Added by amita tiwari on December 31, 2018 at 8:38pm — 4 Comments
पूछ मुझसे न सरे बज़्म यहाँ क्या होग़ा ।
महफ़िले इश्क़ में अब हुस्न को सज़दा होगा ।।
बाद मुद्दत के दिखा चाँद ज़मीं पर कोई ।
आप गुजरेंगे गली से तो ये चर्चा होगा ।।
वो जो बेचैन सा दिखता था यहां कुछ दिन से ।
जेहन में अक्स तेरा बारहा उभरा होगा ।।
रोशनी कुछ तो दरीचों से निकल आयी जब ।
तज्रिबा कहता है वो चाँद का…
Added by Naveen Mani Tripathi on December 31, 2018 at 8:20pm — 5 Comments
संस्कार की नींव दे, उन्नति का प्रासाद
हर मन बंदिश में रहे, हर मन हो आजाद।१।
महल झोपड़ी सब जगह, भरा रहे भंडार
जिस दर भी जायें मिले, भूखे को आहार।२।
लगे न बीते साल सा, तन मन कोई घाव
राजनीति ना भर सके, जन में नया दुराव।३।
धन की बरकत ले धनी, निर्धन हो धनवान
शक्तिहीन अन्याय हो, न्याय बने बलवान।४।
घर आँगन सबके खिलें, प्रीत प्यार के फूल
और जले नव वर्ष मेें, हर नफरत का शूल।५।
निर्धन को नव वर्ष की, बस इतनी…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on December 31, 2018 at 5:54pm — 8 Comments
नज़्म नया साल
इन दिनों पिछले साल आया था
पेड़ की टहनी पर नया पत्ता
वक्त की मार से हुआ बूढ़ा
आज आखिर वह शाख से टूटा ।
जन्मदिन हर महीने आता था
और वो और खिलखिलाता था
वो मुझे देख मुस्कुराता था
मैं उसे देख मुस्कुराता था ।
जिन दिनों वो जवान होता था
पेड़ पौधों की शान होता था
उस तरफ सबका ध्यान होता था
और वो आंगन की शान होता था ।
उसके चेहरे में ताब होता था
मुस्कुराना गुलाब होता…
Added by सूबे सिंह सुजान on December 31, 2018 at 2:30pm — 5 Comments
अपने बारे क्या बताऊँ
मैं गलती का पुतला हूँ
सही-गलत का ज्ञान नहीं
पर, दिल की अपने सुनता हूँ
अपने बारे क्या बताऊँ
मैं गलती का पुतला हूँ||
ऊँच -नीच का भेद नहीं
विश्वासघात ना करता हूँ
सीरत नहीं मैं, भाव देखता
प्रेम सभी से करता हूँ
अपने बारे क्या बताऊँ
मैं गलती का पुतला हूँ||
आस्तिक हूँ मैं धर्म…
ContinueAdded by PHOOL SINGH on December 31, 2018 at 12:04pm — 2 Comments
1-
स्वागत देख
भौंचक्का नववर्ष
बीते को देख
2-
अद्भुत हर्षा
वर्ष विदाई-रात
दुआ की बात
3-
हे नववर्ष
दुआयें बरसाता!
स्वप्न दिखाता!
4-
ख़र्चीले दिन
आते-जाते वर्ष के
दो जश्नों के!
