शानू उठो, देखो पापा शहर से आ गए हैं,,मगर नीद थी की उसे उठने ही नहीं दे रही थी , आज उसे गाँव आये हुए १५ दिन हो गए थे, नंगे पाँव बागों में फिरना कच्चे, अधपके आमों की लालच में , धुल मिटटी से गंदी हुयी फ्रॉक की कोई परवाह नहीं , पूरी आजादी, और फ़िक्र हो भी क्यों उसने अपना इम्तिहान बहुत मन लगाकर दिया था, प्रथम आयी तो ठीक मगर उस सुरेश को नहीं आने देना है , येही मलाल लिए गर्मी की…
ContinueAdded by SUMAN MISHRA on December 12, 2012 at 7:00pm — 13 Comments
Added by अरुन 'अनन्त' on December 12, 2012 at 6:05pm — 8 Comments
दिन रात सरकारी सिस्टम और तथाकथित भ्रष्टाचारियों को कोसते कोसते एक दिन कोसू राम भगवान् के घर को विदा हुए जी हाँ जिन्दगी भर ईमानदारी से जिए कोसू राम जी जैसे ही ऊपर पहुंचे, भीड़ लगी हुई थी चौंककर पूछा ये क्या हो रहा है !! आवाज आई पंक्ति में खड़े हो जाओ फिर बताते हैं, कोसू राम जी पंक्ति में खड़े हो गए आगे वाले सज्जन ने बताया वो दरवाजे देख रहे हो उनसे हमें पंक्तिबद्ध अन्दर जाना है शुक्रिया अदा कर कोसूराम जी सोचने लगे, चलिए आज कुछ तो अच्छा हुआ यहाँ कुछ तो ईमानदारी है अपना नंबर आ ही जायेगा । थोड़ी देर…
ContinueAdded by SANDEEP KUMAR PATEL on December 12, 2012 at 6:00pm — 1 Comment
दूरियों की दूरी
मंज़िल की ओर बढ़ने से सदैव
दूरियों की दूरी ...
कम नहीं होती।
बात जब कमज़ोर कुम्हलाय रिश्तों की हो तो
किसी "एक" के पास आने से,
नम्रता से, मित्रता का हाथ बढ़ाने से,
या फिर भीतर ही भीतर चुप-चाप
अश्रुओं से दामन भिगो लेने से
रिश्ते भीग नहीं जाते,
उनमें पड़ी चुन्नटें भी ऐसे
कभी कम नहीं होतीं।
रिश्तों में रस न रहा जब शेष हो
तो पतझड़ के पेड़ों की सूखी टहनियों की तरह
टूट-टूट जाते हैं वह
ज़मीन पर गिरे सूखे पत्तों की…
ContinueAdded by vijay nikore on December 12, 2012 at 5:30pm — 4 Comments
समरसता की पले भावना सबका हो यह नारा
यह मानव धर्म हमारा शुभ मानव धर्म हमारा..
जन-जन में फैले विश्व शांति आपस में भाईचारे
मंदिर बांटा मस्जिद बांटी अब बांटों ना गुरूद्वारे.
राम नाम भव तारेगा सदगुरू का एक इशारा..
यह मानव धर्म हमारा................
सुख दुःख आपस में बांटों बन व्योम,चन्द्र औ तारे
लहर दौड़ समता की जाये बचें कहर से सारे .
अमन शांति और विश्व एकता यह शुभ कर्म हमारा ..
