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घर की मुर्गी या दाल

घर की मुर्गी या दाल

 

देख पडोसी की बीबी, मेरी तबियत भडकी,

मिली नजर उससे तो, मेरी आंख फडकी,

कई दिनो तक रहा, यही सिलसिला…

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Added by बसंत नेमा on February 12, 2013 at 4:00pm — 6 Comments

कविता - कंदील . मुर्दों के टीले पर !

पिछले कुछ दिनों से परेशान
परेशान है मेरा संवेदनशील हृदय 
जबसे बाज़ारों में आहट मिली है कि 
आने वाला है वैश्विक प्रेम पर्व 
सभी आतुर हैं संत वैलेंटाइन के योगदान को स्मरण करने को .
मैंने भी चाहा इस अवसर पर लिख सकूं एक प्रेम पगी कविता 
कई बार देर तक डूबा रहा स्मृतियों - विस्मृतियों की सोच  में 
बार बार खयाल आते रहे 
कि कैसे चंद्रयानी योजनाओं 
और फ़ोर्ब्स की सूची से संपन्न धनाढ्यों के देश…
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Added by Abhinav Arun on February 12, 2013 at 3:00pm — 16 Comments

सॉहब गान

सॉहब गान (जन हित मे जारी)

सर आप महान है

हम आपकी संतान है

आप हमारे राजा राम

हम आपके हनुमान है

सर आप महान है

आपके अधीनस्थ है यही अभिमान है

खुफिया है आपके, आपके ही कान है

आपकी खुराक का हमे पूरा घ्यान है

आप हमारे सेनापति हम आपके जवान है

सर आप महान है

आपके के कारण कार्यालय का नाम है

आपकी कार्यशैली का सब करते गुणगान है

बड़े बड़ों नेताओं से आपकी…

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Added by Dr.Ajay Khare on February 12, 2013 at 12:30pm — 9 Comments

ये रिश्तों की अनमोल दुनिया .....

ये रिश्तों की दुनिया है बड़ी ही निराली

प्यार और विश्वास से खिलती है ये क्यारी

त्याग और समर्पण मांगे ये दुनिया हमारी

खुशियों में लगती है ये दुनिया जन्नत हमारी

गम के सायों में हौसला देती है ये दुनिया हमारी

ये रिश्तों की दुनिया है बड़ी ही निराली…

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Added by Parveen Malik on February 12, 2013 at 11:00am — 3 Comments

द्विपदियाँ; संजीव 'सलिल'

चंद द्विपदियाँ;

संजीव 'सलिल'

*

जब तक था दूर कोई इसे जानता न था.

तुमको छुआ तो लोहे से सोना हुआ 'सलिल'.

*

वीरानगी का क्या रहा आलम न पूछिए.

दिल ले लिया तुमने तभी आबाद यह हुआ..

*

जाता है कहाँ रास्ता? कैसे बताऊँ मैं??

मुझ से कई गए न तनिक रास्ता हिला..

*

बस में नहीं दिल के, कि बस के फिर निकल सके.

परबस न जो हुए तो तुम्हीं आ निकाल दो..

*

जो दिल जला है उसके दिल से दिल मिला 'सलिल'

कुछ आग अपने दिल में लगा- जग उजार दे.. ..…

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Added by sanjiv verma 'salil' on February 12, 2013 at 11:00am — 6 Comments


सदस्य कार्यकारिणी
ऋतुराज बसंत(कुण्डलिया)

पीले पीले वेश में ,आया आज बसंत
परिवर्तन की गोद में ,जा बैठा हेमंत
जा बैठा हेमंत ,खेत में सरसों फूली
महक उठा ऋतुकंत,प्रेयसी झूला झूली
रसिक भ्रमर को भाय,मनोहर वदन सजीले
कह ऋतुराज बसंत ,अमिय रस पीले पीले

*******************************************

Added by rajesh kumari on February 12, 2013 at 10:30am — 16 Comments

ग़ज़ल"हसीन पल बहार के"

दोस्तों बहार के इस हसीन प्रथम सप्ताह पे पेशेखिदमत है इक ग़ज़ल

 

जवाँ दिलो में प्यार के, हसीन पल बहार के  

दिलों में इक खुमार के, हसीन पल बहार के  



नयी नयी हयात औ, खिलि खिली सी कायनात

हैं रौनक-ए-बज़ार के,  हसीन पल बहार के



नज़र नज़र में है खुदा, महक रही है ये फजा

हैं नूर औ निखार के, हसीन पल बहार के



खुदी से एक जंग है , दिलों में इक उमंग है

हैं मौज में शुमार के , हसीन पल बहार के



कली कली है खिल रही, नज़र नज़र से मिल…

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Added by SANDEEP KUMAR PATEL on February 11, 2013 at 6:42pm — 4 Comments