5-
सत्य, असत्य
आते-जाते वर्ष के
मिथ्या धूम के
(छद्म धूम के)
(धूम/जश्नों)
6-
है नेतागिरी…
Added by Sheikh Shahzad Usmani on December 29, 2018 at 6:30pm — 5 Comments
1222 1222 122
बहुत से लोग बेेेघरर हो गए हैं ।
सुना हालात बदतर हो गए हैं ।।
मुहब्बत उग नहीं सकती यहां पर ।
हमारे खेत बंजर हो गए हैं ।।
पता हनुमान की है जात जिनको।
सियासत के सिकन्दर हो गए हैं ।।
यहां हर शख्स दंगाई है यारो ।
सभी के पास ख़ंजर हो गए हैं ।।…
Added by Naveen Mani Tripathi on December 29, 2018 at 3:00pm — 6 Comments
(1212 1122 1212 22 )
है कितना मुझ पे तुम्हारा क़याम लिख देना
उठे जो दिल में वो बातें तमाम लिख देना
**
ज़रा सा हाशिया आगाज़ में ज़रूरी है
ख़ुदा का नाम ले ख़त मेरे नाम लिख देना
***
मुझे बताना कि क्या चल रहा है अब दिल में
गुज़र रही है तेरी कैसे शाम लिख देना
***
तरीका और भी है बात मुझ तलक पहुँचे
हवा के हाथ…
Added by गिरधारी सिंह गहलोत 'तुरंत ' on December 29, 2018 at 11:00am — No Comments
आज पेश है एक नगमा --
*
ये मिला सिला हमें तुम्हारे एतबार का
कारवाँ लुटा लुटा सा रह गया है प्यार का
*
न तुम हमारे हो सके न और कोई हो सका
ग़रीब का नसीब तो न जग सका न सो सका
न भूल हम सके सनम कभी तुम्हारी बुज़दिली
कि कोशिशों से भी कभी कली न दिल की फिर खिली
मौसम-ए-ख़िज़ाँ ने घोंट डाला दम बहार का
कारवाँ लुटा लुटा सा रह गया है प्यार का
*
यक़ीन कैसे हम करें कि ज़िंदगी में तुम नहीं
सुकून के हसीन पल हमारे खो गए कहीं
जिधर भी…
Added by गिरधारी सिंह गहलोत 'तुरंत ' on December 28, 2018 at 10:30pm — 6 Comments
तीन क्षणिकाएं :
दूर होगई
हर बाधा
निजी स्वतंत्रता की
माँ-बाप को
वृद्धाश्रम
भेजकर
...................
रूकावट था
ईश मिलन में
अपनों का
मोह बंधन
देह दाह से
श्वास प्रवाह
मुक्त हुआ
अंश,
अंश में
विलुप्त हुआ
.........................
निकल पड़ी
पाषाणों से लड़ती
कल कल करती
निर्मल जल धार
हर रुकावट को रौंदती
मिलने
अपने सागर से
पाषाणों के
उस…
Added by Sushil Sarna on December 28, 2018 at 7:56pm — 6 Comments
( 22 22 22 22 22 22 22 2 )
***
बारम्बार सियासत की क्या यह नादानी अच्छी है ?
धर्मों की आपस में क्या आतिश भड़कानी अच्छी है ?
***
रखना दोस्त बचाकर मोती कुछ ख़ुशियों की ख़ातिर भी
छोटे मोटे ग़म पर आती क्या तुग़्यानी* अच्छी है ?(*बाढ़ )
***
सोचा समझा था पुरखों ने फिर कानून बनाये कुछ
आज़ादी की ख़ातिर तन की क्या उर्यानी* अच्छी है…
Added by गिरधारी सिंह गहलोत 'तुरंत ' on December 27, 2018 at 11:30am — 8 Comments
“अरे सुनो !”
“अभी अम्मा जाग रहीं है... चुप !”
“बक पगली, कुछ काम की बात है, इधर तो आओ !”
“हां , बोलो !”
अरे ये मूँगफली का ठेला अब बेकार हो गया है, कोई कमाई नहीं रही !”
“काहें, अब का हुआ?!”
अरे, ससुरे सब आतें हैं , थोडा सा कुछ खरीदतें हैं बाकी सब फोड़-फोड़ चबा जातें है, जानती…
ContinueAdded by Hari Prakash Dubey on December 26, 2018 at 8:30pm — 3 Comments
212 212 212 212
कैसे कह दूं हुआ हादसा ही नहीं ।
दिल जो टूटा अभी तक जुड़ा ही नहीं।।
तब्सिरा मत करें मेरे हालात पर ।
हाले दिल आपको जब पता ही नहीं ।।
रात भर बादलों में वो छुपता रहा ।
मत कहो चाँद था कुछ ख़फ़ा ही नहीं ।।
आप समझेंगे क्या मेरे जज्बात को ।
आपसे जब ये पर्दा हटा ही नहीं ।।
मौत भी मुँह चुराकर गुज़र जाती है ।
मुफ़लिसी में कोई पूछता ही…
Added by Naveen Mani Tripathi on December 26, 2018 at 6:02pm — 9 Comments