यह मानव धर्म…
Added by CA (Dr.)SHAILENDRA SINGH 'MRIDU' on December 12, 2012 at 5:30pm — 4 Comments
कवि का आक्रोश
में भी आप सभी सा हूँ
बस थोडा सा बीसा हूँ
बाहर से में फौलादी हूँ
अंदर से में शीशा हूँ
ह्रदय से में कवि सा हूँ
जन्म हुआ तभी से हूँ
बहर से जुगनू लगता हूँ
अंदर से रवि सा हूँ
मेरी कविताओं में वो दम है
जो लोहे को पिघला देंगी
मेरी जोशीली रचनाएँ
मुर्दे को जिला देगीं
कविता पाठ से में
धरती को हिला दूंगा
अपने मार्मिक छंदों से,
कुम्भकर्ण को जगा दूंगा
रोक…
Added by Dr.Ajay Khare on December 12, 2012 at 4:00pm — 3 Comments
आज सुबह से सौरभ उदास था, आज कहाँ जाएगा नौकरी के लिए, घर में किसी को पता नहीं था की उसके नौकरी छूट गयी है, माँ, पिता की दवा लानी है आज और जेब पूरी खाली, अगर सौरभ अपने नौकरी छूटने की बात बता दे,,तो शायद घर में बीमारी और बढ़ जायेगी,,,आखिर नयी चिंता का जन्म हो जाएगा...येही सोचते सोचते जाने कबतक सड़क के किनारे वो भ्रमित सा खडा रहा,,उसे कुछ समझ में नहीं…
ContinueAdded by SUMAN MISHRA on December 12, 2012 at 3:00pm — 13 Comments
हे देह लता बन शरद घटा
पर देख जरा यह ध्यान रहे
पथ है अपार भीषण तुषार
हे पथिक पंथ का ज्ञान रहे
मन भेद भरे नित चरण गहे
तन मूल धूल यह भान रहे
यौवन सम्हार छलना विचार
निर्लिप्त दीप्त बस प्राण रहे
यह नृत्य गान भींगा विहान
छाया प्रमाण खम ठोंक कहे
'गढ़ नेह-मोह रच दूं विछोह
जो लेश मात्र अंजान रहे'
तज दर्प दंभ हैं ये भुजंग
आभा अनूप नित तूम रहे
दस द्वार ज्वार करता…
ContinueAdded by राजेश 'मृदु' on December 12, 2012 at 2:54pm — 5 Comments
और कितनी है जुदाई पता तो चले
वो मेरी है या पराई, पता तो चले
यूं बहारों पे कब्ज़ा यूं फिजाओं पे हुक्म
अदा ये किसने सिखाई पता तो चले
कँवल खिलने लगे अब्र जलने लगे
किसने ले ली अंगडाई पता तो चले
ये किसने छुआ है, ये किसका नशा है
ये कली क्यों बलखाई पता तो चले
चाँद खिलने लगा गुल महक से गये
मेहँदी किसने रचाई पता तो चले
खोलकर आज गेसू वो मुस्कुरा गये
मौत किसपे है आई पता तो चले
गनीमत यही उन्हें मुहब्बत तो हुई
कुछ उन्हें भी…
Added by Pushyamitra Upadhyay on December 12, 2012 at 2:21pm — 10 Comments
पद्म विभूषण और भारत रत्न से सम्मानित पंडित रविशंकर का बुधवार सुबह अमेरिका के सेन डियागो में निधन हो गया।
विनम्र श्रद्धांजली संगीत जगत के उस चमकते सूर्य को.........
बिखरे सारे राग हैं ,सूना आज सितार
सन्नाटों में गीत है ,सूनी है झंकार
सूनी है झंकार,आँख शब्दों की है नम
खो कर 'रवि' आलोक ,स्तब्ध बैठी है सरगम
कौन किसे दे धीर ,विकल मानस हैं सारे
रोता है संगीत ,तार हैं बिखरे सारे
Added by seema agrawal on December 12, 2012 at 12:30pm — 10 Comments
Added by Dr.Ajay Khare on December 12, 2012 at 12:00pm — No Comments
नील गगन में अम्बुद धवल,
स्नेहरूपी मोतियों समान बूँदों से सींचते
बलवान, योग्य आत्मजों सदृश
फलों से लदे छायादार विटपों से भरी,
उत्साही, सुगन्धित, रंग-बिरंगी पल्लवित
पुष्पों से सजी,
स्वर्ण सरीखी लताओं से जड़ित,
चटख हरे रंग की कामदार कालीन बिछी
धरती को;
मंगलगान गाती कोयलें बैठ डालियों पर,
प्रणय-निवेदनरत मृग युगल,
अमृतकलश सम दिखते सरोवर,
किलकारियों से वातावरण को गुंजायमान
करते खगवृन्द,
परियों जैसी उड़ती तितलियाँ;
ऐसे सुन्दर, मनमोहक, रम्य…
Added by कुमार गौरव अजीतेन्दु on December 12, 2012 at 11:30am — 12 Comments
आदरणीय प्राची जी के कहने और भ्राताश्री अम्बरीश जी के द्वारा दिए गए दोहों के नियमों को पालन करते हुए, दोहे लिखने का मेरा प्रथम प्रयास है आप सभी को सादर समर्पित आप सभी के सहयोग की आकांक्षा लिए अरुन शर्मा.
