(1212 1122 1212 22 )
है कितना मुझ पे तुम्हारा क़याम लिख देना
उठे जो दिल में वो बातें तमाम लिख देना
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ज़रा सा हाशिया आगाज़ में ज़रूरी है
ख़ुदा का नाम ले ख़त मेरे नाम लिख देना
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मुझे बताना कि क्या चल रहा है अब दिल में
गुज़र रही है तेरी कैसे शाम लिख देना
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तरीका और भी है बात मुझ तलक पहुँचे
हवा के हाथ पे अपना पयाम लिख देना
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चमक रही है जो बादल में बिजलियाँ या रब
उन्ही पे खूब कोई तुम कलाम लिख देना
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जो बचपने की मुहब्बत भरी शरारत थी
कोई है बाक़ी अगर इंतक़ाम लिख देना
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पता चले तो सही क्या वज़ह रही आखिर
अभी तलक न हुए हम-कलाम लिख देना
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है कितना प्यार बता कर क़लम से, आखिर में
नज़र से दिल से लबों से सलाम लिख देना
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तुम्हारे शह्र में आये 'तुरंत' कहने ग़ज़ल
किया है बज़्म का क्या इंतज़ाम लिख देना
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गिरधारी सिंह गहलोत 'तुरंत' बीकानेरी
24 /10 /2017
शब्दार्थ - क़याम= विश्वास ,पयाम=सन्देश
हम-कलाम=आपस में बातचीत
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