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तीन मुक्तक ......//माँ

 

इस रक्त के संचार पे अधिकार तुम्हारा है 

श्वांसो के हरेक तार पे उपकार तुम्हारा  है
आँखों में चमकते हैं मुस्कान के जो मोती 
कुछ और नहीं माँ वो बस प्यार तुम्हारा है 
 
 
 
बिन बोले बिन उपदेश दिए ,कर्मो की गीता समझाई 
तुमने अपनी दिनचर्या से,पल-पल की कीमत बतलाई 
जब रुके कदम मन विकल हुआ श्रीहत साहस का स्वर्ण हुआ 
माथे पर उत्प्रेरित चुम्बन करती माँ मन में मुस्काई 


मेरी आँखों की पीर चुरा तुम हँसी वहाँ भर  जाती हो 
तुम परी हो मेरे सपनों की हर मुश्किल हल कर जाती हो
तुम माँ हो या जादूगरनी ,विस्मित हूँ ,दुर्गम दूरी से  
कैसे मेरे अनबोले ज़ख्मो पर मरहम धर जाती हो 

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Comment by MARKAND DAVE. on October 11, 2012 at 8:58am

तुम माँ हो या जादूगरनी ,विस्मित हूँ ,दुर्गम दूरी से  
कैसे मेरे अनबोले ज़ख्मो पर मरहम धर जाती हो ।

 

बहुत-बहुत ही बढ़िया, कृपया बधाई स्वीकार करें।

Comment by seema agrawal on October 10, 2012 at 2:03pm

मुक्तक की सराहना हेतु हृदय से धन्यवाद अशोक जी 

Comment by seema agrawal on October 10, 2012 at 2:02pm

आपने सच कहा प्राची माँ  के व्यक्तित्व की गहराई और विशालता समुद्र की भाँती है न ओर न छोर 

स्वागत है  आपका 

Comment by seema agrawal on October 10, 2012 at 1:58pm

आपकी बधाई तो पुरूस्कार है सौरभ जी .....और पुरुस्कार मिलने पर तो स्वयं पर गर्व ही होता है .......तो बस गौरवान्वित महसूस कर रही हूँ 

Comment by Ashok Kumar Raktale on October 9, 2012 at 8:30am

इस रक्त के संचार पे अधिकार तुम्हारा है 

श्वांसो के हरेक तार पे उपकार तुम्हारा  है

आँखों में चमकते हैं मुस्कान के जो मोती 

कुछ और नहीं माँ वो बस प्यार तुम्हारा है 

बहुत ही सुन्दर माँ के प्यार को प्रखर करती रचना के लिए बधाई स्वीकारें आद. सीमा जी.


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on October 5, 2012 at 10:10pm

बिन बोले बिन उपदेश दिए ,कर्मो की गीता समझाई 

तुमने अपनी दिनचर्या से,पल-पल की कीमत बतलाई 
जब रुके कदम मन विकल हुआ श्रीहत साहस का स्वर्ण हुआ 
माथे पर उत्प्रेरित चुम्बन करती माँ मन में मुस्काई .................बहुत सुन्दर मुक्तक. माँ कि व्यापकता कितनी गहन और विस्तृत होती है ये हम पूर्णतः जान भी नहीं सकते,,, 
हर मुक्तक अपने आप में विशिष्ट है, बहुत बहत बधाई इन  माँ की विशिष्टताओं से सराबोर मुक्तकों के लिए.

सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on October 5, 2012 at 9:48pm

बहुत सुन्दर मुक्तक आपने प्रस्तुत किया है, सीमाजी. तीनों मुक्तक तीन ढंग के, तीन शिल्प में.  किन्तु विषय एक.. . वाह !

प्रवाह भी सुन्दर ! हृदय से बधाई स्वीकारें !
 

Comment by seema agrawal on October 5, 2012 at 3:38pm

आपके विचारों का दिल से अनुमोदन करती हूँ लक्ष्मण जी माँ से बड़ा गुरु और कौन होगा एक बच्चे के लिए ....बहुत बहुत शुक्रिया आपको 

Comment by seema agrawal on October 5, 2012 at 3:36pm

प्रिय अरुण आपका बहुत बहुत आभार ...आपके द्वार चुनी गयी पंक्तियाँ सच में कई बार अनुभव की हैं और मै माँ से कहती भी हूँ की तुम जादूगरनी हो बिना कहे ही सब जान लेती हो 

Comment by seema agrawal on October 5, 2012 at 3:34pm

हमेशा की तरह मेरी भावनाओं को साझा करने के लिए ह्रदय से धन्यवाद आदरणीय राजेश जी 

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