तृषित ज़िंदगी ...
गाँव की
उदास और चुप शाम
टूटे छप्पर
हवाओं से
बिखरे तिनके
बयाँ कर रहे थे
ज़ुल्म आँधियों का
बिखरे
रोटियों के टुकड़े
और
टूटे हुए मटके में
दो हाथों के इंतज़ार में
ठहरा
तृप्ति को तरसता
अतृप्त पानी
कह रहा था
चली गयी
शायद
कोई ज़िंदगी
तृषित ही
सुशील सरना
मौलिक एवं अप्रकाशित
Added by Sushil Sarna on May 31, 2017 at 2:00pm — 8 Comments
Added by Dr.Prachi Singh on May 31, 2017 at 11:17am — 5 Comments
Added by Naveen Mani Tripathi on May 31, 2017 at 8:30am — 10 Comments
बिन मौसम बरसात कहीं
साथ होती है यादें
रिम झिम रिम झिम बरसे पानी
साथ होती हैं बातें
उस नदी की अल्हड लहरें
साथ होती है रातें
आसमान पर चाँद सितारे
बादल गीत हैं गातें
कल कल करता बहता पानी
कागज़ की नाव बहाते
चल मुसाफिर चलता चल तू
साथ नहीं कोई आते
मौलिक एवं…
ContinueAdded by KALPANA BHATT ('रौनक़') on May 30, 2017 at 10:34pm — 4 Comments
वो घर मेरा नहीं ...
कितना कठिन है
अपने घर का पता जानना
लौट जाते हैं
हर बार
आकर भी
घर के पास से हम
किस से पूछें पता
सभी मुसाफिर लगते हैं
अपने घरों से
अंजाने लगते हैं
जानते हैं
ये घर
हमारा नहीं
फिर भी
उसको घर मानते हैं
टूट जाते हैं
जो पत्ते शज़र से
फिर वो शज़र
उनका घर नहीं रह जाता
हो जाते हैं
वो हवाओं के हवाले
घर के पास होते हुए भी…
Added by Sushil Sarna on May 30, 2017 at 6:00pm — 9 Comments
मापनी २२ २२ २२ २२
यदि करना इनकार नहीं है,
क्यों करता इकरार नहीं है
सच से रहता उसका झगड़ा,
झूठ मुझे स्वीकार नहीं है
शूल नहीं है प्रेम अगर, तो,
फूलों का भी हार नहीं है
दिल से कभी न कह…
ContinueAdded by बसंत कुमार शर्मा on May 30, 2017 at 9:30am — 11 Comments
Added by KALPANA BHATT ('रौनक़') on May 28, 2017 at 11:11pm — 3 Comments
Added by Manan Kumar singh on May 28, 2017 at 10:30pm — 9 Comments
Added by बृजेश कुमार 'ब्रज' on May 28, 2017 at 6:26pm — 12 Comments
Added by शिज्जु "शकूर" on May 28, 2017 at 4:46pm — 7 Comments
महिंद्र की सेवानिवृत्ति पार्टी शुरू हो गई | विभाग के कर्मचारियों के साथ महिंद्र के करीब के रिश्तेदार भी आ कर हाल में बैठ गए | थोड़ी देर बाद साहिब भी आ गए | साहिब और कार्यालय के कर्मचारियों ने महिंद्र और उसकी पत्नी को आगे पड़ी कुर्सियों पे बिठाया और उनके गले में हार डाले और उनको गिफ्ट दिए |
इसी समय सब को भोजन परोसा गया और सभी ने खाना शुरू किया, समारोह के चलते, कुछ लोगों को महिंद्र के बारे में कुछ कहने के लिए क्रमवार बुलाया गया |
मगर सभी…
ContinueAdded by मोहन बेगोवाल on May 28, 2017 at 6:02am — 4 Comments
(माँ रमा बाई को यह कविता समर्पित )
माँ रमा बाई जी को कोटि कोटि वंदन
आओ हम सब करें फूलों से अभिनंदन
वक्त की पुकार समर्पित कर दो तन मन
ज्ञान की ज्योति से प्रकाशित करो वतन
अब समाज में समता लाकर रहेगें हम
नफरत सभी के दिलों से निकाल देगें हम
उनके अधूरे काम को अब पूरा करेगें हम
अज्ञान को संसार से मिटा कर रहेगें हम
जीवन के हर क्षण में याद रहे यह प्रण
टूटे दिलों को जोड़ एक माला बनाएँ हम
खुशियाँ सभी के राह में सदा बिछाएँ…
ContinueAdded by Ram Ashery on May 27, 2017 at 3:00pm — 2 Comments
Added by Naveen Mani Tripathi on May 27, 2017 at 1:24pm — 8 Comments
Added by Rahila on May 27, 2017 at 12:18pm — 2 Comments
Added by Mohammed Arif on May 27, 2017 at 10:40am — 7 Comments
ईर्ष्या
कृपया मुझे छोड़ दें
मुझे मुक्त चलने दें
तेरी समझ से
ईमानदारी
कृपया मुझे में भर
मेरे शब्दों को मुक्त कर
उस विश्वास के साथ
मूर्खता
कृपया मुझे छोड़ दें
मुझे दो बार सुन लेकिन बोल
एक आवाज़ के साथ
अखंडता
कृपया मुझे सशक्त कर
मेरे दिमाग और शरीर को ऊपर ले
सही विकल्प बनाने के लिए
मौलिक एवं अप्रकाशित ।
Added by narendrasinh chauhan on May 27, 2017 at 10:30am — 1 Comment
Added by Naveen Mani Tripathi on May 27, 2017 at 8:30am — No Comments
Added by Sheikh Shahzad Usmani on May 27, 2017 at 2:00am — 4 Comments
Added by Rahila on May 26, 2017 at 9:30pm — 5 Comments
यह तुम्हारी आंखें है
यह तुम्हारा मुंह है
यह तुम्हारी मुस्कुराहट है
तुम्हारा दिल
तुम्हारी हंसी
लेकिन यह मेरा दिल है
मेरा डर
यह मेरा प्यार है
मेरी उम्मीद
मैं जिसके लिऐ हूँ
Added by narendrasinh chauhan on May 26, 2017 at 9:57am — 2 Comments
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