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जब कामदेव संतप्‍त हुए (चौपाई)

जब शिवजी का ध्‍यान भंग करने के लिए मदनदेव को कहा गया तो वे राजी तो हो गए किंतु उनका मन गहरी सोच में पड़ गया उनकी कशमकश को दर्शाने के लिए चौपाईयां लिखी जिसमें आवश्‍यक सुधार आदरणीय अम्‍बरीष जी ने सुझाया जिसके बाद इसे ओबीओ के पटल पर रखने का साहस कर पा रहा हूं ।

मदन सदन विकराल उदासी| राग-रंग अब हैं वनवासी||
छंद तिरोहित ताल मलीना| बिलख-बिलख बाजी मन वीणा||

अज विनोद नहीं तनिक सुहाए| नित्‍य पथिक पथ आज भुलाए||
व्‍य्रग्र विकल बैठे ऋतुराजा| हिय अंतर अज शिशिर विराजा||

साज-बाज बहु बार पुकारे| सकल वृंद बैठे मनमारे||
एक कूक नहिं कोयल बोली| अनल-अश्रु में रति भी रो ली||

कुंडल हार मुकुट आभूषण| अज पन्‍नग सम करते सन-सन|
सरस सांझ अज नहीं सुहाए| निशा निकर अज खूब चिढ़ाए||

शिथिल गात कुंतल बिखराए| सकल निशा महि बैठ बिताए||
कूके खग फैला उजियारा| अज प्रभात गहरा अँधियारा||

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Comment

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सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on February 12, 2013 at 12:03am

भाषा आपने अपने तईं अवधी के बहुत करीब रखने की कोशिश की है. यह आपके प्रयास-निर्भरता को ही बताता है. एक बार छोड़ बार-बार आज के लिए अज का प्रयोग विशेष लगा है.  छंद का प्रवाह संयत है, भाई राजेशजी.

संभव हो तो अधोलिखित पद को पुनः देख लें -

अज विनोद नहीं तनिक सुहाए| नित्‍य पथिक पथ आज भुलाए||

सधन्यवाद

Comment by shubhra sharma on February 10, 2013 at 9:54am

रस टपकत मन तृप्त बहुते ,एक एक शब्द सांचे में जूते 

 

Comment by Dr.Ajay Khare on February 9, 2013 at 4:34pm

kaamdeo ji santrapt huye ham bhi padkar trapt huye badhai

Comment by ram shiromani pathak on February 8, 2013 at 6:41pm

बहोत सुन्दर चौपाई  मित्र....इतना गहर ज्ञान नई की आपको मै बता सकूँ लेकिन जितना समझ आया उतना ही उत्तम अति उत्तम ...हार्दिक बधाई ...


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on February 8, 2013 at 3:51pm

जबरदस्त प्रवाह एवं शब्द शानदार चौपाई लिखी है राजेश झा जी हर्दिक बधाई 

साज-बाज बहु बार पुकारे| सकल वृंद बैठे मनमारे||
एक कूक नहिं कोयल बोली| अनल-अश्रु में रति भी रो ली||---vaah vaah

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