घर की मुर्गी या दाल
देख पडोसी की बीबी, मेरी तबियत भडकी,
मिली नजर उससे तो, मेरी आंख फडकी,
कई दिनो तक रहा, यही सिलसिला जारी
तभी एक दिन घर पर मेरे आई पडोसन प्यारी.
आई पडोसन प्यारी की, बीबी के भर गई कान.
दो की चार लगा के, वो हो गई अंतर्ध्यान |
जाते ही उसके तेज ध्वानि मे, बन्द होगये दरवाजे खिडकी
थोडी देर मे घर पर मेरे, मच गई अफरातफरी.
मच गई अफरातफरी की, बीबी बन गई ज्वाला.
रुप भयंकर देख के सोचा, ये मैने क्या कर डाला.
जाने कौन घडी मे पड गया, मेरी अक्ल पे ताला,
अच्छी खासी शबनम थी, उसे शोला बना डाला.
तूफान से पहले की छाई, घर पर मेरे खामोशी.
सन्नाटे को चीरती सिर पर, पडी कोई चीज भारी.
पडी कोई चीज भारी की,आंखो के आंगे छाई अन्धयारी.
आँख खुली तो देखा मैने, सीने पे खडी थी काली.
हाथ जोड कर बोला प्राण, बख्स दो प्राण प्यारी.
आज के बाद नही देखुंगा, कोई पराई नारी,.
सुन गुहार माफी की, उसने सीने से पैर हटाया
बोली दहाड के अब मैने, जो ऐसा दोबारा पाया,
ऐसा दोबारा पाया तो, छोड के तुमको चली जाउंगी
सारी उम्र बुलाये फिर भी, लौट के नही आउंगी
फिर चाहे ले आना तुम, अपनी पडोसन प्यारी
और खुब निभाना संग उसके, अपनी दोस्ती यारी
देख आंखो से बहती, उसके गंगा जमुना.
सोचा आदमी तेरी, फितरत का क्या है कहना.
आती है वो छोडछाड के, अपने बाबुल का घर
फिर भी आदमी मुह को, मारे इधर उधर
मारे इधर उधर की भाईया, जो न हो ऐसा हाल
तो भूल न करना समझ के, घर की मुर्गी को दाल.
मौलिक व अप्रकाशित"
Comment
श्री गनेश जी और डाँ .प्राची दीदी आप का बहुत बहुत धन्यवाद .....
बढ़िया हास्य सृजन किया भाई, बधाई ।
बढ़िया रचना, हार्दिक बधाई आ. बसंत जी
ghar ki murgi lagti daal tabhi padoshan dikhti maal samjh gai yahi bo aapki chaal ghar mai le aati bhoochal
nema ji hashya se bhari maskhari badhai
राम शिरोमणी जी आप का बहुत बहुत.. धन्यवाद
हास्य और व्यंग का उत्तम उदाहरण सर जी .......हार्दिक बधाई
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