आज पेश है एक नगमा --
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ये मिला सिला हमें तुम्हारे एतबार का
कारवाँ लुटा लुटा सा रह गया है प्यार का
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न तुम हमारे हो सके न और कोई हो सका
ग़रीब का नसीब तो न जग सका न सो सका
न भूल हम सके सनम कभी तुम्हारी बुज़दिली
कि कोशिशों से भी कभी कली न दिल की फिर खिली
मौसम-ए-ख़िज़ाँ ने घोंट डाला दम बहार का
कारवाँ लुटा लुटा सा रह गया है प्यार का
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यक़ीन कैसे हम करें कि ज़िंदगी में तुम नहीं
सुकून के हसीन पल हमारे खो गए कहीं
जिधर भी देखते हैं हम धुँआँ उठे उधर उधर
कि हसरतों का क़ाफ़िला भी हो गया तितर बितर
साथ हिज़्र के हमें ये ग़म मिला उधार का
कारवाँ लुटा लुटा सा रह गया है प्यार का
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अजीब है चलन कि शाख रोंदती है गुल का तन
कहीं पे बागबाँ ही ख़ुद उजाड़ता दिखे चमन
किया है वक़्त ने दग़ा कि दे गए हो तुम सनम
हमारा तो वजूद है तुम्हारे दम से हम क़दम
हाल अब हमारा है क़फ़स में ज्यों शिकार का
कारवाँ लुटा लुटा सा रह गया है प्यार का
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ये मिला सिला हमें तुम्हारे एतबार का
कारवाँ लुटा लुटा सा रह गया है प्यार का
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गिरधारी सिंह गहलोत 'तुरंत ' बीकानेरी
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(मौलिक और अप्रकाशित )
Comment
भाई राज़ नवादवी जी ,आपकी सराहना से जो हौसला आफजाई हुई है उसका वर्णन शब्दों में नहीं किया जा सकता है | सादर आभार |
गिरधारी सिंह गहलोत 'तुरंत साहब, सुन्दर रचना की प्रस्तुति पे दिली मुबारकबाद. सादर
आदरणीय Samar kabeer साहेब आदाब -मापनी के आधार पर अरकान की पहचान आपके लिए कहाँ मुश्किल है | फिर भी आप का हुक्म सर आँखों पर अरकान इस प्रकार है - मुखड़ा -फ़ाइलुन मुफ़ाइलुन मुफ़ाइलुन मुफ़ाइलुन अंतरा -प्रथम चार लाइन -मुफ़ाइलुन मुफ़ाइलुन मुफ़ाइलुन मुफ़ाइलुन अंतिम दो लाइन =फ़ाइलुन मुफ़ाइलुन मुफ़ाइलुन मुफ़ाइलुन | आपको अहमद फ़राज़ साहेब के चंद शेर पोस्ट किये थे कृपया बताएं इनमें तक़ाबुले रदीफ़ है या नहीं |
अरकान बताइये कृपा कर ।
जनाब गिरधारी सिंह गहलोत 'तुरंत' जी आदाब,अच्छी रचना है,बधाई स्वीकार करें ।
इसके अरकान क्या लिए हैं आपने,कृपा कर बताएँ?
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