कुण्डलियाँ छंद

रूखासूखा खाय के, मन प्रसन्न हो  जाय,
छाव तले  सुस्ताय ले, ठंडा जल मिल जाय।
ठंडा जल मिल जाय,ध्यान रखे परिजनों का,
अपनेपन का भाव रख, भरता उदर औरो का…
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Added by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on February 11, 2013 at 12:30pm — 3 Comments

सरस्वती-वंदना (चौपइया छंद पर एक प्रयास))

 आगामी बसंत पंचमी पर 'सरस्वती पूजन' के आयोजन  का कार्यक्रम है, उसीके उपलक्ष्य में इस वंदना की रचना किया हूँ ! सभी आदरणीयों से सादर निवेदन है कि कृपया इसके गुणों, दोषों से अवगत कराएं तथा आवश्यक प्रतीत होने पर उपयुक्त परिवर्तन भी सुझाएँ ! धन्यवाद !                                      

  

(मौलिक व अप्रकाशित)…

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Added by पीयूष द्विवेदी भारत on February 10, 2013 at 2:05pm — 10 Comments

वैलेंटाइन फ्लू (व्यंग)

 वैलेंटाइन  फ्लू (व्यंग)



त्राहिमाम  कर  रही  दिल्ली, फ़ैल  रहा  स्वाईंन फ्लू,

दूजे  सर  चढ़  के  बोल  रहा  सबके  वैलेंटाइन  फ्लू.

कही  मरीजों  की  है, कतारें  लम्बी  अस्पतालों  में,

और  हम  हैं  की  खोये  हैं  प्रेमिका  के  ख्यालों  में.

कही  परिजन  चीत्कार  कर  रहे  छाती पीटकर,

प्रेम  पत्र  लिख  रहे  हम  उसपर  इतर छिटकर.  

पड़ोस  में  एक  बीमार  पड़े  ,मदद  को हैं बुलाते,

पर  गुलाब  लिए  हाथ  में  हम  गीत हैं गुनगुनाते.

क्यों  औरों  का  दुःख  अपनाऊँ…

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Added by praveen singh "sagar" on February 10, 2013 at 12:42pm — 6 Comments

यूँ लड़ते हुये हम कहाँ तक गिरेंगे

ज़हर भर चुका है दिलों में हमारे
सभी सो रहे है खुदा के भरोसे

जुबां बंद फिर भी अजब शोर-गुल है
हैं जाने कहाँ गुम अमन के नज़ारे

धरम बेचते हैं धरम के पुजारी
हमें लूटते हैं ये रक्षक हमारे

भला कब हुआ है कभी दुश्मनी से
बचा ही नहीं कुछ लुटाते-लुटाते

बटा घर है बारी तो शमशान की अब
यूँ लड़ते हुये हम कहाँ तक गिरेंगे

धरम का था मतलब खुदा से मिलाना
खुदा को ही बांटा धरम क्या निभाते

Added by नादिर ख़ान on February 10, 2013 at 12:30am — 7 Comments

इश्क कि दास्तान है प्यारे

इन दिनों वो अपने आस पास रेशम बुनने लगी थी | बहुत ही महीन मगर चमकीली, हर समय बस एक ही धुन सवार हो गयी थी उस को  रेशम बुनने कि | जहाँ भी वो रहती  बस रेशम के धागों में उलझी हुई रहती |

कई कई बार वो घायल हो जाती, मगर वो रेशम बुनने में ही तल्लीन रहती उसके घायल मन से बना रेशम बहुत ही खूबसूरत होता |

 

वो पहले ऐसी नहीं थी | कितना तो काम होता था उसके पास, उसकी होड…

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Added by दिव्या on February 9, 2013 at 7:30pm — 16 Comments

लेख - अंतर्राष्ट्रीय फलक पर काशी के कवि

भारतेंदु , प्रेमचंद और प्रसाद की धरा वाराणसी साहित्य कला की दृष्टि से आज भी उर्वर है । बात लेखन की हो , चर्चा - विमर्श की या नयी ज़मीन -नयी धरा के तलाश की । कसक है तो इस बात की कि हम अपने साहित्यिक धरोहरों और समकालीन लेखन पर शोधपरक और समीक्षात्मक सिंहावलोकन नहीं कर पा रहे हैं । ऐसे में हाल में शहर वाराणसी के मध्य स्थित ऐतिहासिक "अभिमन्यू…
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Added by Abhinav Arun on February 9, 2013 at 3:35pm — 6 Comments

धीरे धीरे पढ़ें -कोई सुन ना ले

मौलिक -अप्रकाशित

सत्तावन "जो-कर" रहे, जोड़ा बावन ताश ।

महल बनाया दनादन, "सदन" दहलता ख़ास ।

सदन दहलता ख़ास, किंग को नहला पंजा।

रानी दहला जैक, कसे हर रोज शिकंजा ।

धक्का इक्का खाय, हिले नहिं पाया-पत्ता ।

खड़ा ताश का महल, शक्तिशाली कुल सत्ता ।।

Added by रविकर on February 9, 2013 at 10:40am — 11 Comments

"मेरी याद आयेगी "

जब कभी ख़ुद रोना होगा ,
मेरी याद आयेगी तब तुझको !

