शोर कैसा भी हो, मेरे दिल को, अब भाता नहीं |
चहचहाना भी परिंदों का, सुना जाता नहीं ||
दावा करते थे, मेरा होने का,पहले जो कभी |
नाम मेंरा उनके लब पर, आज-कल आता नहीं ||
हूँ चमन में,आज भी, पर दिल में, जंगल आ बसा |
Added by Shashi Mehra on October 5, 2012 at 7:22pm — 1 Comment
आंखें करे शिकायत किनसे
वही व्यथा क्यों ढोते हैं
बीज वपन तो करता मन है
वे नाहक क्यों रोते हैं
पलकों की बंदिश में हरदम
क्यों वे रोके जाते हैं
और तड़पते देह यज्ञ…
ContinueAdded by राजेश 'मृदु' on October 5, 2012 at 3:55pm — 7 Comments
इक ग़ज़ल पेशेखिदमत है दोस्तों आप सभी के जानिब
बहर है--> मुजारे मुसमन अखरब मकफूफ महजूफ
वजन है--> २२१-२१२१-१२२१-२१२
हिंदी का रंग आज यूँ रंगीन हो गया
भारत बदल के जैसे अभी चीन हो गया
मुझसे बड़ा गुनाह ये संगीन हो गया
दिल टूटने…
Added by SANDEEP KUMAR PATEL on October 5, 2012 at 2:00pm — 12 Comments
अपने नाम को सार्थक करती हुई कजरारे नयनों वाली सुनयना अपनी प्यारी बहन आरती से बहुत प्यार करती थी |किसी हादसे में आरती के नयनों की ज्योति चली गई थी लेकिन सुनयना ने जिंदगी में उसको कभी भी आँखों की कमी महसूस नही होने दी | हर वक्त वह साये की तरह उसके साथ रहती,उसकी हर जरूरत को वह अपनी समझ कर पूरा करने की कोशिश में लगी रहती |एक दिन सुनयना को बुखार आ गया जो उतरने का नाम ही नही ले रहा था ,उसके खून की जांच करवाने पर पता चला कि उसे कैंसर है ,उसके मम्मी पापा के पैरों तले तो जमीन ही खिसक गई ,लेकिन सुनयना…
ContinueAdded by Rekha Joshi on October 5, 2012 at 1:13pm — 10 Comments
कैद कब तक रहोगे अपनी ही तन्हाइयों में
ढूंढें मिलते नहीं ज़िंदा बशर परछाइयों में
हक़का रिश्ता ज़मींसे है, ये खंडहर कहते हैं
सब्ज़े होते नहीं अफ्लाक की बालाइयों में
खुशबूएं जम गईं गुलनार के पैकर में ढलके
कल की बादे सबा क्यूँ खोजते पुरवाइयों में
हम हैं जंगल के फूल तख़लिएमें खिलते हैं
ज़र्द पड़ जाते हैं गुलदस्ते की रानाइयों में
फूल वा होते हैं, निकहत बिखर ही जाती है
फर्क कुछ भी नहीं है प्यार और…
ContinueAdded by राज़ नवादवी on October 5, 2012 at 11:46am — 10 Comments
डाली हरसिंगार की झूम उठी
मनमोहक फूलों के बोझ से
बल खाती हुई छेड़ जो रही थी
उसे ईर्ष्यालु सुगन्धित पवन
झर रहे थे पुहुप आलौकिक
दिल ही दिल में मगन
हर कोई चुन रहा था
सुखद स्वप्न बुन रहा था
अलसाई उनींदी पलकों
के मंच पर
ये द्रश्य चल रहा था
मेरा भी मन ललचाया
एक पुष्प उठाया
अंजुरी में सजाया
तिलस्मी पुष्प आह !
ताजमहल रूप उभर आया
अद्वित्य ,अद्दभुत
मेरे स्वयं ने मुझे समझाया
ये तेरा नहीं हो सकता
तुमने गलत…
Added by rajesh kumari on October 5, 2012 at 11:30am — 11 Comments
इस रक्त के संचार पे अधिकार तुम्हारा है
Added by seema agrawal on October 5, 2012 at 3:00am — 15 Comments
न जाने कबसे,
जारी है ये वहशत/
ये खिलवाड़ लफ़्ज़ों से,
न जाने कब छुआ था,
कागज़ का बदन स्याही से मैंने?
