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रूखासूखा खाय के, मन प्रसन्न हो  जाय,
छाव तले  सुस्ताय ले, ठंडा जल मिल जाय।
ठंडा जल मिल जाय,ध्यान रखे परिजनों का,
अपनेपन का भाव रख, भरता उदर औरो का ।
सकुचाते सब गाँव, गाँव में पड़ता सूखा,
कह लक्ष्मण कविराय,मिले नहि रूखासूखा।
 
चिंतन चित्त शांत करे, सर्व कार्य सध जाय,
सुख सम्पन्नता आये, परिजन खुश हो जाय ।
परिजन खुश हो जाय, सबके कारज सध जाय,
हर जगह बढे प्रतिष्ठा, साथ सहयोग मिल जाय।
स्वहित संग सर्वहित, मन में भरपूर स्पंदन,
कह लक्ष्मण कविराय, चिंता छोड़, कर चिंतन। .

 -लक्ष्मण प्रसाद लडीवाला

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Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on February 12, 2013 at 2:22pm
डॉ अजय खरे जी, भाव पसंद करने के लिए हार्दिक आभार स्वीकारे ।
श्री अरुण कुमार पाण्डेय 'अभिनव' जी रचना में जीवन दर्शन, अथवा सन्देश ही रचना धर्मिता का मकसद होना चाहिए । जो कार्य कबीर, जायसी, रहीम, आदि बड़े बड़े विद्वजन कर गए,उनके पासंग भी कुछ लिख पाए तो सौभाग्य होगा, रचना की सहराना करने के लिए आपका दिल से आभार । 
Comment by Abhinav Arun on February 12, 2013 at 2:02pm

श्री लक्ष्मण प्रसाद लडीवाला जी आपकी रचनाएँ जीवन दर्शन से भरपूर और सकारात्मक होती हैं इस हेतु आपको हार्दिक साधुवाद !! गाँठ बाँध कर रखने जोग रचना के लिए हार्दिक बधाई !!

Comment by Dr.Ajay Khare on February 12, 2013 at 1:11pm

LADIWALA JI SUNDER BHAV BADHAI  

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