For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

वो घर मेरा नहीं ...

वो घर मेरा नहीं ...


कितना कठिन है
अपने घर का पता जानना


लौट जाते हैं
हर बार
आकर भी
घर के पास से हम

किस से पूछें  पता 
सभी मुसाफिर लगते हैं
अपने घरों से
अंजाने लगते हैं

जानते हैं
ये घर
हमारा नहीं
फिर भी
उसको घर मानते हैं


टूट जाते हैं

जो पत्ते शज़र से
फिर वो शज़र
उनका घर नहीं रह जाता
हो जाते हैं
वो हवाओं के हवाले
घर के पास होते हुए भी
घर से दूर हो जाते हैं
कोई विकल्प नहीं
उनके पास
अपनी यात्रा को
जारी रखने के अतिरिक्त

इस अनंत आवागमन का
कब होगा अंत

ये न पंथ जानता है
न पंथी जानता है


ये मैं
किस घर की धरोहर है
ये व्योम की नाभि में छुपा
अक्षुण्ण कण का
अंतर ही जानता है


मैं तो बस
इतना ही जानता हूँ
कि मैं
जिस घर में
आता और जाता हूँ
वो घर
मेरा नहीं

सुशील सरना
मौलिक एवं अप्रकाशित

Views: 561

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Sushil Sarna on June 5, 2017 at 3:42pm

आदरणीय विजय निकोर जी सृजन में निहित भावों को अपनी आत्मीय स्वीकृति से प्रोत्साहित करने का हार्दिक आभार।

Comment by Sushil Sarna on June 5, 2017 at 3:42pm

आदरणीय बृजेश कुमार जी प्रस्तुति आपके स्नेहिल शब्दों की आभारी है।

Comment by Sushil Sarna on June 5, 2017 at 3:39pm

आदरणीया कल्पना भट्ट जी रचना के भावों को आत्मीय मान देने का दिल से आभार। 

Comment by vijay nikore on June 3, 2017 at 3:15pm

अपनी रचना के माध्यम आप आजकल के सच को इतना पास ले आए। बहुत खूब। हार्दिक बधाई, आदरणीय सुशील जी।

Comment by बृजेश कुमार 'ब्रज' on June 3, 2017 at 9:58am
बहुत ही उत्तम प्रस्तुति आदरणीय..सादर
Comment by KALPANA BHATT ('रौनक़') on June 3, 2017 at 7:17am

आहा | बहुत सुंदर , बहुत ही सही बात कही है आपने आज कल घर घर जैसे नहीं |

टूट जाते हैं

जो पत्ते शज़र से 
फिर वो शज़र 
उनका घर नहीं रह जाता 
हो जाते हैं 
वो हवाओं के हवाले 
घर के पास होते हुए भी 
घर से दूर हो जाते हैं 
कोई विकल्प नहीं 
उनके पास 
अपनी यात्रा को 
जारी रखने के अतिरिक्त

बहुत ही भावपूर्ण रचना हुई है आदरणीय सुशिल सरना जी हार्दिक बधाई

Comment by Sushil Sarna on June 1, 2017 at 2:38pm

आदरणीय मो. आरिफ साहिब सृजन को अपनी मधुर प्रशंसा से अलंकृत करने का हार्दिक आभार।

Comment by Sushil Sarna on June 1, 2017 at 2:38pm

आदरणीय श्याम नारायण जी रचना के भावों को मान देने का हार्दिक आभार।

Comment by Mohammed Arif on June 1, 2017 at 8:29am
आदरणीय सुशील सरना जी आदाब, बहुत ही भावुक रचना । आजकल घर घर जैसे कहाँ रह गये हैं । रैन बसेरा या पेइंग-गेस्ट के मानिंद हो गये हैं । घर की छवि उभरने पर सिरहन सी होती है । हार्दिक बधाई स्वीकार करें ।
Comment by Shyam Narain Verma on May 31, 2017 at 3:46pm

इस सुन्दर प्रस्तुति के लिए हार्दिक बधाई

सादर

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . विविध
"आ. भाई सुशील जी, सादर अभिवादन। सुंदर दोहे हुए हैं।हार्दिक बधाई। भाई रामबली जी का कथन उचित है।…"
yesterday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . विविध
"आदरणीय रामबली जी सृजन आपकी मनोहारी प्रतिक्रिया से समृद्ध हुआ । बात  आपकी सही है रिद्म में…"
Tuesday
रामबली गुप्ता commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . विविध
"बड़े ही सुंदर दोहे हुए हैं भाई जी लेकिन चावल और भात दोनों एक ही बात है। सम्भव हो तो भात की जगह दाल…"
Monday
रामबली गुप्ता commented on रामबली गुप्ता's blog post कुंडलिया छंद
"हार्दिक आभार भाई लक्ष्मण धामी जी"
Monday
रामबली गुप्ता commented on रामबली गुप्ता's blog post कुंडलिया छंद
"हार्दिक आभार भाई चेतन प्रकाश जी"
Monday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"आदरणीय, सुशील सरना जी,नमस्कार, पहली बार आपकी पोस्ट किसी ओ. बी. ओ. के किसी आयोजन में दृष्टिगोचर हुई।…"
Sunday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . . . रिश्ते
"आदरणीय सौरभ पाण्डेय जी सृजन आपकी मनोहारी प्रतिक्रिया से समृद्ध हुआ । हार्दिक आभार आदरणीय "
Sunday
Sushil Sarna replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार "
Sunday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . . संबंध
"आदरणीय रामबली जी सृजन के भावों को आत्मीय मान से सम्मानित करने का दिल से आभार ।"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"आ. भाई चेतन जी, सादर अभिवादन। अच्छे दोहे हुए हैं। हार्दिक बधाई।"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"आ. भाई सुशील जी, सादर अभिवादन। सुंदर छंद हुए हैं। हार्दिक बधाई।"
Sunday
Sushil Sarna replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"रोला छंद . . . . हृदय न माने बात, कभी वो काम न करना ।सदा सत्य के साथ , राह  पर …"
Sunday

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service