बेइज्ज़त करेंगे अपने बेईमान कहकर ,
बेवफ़ा वो ख़ुद बेवफ़ा कहेंगे जब तुझको!

अँधेरे में पड़े रहोगे हमेशा,
लोग उजाला कहेंगे जब तुझको!

टूटी हुई कश्ती भी धोखा देगी ,
निगल जायेगा दर्द का समंदर जब तुझको!

दर्द आँखों में सीने में घाव होगा,
ज़िन्दगी ओढ़ा देगी जब कफ़न तुझको!

राम शिरोमंनी पाठक"दीपक"
मौलिक/अप्रकाशित

Added by ram shiromani pathak on February 8, 2013 at 7:19pm — 2 Comments

लोकायुक्त का छापा

लोकायुक्त का छापा

नाम से ज़्यादा अहम, होता कवियों का उपनाम

उपनाम कवियों को देते,एक नई पहचान

सलिल, सरल, प्यासा, घायल, आहत, अटल, अचल

एक कवि ने नाम में जोड़ा, कवि करोड़ीमल

कवि करोड़ीमल थे फक्कड़ और बिंदास

पैसा रुपया धन दौलत न…

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Added by Dr.Ajay Khare on February 8, 2013 at 12:30pm — 7 Comments

जब कामदेव संतप्‍त हुए (चौपाई)

जब शिवजी का ध्‍यान भंग करने के लिए मदनदेव को कहा गया तो वे राजी तो हो गए किंतु उनका मन गहरी सोच में पड़ गया उनकी कशमकश को दर्शाने के लिए चौपाईयां लिखी जिसमें आवश्‍यक सुधार आदरणीय अम्‍बरीष जी ने सुझाया जिसके बाद इसे ओबीओ के पटल पर रखने का साहस कर पा रहा हूं ।…

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Added by राजेश 'मृदु' on February 8, 2013 at 12:07pm — 5 Comments

मौसम का मिजाज बिगड़ गया है ।।

वसंत जाने कहाँ उड़ गया है ...।
मौसम का मिजाज बिगड़ गया है ।।
बारिस ने ऐसा कहर ढा दिया है ;
कोयल से सुर ही बिछड़ गया है ...।।
बर्फ इतने गिरे, मेघ रुकते नही ;
जैसे धरा से गगन झगड़ गया है ।।
जितना दूषित जल, उतना ही पवन ;
बनकर दानव प्रदूषण अकड़ गया है ...।।
छोड़ विज्ञान की, बातें भगवान् की
अपना ही मंदिर उजड़ गया है ......।।

Added by श्रीराम on February 7, 2013 at 11:00pm — 3 Comments

इक प्रयोग "पञ्च चामर ग़ज़ल"

इक प्रयोग "पञ्च चामर ग़ज़ल"



बुरा न बोलिए उसे अगर कठिन गुजर हुआ

सिवाय वक़्त के बता न कौन हमसफ़र हुआ



तलाशते रहा जिसे रखे मिलन कि तिश्नगी

सुनी नहीं सदा अजीज यार बे-खबर हुआ



बदल नहीं सके उसे कहा सनम जिसे कभी

सनम रहा सनम बने न प्यार का असर हुआ



बढीं तमाम गर्दिशें चली हवा गुमान की

बुझा चिराग प्यार का निजाम बेअसर हुआ



गुरूर जिस्म पे कभी न कीजिये हुजूर यूँ

उसूल सुन हयात का मनुज नहीं अमर हुआ



न राह दिख रही मुझे न "दीप" मंजिलें…

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Added by SANDEEP KUMAR PATEL on February 7, 2013 at 8:17pm — 13 Comments

इक प्रयोग "पञ्च चामर ग़ज़ल"



इक प्रयोग "पञ्च चामर ग़ज़ल"



झुके कभी कभी उठे नज़र बड़ी कमाल है

अदायगी ग़ज़ब कि बेनजीर बेमिसाल है



इधर उधर घुमा घुमा अजीब घूर घूर के

जबाब मांगती नज़र बड़ा गहन सवाल है



तराश नाजुकी भरी कि लब लगें गुलाब से

महक रही नफस नफस हसीं शबे विसाल है



नदी नहीं दिखे यहाँ समा रहा जिगर जहाँ

सियाह चश्म झील से गुमा हुआ गजाल है



सदैव सत्य बोलना बुरा भले रहे मगर  

जरूर आजमाइए असर भरा ख़याल है



जहर भरा हरेक हर्फ़ चख सकीं न दीमकें  

इसी…

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Added by SANDEEP KUMAR PATEL on February 7, 2013 at 7:51pm — 10 Comments

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