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दिल जो टूटा अभी तक जुड़ा ही नहीं

212 212 212 212
कैसे कह दूं हुआ हादसा ही नहीं ।
दिल जो टूटा अभी तक जुड़ा ही नहीं।।

तब्सिरा मत करें मेरे हालात पर ।
हाले दिल आपको जब पता ही नहीं ।।

रात भर बादलों में वो छुपता रहा ।
मत कहो चाँद था कुछ ख़फ़ा ही नहीं ।।

आप समझेंगे क्या मेरे जज्बात को ।
आपसे जब ये पर्दा हटा ही नहीं ।।

मौत भी मुँह चुराकर गुज़र जाती है ।
मुफ़लिसी में कोई पूछता ही नहीं।।


कह दिया आपने बेवफा जब मुझे ।
और कहने को कुछ भी बचा ही नहीं ।।

होश ही उड़ गये हुस्न को देखकर ।
क्या हुआ तेरा ज़ादू चला ही नहीं ।।

हम कदम दर कदम यूँ ही बढ़ते रहे ।
फ़ासला अब तलक कुछ घटा ही नहीं ।।


इश्क़ में कोई उलझा रहा आपके ।
आप सुलझा सके मसअला ही नहीं ।।

जल गया ये चमन रफ़्ता रफ़्ता सनम ।
पर धुआँ देखिए कुछ उठा ही नहीं ।।

बात करती असर फैसले के लिए ।
आप ने मुझको शायद सुना ही नहीं ।।

-- डॉ नवीन मणि त्रिपाठी

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Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on January 1, 2019 at 8:01pm

आ. भाई नवीन जी, सुंदर गजल हुयी है । हार्दिक बधाई ।

Comment by Naveen Mani Tripathi on December 29, 2018 at 1:23pm

आ0 फूल सिंह साहब हार्दिक आभार ।

Comment by Naveen Mani Tripathi on December 29, 2018 at 1:22pm

आ0 मुहम्मद अनीस शेख साहब बहुत बहुत शुक्रियः।

Comment by Naveen Mani Tripathi on December 29, 2018 at 1:21pm

आ0 गुरुदेव समर कबीर साहब महत्वपूर्ण इस्लाह के लिए बहुत बहुत आभार और नमन।

Comment by Naveen Mani Tripathi on December 29, 2018 at 1:19pm

आ0 तुरंत साहब ग़ज़ल तक आने के लिए तहेदिल से शुक्रिया ।

Comment by गिरधारी सिंह गहलोत 'तुरंत ' on December 29, 2018 at 11:25am

शानदार ग़ज़ल के लिए मुबारकबाद 

Comment by Md. Anis arman on December 29, 2018 at 11:17am

बहुत अच्छी ग़ज़ल हुई है नवीन मणि त्रिपाठी जी बहुत बहुत बधाई 

Comment by PHOOL SINGH on December 28, 2018 at 2:20pm

बहुत सूंदर रचना बधाई स्वीकारे

Comment by Samar kabeer on December 27, 2018 at 10:16pm

जनाब डॉ.नवीन मणि त्रिपाठी जी आदाब,अच्छी ग़ज़ल हुई है,बधाई स्वीकार करें ।

मत कहो चाँद था कुछ ख़फ़ा ही नहीं '

इस मिसरे का शिल्प कमज़ोर है,इसे यूँ कर सकते हैं:-

'चाँद, कैसे कहोगे ख़फ़ा  ही नहीं'

' आप सुलझा सके मसअला ही नहीं '

इस मिसरे को यूँ कर लें :-

'आप कहते हैं ये मसअला ही नहीं'

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