For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

                       

महिंद्र की सेवानिवृत्ति पार्टी शुरू हो गई | विभाग के कर्मचारियों के साथ महिंद्र के करीब के रिश्तेदार भी आ कर हाल में  बैठ गए | थोड़ी देर बाद साहिब  भी आ गए | साहिब और कार्यालय के कर्मचारियों ने महिंद्र और उसकी पत्नी को आगे पड़ी कुर्सियों पे बिठाया और उनके गले में हार डाले और उनको गिफ्ट दिए |

इसी समय सब को भोजन परोसा गया और सभी ने खाना शुरू किया, समारोह के चलते, कुछ लोगों को महिंद्र के बारे में कुछ कहने के लिए क्रमवार बुलाया गया |

मगर सभी लोगों की वाणी में इक बात झलकी कि महिंद्र इक बहुत ही परिश्रमी कर्मचारी है और ईमानदारी से नौकरी दौरान उसने अपना काम किया है |

साहिब ने भी अपनी वाणी में भी कुछ ऐसा ही कहा " जब का मैं विभाग में हूँ, मुझे किसी भी तरह की शिकायत महिंद्र के बारे सुनने को नहीं मिली |”

कुछ लोग प्लेटें खाली कर कोल्ड ड्रिंक्स पीने लगे, तभी महिंद्र को आज के मुख्य अतिथि के रूप में कुछ कहने को कहा गया |

जब महिंद्र ने बोलना शुरू किया, तो उस का गला भर आया, उसकी आँखें भी छम-छम बहने लगी |

" मैं आप सभी से मिले  प्यार के लिए सभी का आभारी हूँ,  मगर क्या मैं आप सब लोगों के साथ वो बात बाँट सकूंगा, जो  मैं अपने अंदर लिए बैठा हूँ,  हाँ मैं खुद किए पाप से खुद को कैसे माफ कर पाउँगा, जो मैने किया है |”

“कैसा पाप” सभी लोग उस के चेहरे से  खोजने लगे |

तब वार्ता जारी रखते हुए महिंद्र ने कहा  "मगर मैं क्षमा चाहता  हूँ   ..., ये नौकरी मेरी नहीं और न ही मैं महिंद्र हूँ, मेरा नाम मुलख है, मगर मैने महिंद्र के नाम पर आए नियुक्ति पत्र को डाकिया को कुछ पैसे का भुगतान  कर के  ले लिया और इस नाम पर ही नौकरी की, तब मैं गाँव से आया था और मुझे कोई नहीं जानता था |  मगर महिंद्र, मुझे नहीं पता  कौन कहाँ  है या था  | मगर वो साया अभी भी ....... महिंद्र कहता गया |

हाल मैं सभी लोग अचंभित हो कर उस की तरफ देखने  लगे |

"मौलिक व अप्रकाशित"

 

Views: 653

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by KALPANA BHATT ('रौनक़') on June 3, 2017 at 7:33am

ऐसा भी होता है ? क्या फर्जी तरीके इस तरह से नौकरिया हतियाई जाती है ? क्या जांच नहीं होती ? प्रस्तुत कथा के लिए हार्दिक बधाई आदरणीय मनन कुमार जी\

