Added by Naveen Mani Tripathi on May 21, 2017 at 6:06am — 3 Comments
दुनिया कहती है,
मैं ऐसा हूँ।
दुनिया कहती है,
मैं वैसा हूँ॥
जेठ की दोपहरी
पसीने का एहसास,
ताम्र वर्ण की-
अतृप्त प्यास॥
तेरी काँख के गंध
जैसा हूँ॥
दुनिया कहती है,
मैं ऐसा हूँ।
दुनिया कहती है,
मैं वैसा हूँ॥
सही वक़्त, सही लोग
मिल नहीं पाए।
शब्द बिखरे रहे,
अर्थ मिल नहीं पाए॥
उनींदी रातों की,
सिलवटों जैसा हूँ॥
दुनिया…
Added by SudhenduOjha on May 20, 2017 at 10:05pm — No Comments
Added by Sheikh Shahzad Usmani on May 20, 2017 at 8:17pm — No Comments
Added by Samar kabeer on May 20, 2017 at 12:08am — 25 Comments
Added by Tasdiq Ahmed Khan on May 19, 2017 at 9:18pm — 17 Comments
सुख के दुख के हर सांचे में, मिटटी जैसी ढलती माँ
मैं क्या कोई जान न पाया, कब सोती कब जगती माँ
गाँव छोड़कर, गया नगर में, लाल कमाने धन दौलत,
अच्छे दिन की आशा पाले, रही स्वयं को ठगती माँ
दीवाली पर सजते देखे, घर आँगन चौबारे
रहे भागती और दौड़ती, पता नहीं कब सजती माँ
घर के कोने कोने का, दूर अँधेरा करने को,
दीपक में बाती के जैसी, रात रात भर जलती माँ
बेटी और बहू की खातिर, जोड़े जाने क्या क्या तो,
सपने बुनकर…
ContinueAdded by बसंत कुमार शर्मा on May 18, 2017 at 10:25pm — 4 Comments
Added by बृजेश कुमार 'ब्रज' on May 18, 2017 at 8:05pm — 12 Comments
अँधेरे ...
किसने
स्वर दे दिए
रजनी तुम्हें
तुम तो
वाणीहीन थी
मूक तम को
किसने स्वरदान दे दिया
शून्यता को बींधते हुए
कुछ स्वर तो हैं
मगर
अस्पष्ट से
क्षण
तम के परिधान में
सुप्त से प्रतीत होते हैं
भाव
एकांत के दास हैं
शायद
तुम
इस तम की
वाणीहीनता का कारण हो
पर हाँ
ये भी सच है कि
तुम ही इस का
निवारण भी हो
दे दो प्राण
इन एकांत
अँधेरे को
छू लो इन्हें…
Added by Sushil Sarna on May 17, 2017 at 5:18pm — 6 Comments
221 2121 1221 212
हो चाह भी, तो कोई ये हिम्मत न कर सके
तेरी जफ़ा की कोई शिकायत न कर सके
तुम क़त्ल करके चौक में लटका दो ज़िस्म को
ता फिर कोई भी शौक़ ए बगावत न कर सके
हाल ए तबाही देख तेरी बारगाह की
हम जायें बार बार ये हसरत न कर सके
बारगाह - दरबार
मैंने ग़लत कहा जिसे, हर हाल हो ग़लत
तुम देखना ! कोई भी हिमायत न कर सके
बन्दे जो कारनामे तेरे नाम से किये
हम चाह कर ख़ुदा की इबादत न कर…
ContinueAdded by गिरिराज भंडारी on May 17, 2017 at 7:24am — 27 Comments
22 11 22 11 22 11 22
.
मैं पहले-पहल शौक़ से लाया गया दिल में
फ़िर नाज़ से कुछ रोज़ बसाया गया दिल में.
.
वो ख़त तो बहुत बाद में शोलों का हुआ था,
तिल तिल के उसे पहले जलाया गया दिल में.
.
हालाँकि मुहब्बत वो मुकम्मल न हो पाई
शिद्दत से बहुत जिस को निभाया गया दिल में.
.
अंजाम पता है हमें कुछ और है फिर भी,
हीरो को हिरोइन से मिलाया गया दिल में.
.
हम सच में तेरी राह में कलियाँ क्या बिछाते
पलकों को मगर सच में बिछाया गया…
Added by Nilesh Shevgaonkar on May 16, 2017 at 7:30pm — 22 Comments
Added by जयनित कुमार मेहता on May 15, 2017 at 9:55pm — 15 Comments
Added by Sushil Sarna on May 15, 2017 at 7:23pm — 9 Comments
गेट के सामने भीड़ इकठ्ठी हो रही है, कुछ लोग क्रोध से भर कार्यालय के अंदर जाने की कोशिश कर रहे हैं । द्वारपाल भीड़ को रोकने की कोशिश में नकाम हो रहा है।
प्रेस अपने वीडियो कैमरे के साथ कार्यालय तक पहुँच गई है, और पत्रकार कई तरह के सवाल पुछ रहे हैं जैसे “वार्ड नं ३ में होने वाली मौत के बारे आप क्या कहना चाहेंगा। आप बताएँ मौत कि लिए जिम्मेदार चिकित्सक पर क्या एकशन लिया गया है।“
"आप कैसे कह सकते हैं कि मौत के लिए चिकित्सक ही जिम्मेदार है ?" बड़े टेबल की दुसरी तरफ़ बैठे साहिब ने कहा। मैने…
Added by मोहन बेगोवाल on May 15, 2017 at 4:30pm — 6 Comments
Added by Naveen Mani Tripathi on May 15, 2017 at 1:03pm — 10 Comments
2122 1212 22 /112
मेरी मदहोशियाँ भी ले जाना
मेरी हुश्यारियाँ भी ले जाना
इक ख़ला रूह को अता कर के
आज तन्हाइयाँ भी ले जाना
जाने किस किस से तेरी अनबन हो
थोड़ी खामोशियाँ भी ले जाना
दिल को दुश्वारियाँ सुहायें गर
मुझसे तब्दीलियाँ भी ले जाना
कामयाबी न सर पे चढ़ जाये
मेरी नाकामामियाँ भी ले जाना
राहें यादों की रोक लूँ पहले
फिर तेरी चिठ्ठियाँ भी ले जाना
बे…
ContinueAdded by गिरिराज भंडारी on May 15, 2017 at 10:19am — 23 Comments
Added by सतविन्द्र कुमार राणा on May 14, 2017 at 8:00pm — 18 Comments
Added by बृजेश कुमार 'ब्रज' on May 14, 2017 at 11:52am — 18 Comments
Added by Manan Kumar singh on May 14, 2017 at 8:00am — 14 Comments
Added by Rahila on May 13, 2017 at 3:47pm — 13 Comments
ग़ज़ल
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(फअल-फऊलन-फेलुन-फेलुन )
सिर्फ़ वो महफ़िल से निकला था |
कब वो मेरे दिल से निकला था |
दिलबर के दीदार का मंज़र
चश्म से मुश्किल से निकला था |
रास्ता मेरी मंज़िल का भी
उनकी ही मंज़िल से निकला था |
जिसने बचाया बद नज़रों से
वो जादू तिल से निकला था |
हरफे निदा जो बना अदावत
ज़ह्ने मुक़ाबिल से निकला था |
आ ही गया वो फिर मक़्तल में
बच के जो क़ातिल से निकला था…
Added by Tasdiq Ahmed Khan on May 13, 2017 at 12:44pm — 16 Comments
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