For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

प्रासंगिक अस्तित्व (लघुकथा)/शेख़ शहज़ाद उस्मानी

वह एक गाड़ी में सवार थी, जो अब तेज़ गति पकड़ रही थी। गाड़ी किसी और दिशा में जा रही थी और खिड़की से वह विपरीत दिशा में देख रही थी, जहां से वह चली थी। खिड़की से नज़ारे देखते हुए अचानक लगने वाले ब्रेक के झटकों से वह कभी सहम जाती, तो कभी उसे संभलने का सुखद अहसास सा होता। लेकिन तेज़ हवाएं उसे कभी सुखद लग रहीं थीं, तो कभी उसे झकझोर कर परेशान कर रही थीं। तेज़ हवाएं उससे बातें कर रहीं थीं या वह ख़ुद उनसे मोहित होकर उनसे बातें करना चाह रही थी, किसी को भी समझ नहीं आ रहा था। वह खिड़की बंद नहीं कर पा रही थी। उसकी सुंदर पोषाक हवा के झौंकों से फड़फड़ा रही थी। आबरू का ख़्याल आते ही वह अपना आंचल संभालने लगती थी।

"तुम हमेशा से यूं ही जवान लगती हो, ऐसा लगता है कि तुमने अभी-अभी जवानी की दहलीज़ पर क़दम रखा है, इसलिए तुम अपने आप को संभालने की कोशिश करती हो, है न!" तेज़ हवा ने उससे पूछा।

"सच कह रही हो।" उसने अपनी पोषाक पर नज़र डालते हुए हाथों में रची मेंहदी और चूड़ियों की ओर देखते हुए कहा- "लेकिन आजकल केवल तीज-त्योहारों, समारोहों-आयोजनों, वर्षगांठों पर या मेहमानों के आने पर ही मुझे ऐसा ही अहसास कराया जाता है, जैसा तुमने अभी-अभी कहा। फिर भी मुझे यक़ीन है अपने इस चिर यौवन पर। लोग न मुझे छोड़ेंगे और न ही भूलेंगे।"

तभी तेज़ हवा के एक झोंके ने उसे झकझोर दिया।

"बस यूं ही तो तुम मुझे तंग करती रहती हो!" उसने फिर खिड़की से झांक कर विपरीत दिशा में देख कर कहा - "तुम जैसी तेज़ हवाओं के साथ तरक्की की गाड़ी कितनी भी रफ़्तार से दौड़ती रहे, तुम मुझे नुकसान तो पहुंचा सकती हो, लेकिन मेरे वजूद को तुम मिटा नहीं सकतीं!"

हवायें अब कुछ यूं थमने लगीं जैसे कि वे उसमें समा कर उससे कह रहीं हों -"दरअसल तुम वही हो न जिसे कोई भारतीय 'संस्कृति' कहता है, कोई 'तहज़ीब' और कोई 'जीवन-शैली' कहता है, है न!"

(मौलिक व अप्रकाशित)

Views: 582

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Sheikh Shahzad Usmani on July 25, 2017 at 8:00pm
रचना पर समय देकर हौसला अफजाई के लिए सादर हार्दिक धन्यवाद आदरणीय कल्पना भट्ट जी।
Comment by KALPANA BHATT ('रौनक़') on July 16, 2017 at 8:45pm

सन्देश परक कथा हुई है आदरणीय शहजाद भाई | हार्दिक बधाई |

Comment by Sheikh Shahzad Usmani on May 31, 2017 at 11:58pm
इस रचना पटल पर उपस्थित हो कर रचना के अनुमोदन व हौसला अफजाई के लिए तहे दिल से बहुत-बहुत शुक्रिया मुहतरम जनाब मोहम्मद आरिफ साहब।
Comment by Mohammed Arif on May 27, 2017 at 9:27pm
आदरणीय शेख शहज़ाद उस्मानी जी आदाब, कथानक में कसावट,सटीक संवाद से भरपूर मानवीकरण की श्रेणी की लघुकथा का प्रतिनिधित्व करती संदेशपरक लघुकथा के हार्दिक बधाई स्वीकार करें ।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Vikas is now a member of Open Books Online
yesterday
Sushil Sarna posted blog posts
Monday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा दशम्. . . . . गुरु
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार आदरणीय । विलम्ब के लिए क्षमा "
Monday
सतविन्द्र कुमार राणा commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: मिथिलेश वामनकर
"जय हो, बेहतरीन ग़ज़ल कहने के लिए सादर बधाई आदरणीय मिथिलेश जी। "
Monday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 172 in the group चित्र से काव्य तक
"ओबीओ के मंच से सम्बद्ध सभी सदस्यों को दीपोत्सव की हार्दिक बधाइयाँ  छंदोत्सव के अंक 172 में…"
Sunday
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 172 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय सौरभ जी सादर प्रणाम, जी ! समय के साथ त्यौहारों के मनाने का तरीका बदलता गया है. प्रस्तुत सरसी…"
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 172 in the group चित्र से काव्य तक
"वाह वाह ..  प्रत्येक बंद सोद्देश्य .. आदरणीय लक्ष्मण भाईजी, आपकी रचना के बंद सामाजिकता के…"
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 172 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय अशोक भाई साहब, आपकी दूसरी प्रस्तुति पहली से अधिक जमीनी, अधिक व्यावहारिक है. पर्वो-त्यौहारों…"
Sunday
अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 172 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय सौरभ भाईजी  हार्दिक धन्यवाद आभार आपका। आपकी सार्थक टिप्पणी से हमारा उत्साहवर्धन …"
Sunday
pratibha pande replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 172 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय सौरभ पाण्डेय जी छंद पर उपस्तिथि उत्साहवर्धन और मार्गदर्शन के लिए हार्दिक आभार। दीपोत्सव की…"
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 172 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय  अखिलेश कॄष्ण भाई, आयोजन में आपकी भागीदारी का धन्यवाद  हर बरस हर नगर में होता,…"
Sunday
pratibha pande replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 172 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय भाई लक्ष्मण धामी जी छन्द पर उपस्तिथि और सराहना के लिए हार्दिक आभार आपका। दीपोत्सव की हार्दिक…"
Sunday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service