उसके जाने के बाद तो नहीं!
उसके मिलने से पहले भी नहीं!
वहशत है तो,
आगाज़ खुशियों से हुआ होगा/
शायद तब...जब
उसने नज़रों से छुआ होगा/
लब्ज़ बस रास्ते ही होंगे,
मंजिल बस वो होगी,
अहसास बेताब होंगे/
हसरतें मचतली होंगी/
दिल बहकता होगा,
धडकनें संभलती होंगी/
बहुत वक़्त बीत गया है
बहुत सफ़र बीत गया है
याद भी नहीं मुझे
न…
Added by Pushyamitra Upadhyay on October 4, 2012 at 10:32pm — 4 Comments
Added by deepti sharma on October 4, 2012 at 9:37pm — 4 Comments
आज मैं शहर छोड़ आया उसका,
वो शहर जो हर पल मुझे,
बस याद उसकी दिलाता था,
वो शहर की जिसमें महकती थी,
बस उसी की खुशबू,
वो शहर जहां हर ओर उसके ही नगमे गूँजा करते थे,
वो वही शहर था जहां रहते थे,
बस चाहने वाले उसके,
आज भी बस शहर ही छूटा है उसका,
पर यादें अभी भी बाकी हैं किसी कोने में,
अपने इस नए शहर में भी बस,
उसकी ही परछाइयों कोई खोजता फिरता हूँ मैं,
बेशक शहर छोड़ दिया उसका मैंने,
पर इस नए शहर में भी मैं उसको ही खोजता हूँ,
बस शहर ही…
ContinueAdded by पियूष कुमार पंत on October 4, 2012 at 9:10pm — 4 Comments
पाप का ना भागी बन,मौन रहा क्यों साध,
मौन साध हामी भरे, वह भी है अपराध |
अपराध अगर यूँ करे, कौन करेगा माफ़,
वक्त लिखेगा एक दिन, दोषी तुझको साफ |
जान बूझ गलती करे, उसको दोषी मान
दोषी वह उतना नहीं,जिसे नहीं था भान |
मानव में न भेद करे, प्रभु सभी के साथ,
प्रभु सभी के साथ है,पकड़ कर्म का हाथ |
कर्म का फल देना ही, प्रभु के लेख माय,
प्रभु करेगा भला ही, गुरु भी यही बताय |
-लक्ष्मण प्रसाद लडीवाला,जयपुर
Added by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on October 4, 2012 at 8:00pm — 12 Comments
तेरे भी ख्वाबों में कोई
अलबेली आई तो होगी
कनक कलश भर सुधा लुटाते
क्षितिज नए लाई तो होगी
उसकी कोरी एक छुअन से
पोर-पोर जागी तो होगी
पलक बंद कर तुमने भी तो
Added by राजेश 'मृदु' on October 4, 2012 at 7:31pm — 4 Comments
ये परेशानियाँ तो आनी-जानी है
मधुमेह तो कभी दिल की बीमारी है
गम है तो खुशी की वजहें भी हैं
रोते गुज़रे तो क्या जिंदगानी है
दिल के ज़ख़्मों से यूँ न घबराओ
बीते वक़्त की ये हसीं निशानी है
वक़्त बे वक़्त कुछ नहीं होता
जो मिला सब खुदा की मेहरबानी है
हर काम कल पर न छोड़ा करो
बर्बादिये वक़्त भी एक बीमारी है
गम की वजहें समझ नहीं आती
यही तो हमारी तुम्हारी कहानी है
Added by नादिर ख़ान on October 4, 2012 at 6:32pm — 4 Comments
आज फिर बदली सी हवा है,
उदास मन फिर आज अकेला है.
Added by RAJESH BHARDWAJ on October 4, 2012 at 6:00pm — 3 Comments
Added by Deepak Sharma Kuluvi on October 4, 2012 at 2:30pm — 4 Comments
गगनचुम्बी अट्टालिकाओं के
कटिंगदार झरोखों से लटक कर
धुंआयुक्त वातावरण में बीमार, खाँसते
अपने चेहरे की धूल को
कृत्रिम फुहारों से धोने की कोशिश में
बड़े दयनीय लगते हैं
छोटे से पात्र में कैद जड़ों के सहारे…
Added by कुमार गौरव अजीतेन्दु on October 4, 2012 at 10:57am — 6 Comments
वो कॉलेज की दुनिया
दोस्तों का फ़साना
बड़ा याद आता है
कॉलेज का जमाना .........
