर हर संघर्ष
प्रणय, त्याग
सब औंधे लेटे
सिहराते स्पर्श
कमजोर गवाही
देता हर दिन
झुठलाती हर शाम
आस की बडि़यां
खूब भिंगोई
पर ना आई काम
इन बेखौफ लकीरों ने सबको किया तमाम
फलक बुहारे
पूनो आई
जागा कहां अघोर
मरा-मरा
आकाश पड़ा था
हुल्लड़ करते शोर
किसकी-किसकी
नजर उतारें
विधना सबकी वाम
हिम्मत भी
क्या खाकर मांगे
निष्ठुर दे ना दाम
इन बेखौफ लकीरों ने सबको किया तमाम
कुल्हड़, पत्तल
प्याले, पानी
महरिन का संगीत
शीतलपाटी
गठरी बनकर
ठमकी सारी जीत
धीरज धारा
रोज खिसकती
डबडब सारा धाम
किसको बोधें
किसको बोसें
बता तू ही घनश्याम
इन बेखौफ लकीरों ने सबको किया तमाम !
Comment
कुल्हड़, पत्तल
प्याले, पानी
महरिन का संगीत
शीतलपाटी
गठरी बनकर
ठमकी सारी जीत
धीरज धारा
रोज खिसकती
डबडब सारा धाम
किसको बोधें
किसको बोसें
बता तू ही घनश्याम
the rhythm & flow of the poem is so enchanting , that even after the meaning of some of words used therein is not understandable ,even the reason or the context thereof is not given ,,though single reading of this poem , i swear , will not suffice any soul ... bahut bahut badhaii///////////
राजेश भाईजी, अद्भुत !!!
अभी-अभी आपकी एक रचना पर अपनी बात कहते हुए हमने पंक्तियों में अभिनव बिम्बों की अदम्य उपस्थिति की बात की थी. और आपकी प्रस्तुत रचना पर दृष्टि पड़ी है. मैं मुग्धावस्था में मूक हो गया. चैतन्य भावनाओं के गिर्द असहजपन को शब्द देती कथ्यात्मक प्रौढ़ता का मन भूरि-भूरि प्रशंसा कर रहा है.मैं आपकी इन पंक्तियों के होने पर मुग्ध भी हूँ और चकित भी हूँ -
फलक बुहारे
पूनो आई
जागा कहां अघोर
मरा-मरा
आकाश पड़ा था
हुल्लड़ करते शोर
किसकी-किसकी
नजर उतारें
विधना सबकी वाम
हिम्मत भी
क्या खाकर मांगे
निष्ठुर दे ना दाम
इन बेखौफ लकीरों ने सबको किया तमाम..
इस सशक्त और मनोहारी नवगीत के लिए हार्दिक बधाई स्वीकारें, भाईजी. कहना न होगा, आपका प्रस्तुत नवगीत ओबीओ के भाल पर दैदिप्यमान तिलक है.
सादर
हर अध्याय
अधूरे किस्से
कातर हर संघर्ष
प्रणय, त्याग
सब औंधे लेटे
सिहराते स्पर्श
यही सब तो दुखता है. सुन्दर अभिव्यक्ति आदरणीय राजेश जी. सादर बधाई स्वीकारें.
सुंदर रचना मन को छूती हुयी,,,,
राजेश भाई बेहद सुन्दर अभिव्यक्ति हार्दिक बधाई
आदरणीय राजेश कुमर जी,
सिहराते स्पर्श
कमजोर गवाही
देता हर दिन
झुठलाती हर शाम
आस की बडि़यां
खूब भिंगोई
पर ना आई काम
सुन्दर अभिव्यक्ति के लिए बधाई।
विजय निकोर
कुल्हड़, पत्तल
प्याले, पानी
महरिन का संगीत
शीतलपाटी
गठरी बनकर
ठमकी सारी जीत
धीरज धारा
रोज खिसकती
डबडब सारा धाम
किसको बोधें
किसको बोसें
बता तू ही घनश्याम
..bahut sundar rachna ...RACHNAKAAR..ko hardik bdhai .....KALAM KO VANDAN ......PEER UTAR AAI .....CHAMKI ROSHNAI.....!!
BAHOT KHOOB....................
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