For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

ये  मिला सिला हमें तुम्हारे एतबार का

आज पेश है एक नगमा --
*
ये  मिला सिला हमें तुम्हारे एतबार का
कारवाँ लुटा लुटा सा रह गया है प्यार का
*
न तुम हमारे हो सके न और कोई हो सका
ग़रीब का नसीब तो न जग सका न सो सका
न भूल हम सके सनम कभी तुम्हारी बुज़दिली
कि कोशिशों से भी कभी कली न दिल की फिर खिली
मौसम-ए-ख़िज़ाँ ने घोंट डाला दम बहार का
कारवाँ लुटा लुटा सा रह गया है प्यार का
*
यक़ीन कैसे हम करें कि ज़िंदगी में तुम नहीं
सुकून के हसीन पल हमारे खो गए कहीं
जिधर भी देखते हैं हम धुँआँ उठे उधर उधर
कि हसरतों का क़ाफ़िला भी हो गया तितर बितर
साथ हिज़्र के हमें ये ग़म मिला उधार का
कारवाँ लुटा लुटा सा रह गया है प्यार का
*
अजीब है चलन कि शाख रोंदती है गुल का तन
कहीं पे बागबाँ ही ख़ुद उजाड़ता दिखे चमन
किया है वक़्त ने दग़ा कि दे गए हो तुम सनम
हमारा तो वजूद है तुम्हारे दम से हम क़दम
हाल अब हमारा है क़फ़स में ज्यों शिकार का
कारवाँ लुटा लुटा सा रह गया है प्यार का
*
ये  मिला सिला हमें तुम्हारे एतबार का
कारवाँ लुटा लुटा सा रह गया है प्यार का
*
गिरधारी सिंह गहलोत 'तुरंत ' बीकानेरी

*

(मौलिक और अप्रकाशित )

Views: 552

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by गिरधारी सिंह गहलोत 'तुरंत ' on December 30, 2018 at 11:05pm

भाई राज़ नवादवी जी ,आपकी सराहना से जो हौसला आफजाई हुई है उसका वर्णन शब्दों में नहीं किया जा सकता है | सादर आभार | 

Comment by राज़ नवादवी on December 30, 2018 at 6:20pm

 गिरधारी सिंह गहलोत 'तुरंत साहब, सुन्दर रचना की प्रस्तुति पे दिली मुबारकबाद. सादर 

Comment by गिरधारी सिंह गहलोत 'तुरंत ' on December 30, 2018 at 12:17pm

आदरणीय  Samar kabeer साहेब आदाब -मापनी के आधार पर अरकान की पहचान आपके लिए कहाँ मुश्किल है | फिर भी आप का हुक्म सर आँखों पर  अरकान इस प्रकार है - मुखड़ा -फ़ाइलुन मुफ़ाइलुन मुफ़ाइलुन मुफ़ाइलुन  अंतरा -प्रथम चार लाइन -मुफ़ाइलुन मुफ़ाइलुन मुफ़ाइलुन मुफ़ाइलुन  अंतिम दो लाइन =फ़ाइलुन मुफ़ाइलुन मुफ़ाइलुन मुफ़ाइलुन | आपको अहमद फ़राज़ साहेब के चंद शेर पोस्ट किये थे कृपया बताएं इनमें तक़ाबुले रदीफ़ है या नहीं | 

Comment by Samar kabeer on December 30, 2018 at 10:55am

अरकान बताइये कृपा कर ।

Comment by गिरधारी सिंह गहलोत 'तुरंत ' on December 29, 2018 at 8:43pm
Comment by Samar kabeer on December 29, 2018 at 8:07pm

जनाब गिरधारी सिंह गहलोत 'तुरंत' जी आदाब,अच्छी रचना है,बधाई स्वीकार करें ।

इसके अरकान क्या लिए हैं आपने,कृपा कर बताएँ?

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post शर्मिन्दगी - लघु कथा
"आदरणीय श्याम नारायण वर्मा जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार आदरणीय"
1 hour ago
Shyam Narain Verma commented on Sushil Sarna's blog post शर्मिन्दगी - लघु कथा
"नमस्ते जी, बहुत ही सुन्दर और ज्ञान वर्धक लघुकथा, हार्दिक बधाई l सादर"
20 hours ago
सुरेश कुमार 'कल्याण' posted blog posts
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted blog posts
yesterday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-118
"हार्दिक धन्यवाद आदरणीय मनन कुमार सिंह जी। बोलचाल में दोनों चलते हैं: खिलवाना, खिलाना/खेलाना।…"
yesterday
Manan Kumar singh replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-118
"आपका आभार उस्मानी जी। तू सब  के बदले  तुम सब  होना चाहिए।शेष ठीक है। पंच की उक्ति…"
yesterday
Manan Kumar singh replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-118
"रचना भावपूर्ण है,पर पात्राधिक्य से कथ्य बोझिल हुआ लगता है।कसावट और बारीक बनावट वांछित है। भाषा…"
yesterday
Sushil Sarna replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-118
"आदरणीय शेख उस्मानी साहिब जी प्रयास पर  आपकी  अमूल्य प्रतिक्रिया ने उसे समृद्ध किया ।…"
yesterday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-118
"आदाब। इस बहुत ही दिलचस्प और गंभीर भी रचना पर हार्दिक बधाई आदरणीय मनन कुमार सिंह साहिब।  ऐसे…"
yesterday
Manan Kumar singh replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-118
"जेठांश "क्या?" "नहीं समझा?" "नहीं तो।" "तो सुन।तू छोटा है,मैं…"
yesterday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-118
"हार्दिक स्वागत आदरणीय सुशील सरना साहिब। बढ़िया विषय और कथानक बढ़िया कथ्य लिए। हार्दिक बधाई। अंतिम…"
Friday
Sushil Sarna replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-118
"माँ ...... "पापा"। "हाँ बेटे, राहुल "। "पापा, कोर्ट का टाईम हो रहा है ।…"
Friday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service