सब दोस्तों का इंतजार करना
थोडा लेट होने पर भी
कितना झगड़ना
सुबह- सुबह पहली क्लास में
सबसे आगे पहली बेंच पर बैठना
कितना याद आता है
लास्ट लेक्चर में थ्योरी सुनते- सुनते
चुपके से सो जाना .........
वो कॉलेज की दुनिया
दोस्तों का फ़साना ..............
वो मोटी-मोटी सी किताबे
अकाउन्ट्स की भाषा
आँखों में पलते बड़े बड़े सपने
मगर फिर…
Added by Sonam Saini on October 4, 2012 at 10:44am — 10 Comments
ये जीवन मानों -
मुट्ठी भर रेत
झरती हैं खुशियाँ
झरते हैं सपने
इक पल
हँसना तो
दूजे पल
क्लेश
ये....................
रेतघड़ी समय की
चलती ही रहती
लम्हों की पूंजी
हाथ से फिसलती
बस स्मृतियों के
रह जाते अवशेष
ये....................
किसी से हो मिलना
किसी से बिछड़ना
जग के मेले में
बंजारे सा फिरना
दुनिया आनी जानी -
सत्य यह अशेष
ये .......................
Added by Vinita Shukla on October 4, 2012 at 10:31am — 8 Comments
हाल कैसा भी हो, पर जहाँ को,
हाल अच्छा बताना पड़ेगा |
अश्क पलकों पे ठहरे जो आकर,
हैं ख़ुशी के, बताना पड़ेगा ||
दिल है तोडा किसी बेवफा ने,
यह न कहना, ज़माना हसेगा |
है यही वक़्त का अब तकाज़ा,
दर्द, दिल में छुपाना पड़ेगा ||
साथ जी लेंगे, पर न मरेंगे,
बात सच्ची है, मत भूल जाना |
झूठ को झूठ कहना पड़ेगा,
सच को सच ही बताना पड़ेगा ||
फिर मिलेंगे ये वादा न करना,
ज़िन्दगी का भरोसा नहीं है |
वरना दोज़ख नुमाँ इस ज़मीं पर,…
Added by Shashi Mehra on October 4, 2012 at 8:30am — 2 Comments
हम स्वछंद हैं कवि .....
हमको नहीं छंद अलंकार का है ज्ञान ,
हम स्वछंद हैं कवि बस भाव हैं प्रधान .
आचार्य गिन मात्रा कहते लिखो निर्धन ,
लिखा अगर गरीब तो क्या हो जायेगा श्रीमान !
हालात जो देखे सीधे सीधे लिख दिए ,
पढ़कर ''वे'' बोले व्याकरण का कुछ तो रखते ध्यान .
कहते अलंकार से कविता का कर श्रृंगार ,
हम 'रबड़ के छल्ले ' देते न उनको कान .
है नहीं कविता में अपनी प्रतीक ,बिम्ब,गुण ,
जूनून है बस…
Added by shikha kaushik on October 4, 2012 at 2:30am — 6 Comments
2024
2023
2022
2021
2020
2019
2018
2017
2016
2015
2014
2013
2012
2011
2010
1999
1970
आवश्यक सूचना:-
1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे
2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |
3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |
4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)
5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |
© 2024 Created by Admin. Powered by
महत्वपूर्ण लिंक्स :- ग़ज़ल की कक्षा ग़ज़ल की बातें ग़ज़ल से सम्बंधित शब्द और उनके अर्थ रदीफ़ काफ़िया बहर परिचय और मात्रा गणना बहर के भेद व तकतीअ
ओपन बुक्स ऑनलाइन डाट कॉम साहित्यकारों व पाठकों का एक साझा मंच है, इस मंच पर प्रकाशित सभी लेख, रचनाएँ और विचार उनकी निजी सम्पत्ति हैं जिससे सहमत होना ओबीओ प्रबन्धन के लिये आवश्यक नहीं है | लेखक या प्रबन्धन की अनुमति के बिना ओबीओ पर प्रकाशित सामग्रियों का किसी भी रूप में प्रयोग करना वर्जित है |