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इक प्रयोग "पञ्च चामर ग़ज़ल"


इक प्रयोग "पञ्च चामर ग़ज़ल"

झुके कभी कभी उठे नज़र बड़ी कमाल है
अदायगी ग़ज़ब कि बेनजीर बेमिसाल है

इधर उधर घुमा घुमा अजीब घूर घूर के
जबाब मांगती नज़र बड़ा गहन सवाल है

तराश नाजुकी भरी कि लब लगें गुलाब से
महक रही नफस नफस हसीं शबे विसाल है

नदी नहीं दिखे यहाँ समा रहा जिगर जहाँ
सियाह चश्म झील से गुमा हुआ गजाल है

सदैव सत्य बोलना बुरा भले रहे मगर  
जरूर आजमाइए असर भरा ख़याल है

जहर भरा हरेक हर्फ़ चख सकीं न दीमकें  
इसी प "दीप" आजकल मचा हुआ बबाल है


संदीप पटेल "दीप"

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Comment

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Comment by SANDEEP KUMAR PATEL on February 13, 2013 at 11:56am

आदरणीया भावना तिवारी जी इस प्रयोग को सराहने के लिए आपका बहुत बहुत धन्यवाद स्नेह यूँ ही बनाये रखिये सादर आभार 

Comment by भावना तिवारी on February 11, 2013 at 10:19am

सदैव सत्य बोलना बुरा भले रहे मगर  
जरूर आजमाइए असर भरा ख़याल है.................प्रयोग यह क़माल है OBO निहाल है................BADHAAI ..SANDEEP JI...

Comment by SANDEEP KUMAR PATEL on February 8, 2013 at 3:47pm

आदरणीया राजेश कुमारी जी सादर प्रणाम 
इस हौसलाफजाई के लिए आपका ह्रदय से आभारी हूँ 
स्नेह और आशीष यूँ ही बनाये रखिये सादर 

Comment by SANDEEP KUMAR PATEL on February 8, 2013 at 3:47pm

आदरणीय म्रदु जी सादर 
आपने रचना को मान दिया इसके लिए आभारी हूँ 
स्नेह यूँ ही बनाये रखिये 

Comment by SANDEEP KUMAR PATEL on February 8, 2013 at 3:46pm
आदरणीय विवेक जी सादर 
आपने ग़ज़ल को पढ़ा और सराहा इसके लिए आपका बहुत बहुत धन्यवाद 
स्नेह यूँ ही बनाये रखिये सादर 

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on February 8, 2013 at 9:24am

प्रिय संदीप बहुत ही प्रवाह मई लय युक्त ग़ज़ल कही है मजा आ गया पढ़ के दिली दाद कबूले,मक़्ते वाला शेर तो बस कमाल का है |

Comment by CA (Dr.)SHAILENDRA SINGH 'MRIDU' on February 8, 2013 at 12:13am

आदरणीय संदीप जी बहुत ही सुन्दर अशआर कहे हैं हार्दिक बधाई


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on February 7, 2013 at 11:57pm

अरे... ????

एक ही शीर्षक से दो अलग-अलग प्रविष्टियाँ ?.. . सही...हम उलझ गये

Comment by वीनस केसरी on February 7, 2013 at 11:53pm

इस बहर की सबसे बड़ी खासियत इसका आरोह अवरोह है जिसके कारण ऐसी लहरदार लय तैयार होती है कि पढ़ने सुनने वाला आनंद में बहता चला जाता है ... बहुत खूब कहा है 

कई अशआर खूब पसंद आए

Comment by विवेक मिश्र on February 7, 2013 at 9:25pm

/सदैव सत्य बोलना बुरा भले रहे मगर  
जरूर आजमाइए असर भरा ख़याल है/
बेहतरीन ग़ज़ल. और प्रवाह ऐसा कि बस एक सांस में पूरा पढ़ गया. दाद कबूल हो. :)

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