2212 1212 2212 12
रुक्का किसी का जेब में मेरी जो पा लिया
उसने तो सर पे अपने सारा घर उठा लिया //१
लगने लगा है आजकल वीराँ ये शह्र-ए-दिल
नज्ज़ारा मेरी आँख से किसने चुरा लिया //२
ममनून हूँ ऐ मयकशी, अय्यामे सोग में
दिल को शिकस्ता होने से तूने बचा लिया //३
सरमा ए तल्खे हिज्र में सहने के वास्ते
दिल में बहुत थी माइयत, रोकर…
Added by राज़ नवादवी on December 26, 2018 at 4:00pm — 20 Comments
गर मीर* ही न ध्यान रखेगा अवाम का (*नायक )
फिर क्या करे अवाम भी ऐसे निज़ाम का
***
अब तक न याद आई थी उसको अवाम की
क्या रह गया यक़ीन फ़क़त आज राम का
***
दौलत कमाई ख़ूब मगर इतना याद रख-
"बरकत नहीं करे कभी पैसा हराम का "
***
बेकार तो जहाँ में नहीं जिन्स* कोई भी (*वस्तु )
गर्द-ओ-गुबार भी कभी होता है काम…
Added by गिरधारी सिंह गहलोत 'तुरंत ' on December 26, 2018 at 2:30pm — 14 Comments
२१२२/२१२२/२१२२/२१२
अब किसी के मुख न उभरे कातिलों के डर दिखें
इस वतन में हर तरफ खुशहाल सब के घर दिखें।१ ।
काम हासिल हो सभी को जैसा रखते वो हुनर
फैलते सम्मुख किसी के अब न यारो कर दिखें।२।
भाईचारा जब हो कहते हम सभी के बीच तो
आस्तीनों में छिपाये लोग क्यों खन्जर दिखें।३।
हौसला कायम रहे यूँ सच बयानी का सदा
आईनों के सामने आते न अब पत्थर दिखें।४।…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on December 26, 2018 at 10:51am — 3 Comments
फ़ाइलातुन मफ़ाइलुन फेलुन
क़ैद मैं, कैसे दायरे में हूँ
कौन है जिसके सिलसिले में हूँ
आप तो मीठी नींद सोते हैं
और मैं सदियों…
ContinueAdded by santosh khirwadkar on December 26, 2018 at 7:00am — 4 Comments
गुनगुनी सी आहटों पर
खोल कर मन के झरोखे
रेशमी कुछ सिलवटों पर सो चुके सपने जगाऊँ..
इक सुबह ऐसी खिले जब जश्न सा तुझको मनाऊँ..
साँझ की दीवानगी से कुछ महकते पल चुराकर
गुनगुनाती इक सुबह की जेब में रख दूँ छिपाकर
थाम कर जाते पलों का हाथ लिख दूँ इक कहानी
उस कहानी में लिखूँ बस साथ तेरा सब मिटाकर
हर छुपे एहसास को…
ContinueAdded by Dr.Prachi Singh on December 25, 2018 at 11:12pm — 7 Comments
आज मन फिर से हरा है। कहें या न कहें, भीतरी तह में यह मरुआया-सा ही रहा करता है। कारण तो कई हैं। आज हरा हुआ है। इसलिए तो नहीं, कि बेटियाँ आज इतनी बड़ी हो गयी हैं, कि अपनी छुट्टियों पर ’घर’ गयी हैं, ’हमको घर जाना है’ के जोश की ज़िद पर ? चाहे जैसे हों, गमलों में खिलने वाले फूलों का हम स्वागत करते हैं। मन का ऐसा हरापन गमलों वाला ही फूल तो है। इस भाव-फूल का स्वागत है।
अपना 'तब वाला' परिवार बड़ा तो था ही, कई अर्थों में 'मोस्ट हैप्पेनिंग' भी हुआ करता था। गाँव का घर, या कहें,…
ContinueAdded by Saurabh Pandey on December 25, 2018 at 2:00pm — 2 Comments
आज उसके छह महीने पूरे हो रहे थे, कल से वह वापस अपनी खूबसूरत और आरामदायक दुनिया में जा सकता था. उसे याद आया, जब से सरकार ने नियम बनाया था कि हर डॉक्टर को छह महीने गांव में प्रैक्टिस करनी पड़ेगी, उसके लिए यह करना सबसे कठिन था. पिताजी की अच्छी खासी दुनिया थी उस महानगर में, बड़ी हवेली, भरा पूरा परिवार और हर तरह की सुख सुविधा. एम बी बी एस करने के बाद सबने यही कहा था कि छह महीने तो फटाफट गुजर जायेंगे और उसके बाद पिताजी महानगर में ही सब इंतज़ाम करा देंगे.
गांव में जिसके घर वह रह रहा था,…
Added by विनय कुमार on December 25, 2018 at 1:12pm — 6 Comments
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