आनन फानन में किया, दोहों का…
ContinueAdded by अरुन 'अनन्त' on December 12, 2012 at 11:05am — 8 Comments
एक और शुरुआती दौर की ग़ज़ल......
कच्चे अधपके ख्यालात.......
एक दो शेअर शायद आपने सुना हो, पूरी ग़ज़ल पहली बार मंज़रे आम पर आ रही है
बर्दाश्त करें ....
इतनी शिकायत बाप रे |
जीने की आफत बाप रे |
हम भी मरें तुम भी मरो,…
Added by वीनस केसरी on December 12, 2012 at 3:05am — 16 Comments
मुझे थोड़ा बुरा तो लगा जब उसकी थाली में खाना परोसते वक़्त उसने मुझसे पूछा
- ये चिकन किस दूकान से खरीदा था तुमने?
- वही पिकाडेली सर्कस स्टेशन के बाहर निकलते ही सीधे हाथ पर जो शॉप है ना, वहीं से
- ओत्तेरे की! यार मुझे कुछ वेज हो तो खाने को दे दो, वो स्साला गोरा हलाल मीट नहीं बेचता और तुम जानते ही हो कि मैं हराम नहीं खा सकता..
खैर कैसे भी मैंने जल्द-फल्द उसके लिए आलू-मटर की सब्जी तैयार कर दी थी। लेकिन अगले दिन जब ऑफिस में बॉस के गैरहाजिर होने पर उसे कम्प्युटर पर ताश का कोई गेम…
Added by Dipak Mashal on December 11, 2012 at 10:45pm — 13 Comments
फूल ताउम्र तो बहारों में नहीं रहते
हम भी अब अपने यारों में नहीं रहते
मुहब्बत है गर तो आज ही कह दो मुझसे
ये फैसले यूं उधारों में नहीं रहते
अब जानी है हमने दुनिया की हकीकत
अब हम आपके खुमारों में नहीं रहते
दिल तोड़ दो बेफिक्र कोई कुछ न कहेगा
ये छोटे से किस्से अखबारों में नहीं रहते
मेरा रकीब भी आज मेरी खिलाफत में है
लोग हमेशा तो किरदारों में नहीं रहते
बस वजूद की ही जंग है महफिलों में बाकी
वो तूफ़ान भी अब आशारों में नही…
Added by Pushyamitra Upadhyay on December 11, 2012 at 7:38pm — 18 Comments
निज मकान प्राप्त करे,कर कर्जे का भार,
क्रेडिट कार्ड से भी ले,अब आसान उधार।
क्रेडिट कार्ड बोझ तले,नित दबता ही जाय ,
इस…
ContinueAdded by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on December 11, 2012 at 6:30pm — 10 Comments
प्रिये तुम प्रिये तुम कहाँ गुम कहाँ गुम
तुझे ढूढूं दिन रैना हो के मैं भी गुम
तेरे बिन दिल को चैन नहीं है
मन कहे मुझसे तू यहीं कहीं है
शब् भर आँखें जाग रहीं है
निन्दिया मुझसे मेरी भाग रही है
वो जो…
Added by SANDEEP KUMAR PATEL on December 11, 2012 at 4:52pm — 8 Comments
Added by Dr.Ajay Khare on December 11, 2012 at 4:00pm — 1 Comment
रावण संबाद
रावण दहन हेतु जेसे ही नेता जी आगे बढे
दशानन बोल पड़े मुझे
मुझे जलाने के लिए क्या उपयुक्त हे
क्या आप बुराई से पूरी तरह मुक्त हे
फिर क्यों कर रहे हे मुझे अग्नि के हबाले
जबकि आपने किये हे कई घपले घोटाले
आपके कारनामे संगीन हे
आप पूरी तरह से भ्रष्टाचार में लीन हे
राम बनकर हमारी नीतियों पर छलते हे
सफेदपोश बनकर देश को छलते हे
अतः रावण कौन हे पहले हो संज्ञान
फिर कराएँ मुझे अग्नि स्नान
में बुराई का…
Added by Dr.Ajay Khare on December 11, 2012 at 2:00pm — 7 Comments
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