Comment by Dr. Vijai Shanker on May 29, 2017 at 5:15am
संभवतः आज के समय में यह संभव नहीं है पर आज से पचास वर्ष पूर्व निसंदेह संभव था। यह कहानी का स्पष्ट प्रणाम है कि कितनी कमजोर और लचर व्यवस्था थी हमारे प्रशासनिक ढाँचे की। इसी का परिणाम हम आज भी भुगत रहे हैं। ठीक ही कहा जाता है कि एक नेता या अफसर के पास सौ साल आगे के समय को देखने की चाहिए। पर वास्तविकता यह है कि हमारी व्यवस्था में सामने की चीज़ नहीं दिखती है।
प्रस्तुत कहानी के लिए आदरणीय बहुत बहुत बधाई , सादर।
Comment by Dr. Vijai Shanker on May 29, 2017 at 2:57am
संभवतः आज के समय में यह संभव नहीं है पर आज से पचास वर्ष पूर्व निसंदेह संभव था। यह कहानी का स्पष्ट प्रणाम है कि कितनी कमजोर और लचर व्यवस्था थी हमारे प्रशासनिक ढाँचे की। इसी का परिणाम हम आज भी भुगत रहे हैं। ठीक ही कहा जाता है कि एक नेता या अफसर के पास सौ साल आगे के समय को देखने की चाहिए। पर वास्तविकता यह है कि हमारी व्यवस्था में सामने की चीज़ नहीं दिखती है।
प्रस्तुत कहानी के लिए आदरणीय बहुत बहुत बधाई , सादर।
Comment by Mohammed Arif on May 28, 2017 at 6:09pm
आदरणीय मोहन बेगोवाल जी आदाब,ऐसे कई शासकीय कर्मचारी हैं जो फर्ज़ी तरीके से नौकरी हथिया लेते हैं । आख़िर में जब रहस्य उजागर होता है तो जाँच कमेटी बैठाई जाती है । हमारी प्रशासनिक व्यवस्था भी नये सत्ता उदय के बाद भी भ्रष्टाचार मुक्त नहीं हो पाई है । भ्रष्टाचार कहिँ नहीं है? कथानक कुछ छोटा हो सकता था । बधाई स्वीकार करें ।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity


सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"आदरणीय मनन कुमार सिंह जी प्रदत्त विषय अनुरूप बहुत बढ़िया लघुकथा हुई है। यह लघुकथा पाठक को गहरे…"
36 minutes ago
Manan Kumar singh replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"पहचान'मैं सुमन हूँ।' पहले ने बतया। '.........?''मैं करीम।' दूसरे का…"
1 hour ago
Admin replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"स्वागतम"
7 hours ago
Nilesh Shevgaonkar joined Admin's group
Thumbnail

सुझाव एवं शिकायत

Open Books से सम्बंधित किसी प्रकार का सुझाव या शिकायत यहाँ लिख सकते है , आप के सुझाव और शिकायत पर…See More
7 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post लौटा सफ़र से आज ही, अपना ज़मीर है -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
"आ. भाई चेतन जी, सादर अभिवादन। गजल पर उपस्थिति और उत्साहवर्धन के लिए आभार। विलम्ब से उत्तर के लिए…"
13 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Sushil Sarna's blog post दोहा दशम्. . . . . गुरु
"आ. भाई सुशील जी, सादर अभिवादन। अच्छे दोहे हुए हैं। हार्दिक बधाई।"
13 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on धर्मेन्द्र कुमार सिंह's blog post देश की बदक़िस्मती थी चार व्यापारी मिले (ग़ज़ल)
"आ. भाई धर्मेंद्र जी, सादर अभिवादन। सुंदर गजल हुई है। हार्दिक बधाई।"
14 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-183
"आयोजन की सफलता हेतु सभी को बधाई।"
21 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-183
"मेरे कहे को मान देने के लिए हार्दिक आभार। वैसे यह टिप्पणी गलत जगह हो गई है। सादर"
21 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-183
"मेरे कहे को मान देने के लिए हार्दिक आभार।"
21 hours ago
धर्मेन्द्र कुमार सिंह posted a blog post

देश की बदक़िस्मती थी चार व्यापारी मिले (ग़ज़ल)

बह्र : 2122 2122 2122 212 देश की बदक़िस्मती थी चार व्यापारी मिलेझूठ, नफ़रत, छल-कपट से जैसे गद्दारी…See More
23 hours ago
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-183
"आदरणीय मिथिलेश वामनकर जी आदाब, ग़ज़ल पर आपकी आमद सुख़न नवाज़ी और हौसला अफ़ज़ाई का तह-ए-दिल से…"
23 hours ago

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service