For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

ग़ज़ल.. जला दो दीप उल्फत के कभी काशी मदीने में

1222 1222 1222 1222
उठा लो हाथ में खंज़र लगा दो आग सीने में
धरा है क्या नजाकत में नफासत में करीने में

बड़े खूंरेज कातिल हो जलाया खूब इन्सां को
जला दो दीप उल्फत के कभी काशी मदीने में

उठी लहरें हजारों नागिनें फुफकारती जैसे
न कोई बच सका जिन्दा समंदर में सफीने में

न सर पे आशियाँ जिनके न खाने को निवाले हैं
उन्हें क्या फर्क पड़ता है यूँ मरने और जीने में

हुये मशहूर किस्से जब अदाए कातिलाना के
सहेजूँ किस तरह तुमको अँगूठी के नगीने में

घटायें उनकी यादों की ले आईं आँख में पानी
बचा 'ब्रज' कौन फ़ुरक़त से यहाँ सावन महीने में
(मौलिक एवं अप्रकाशित)
बृजेश कुमार 'ब्रज'

Views: 1021

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by बृजेश कुमार 'ब्रज' on May 20, 2017 at 11:45am
आदरणीय अनुराग जी सादर अभिवादन स्वीकार करें..आपने एक नया नजरिया प्रदान किया है ग़ज़ल को..इस दिशा में मैं सोच ही नहीं पाया..सादर आभार
Comment by बृजेश कुमार 'ब्रज' on May 19, 2017 at 10:04am
आदरणीय नीलेश जी सादर अभिवादन स्वीकार करें..आपकी सलाह सर्वथा उचित है..बुंदेलखंड में अधिक या बहुत जयादा के लिए खूब का प्रयोग करते हैं..मैंने वही अर्थ ले लिया लेकिन ये मेरी गलती है..खूब का मतलब गुणवत्ता से है..चौथे शे'र में भी कुछ सुधार करता हूँ..सादर
Comment by बृजेश कुमार 'ब्रज' on May 19, 2017 at 9:25am
आदरणीय गिरिराज जी सादर अभिवादन..आदरणीय आपका इशारा तीसरे शे'र की तरफ है..चौथा शे'र 'निवाले हैं..जीने में'..सादर
Comment by Nilesh Shevgaonkar on May 19, 2017 at 8:40am

आ. बृजेश जी,
अच्छी ग़ज़ल के लिए बधाई ...
 जलाया खूब इन्सां को.. में ख़ूब का प्रयोग ठीक नहीं है ... क्यूँ की हिंसा ख़ूबी के तौर पर कवि ह्रदय स्वीकार नहीं कर पाता ..
न सर पे आशियाँ जिनके न खाने को निवाले हैं
उन्हें क्या फर्क पड़ता है यूँ मरने और जीने में... यहाँ भी.. किसी और को फर्क पड़े न पड़े... लेकिन जिस पर बीत रही है उसे तो फ़र्क पड़ता है... उन्हें की जगह किसी को क्या फर्क पड़ता है जैसा भाव होना चाहिए ..
सोचियेगा 
सादर 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on May 19, 2017 at 7:30am

आदरणीय बृजेश भाई ... अच्छी ग़ज़ल कही है , हार्दिक बधाइयाँ , चौथे शेर में

जैसे  और  में   ,      में दोष नही आ रहा है ...  में , अनुस्वार के साथ है  और से  बिना अनुस्वार के । मेरे ख्याल से बदलने की ज़रूरत नही है ।

Comment by बृजेश कुमार 'ब्रज' on May 19, 2017 at 7:21am
चौथे शे'र में रादिफेन दोष है कुछ अच्छा कर सकूँ कोशिश कर रहा हूँ..
Comment by बृजेश कुमार 'ब्रज' on May 19, 2017 at 7:16am
आदरणीय विजय जी बहुत बहुत आभार..सादर
Comment by बृजेश कुमार 'ब्रज' on May 19, 2017 at 7:16am
आदरणीय गुरप्रीत जी हौसलाफजाई के लिए हार्दिक धन्यवाद..सादर
Comment by बृजेश कुमार 'ब्रज' on May 19, 2017 at 7:15am
आदरणीय समर सर आपके रचना पे आने से सृजन सार्थक हुआ..सादर अभिवादन स्वीकार करें..
Comment by vijay nikore on May 19, 2017 at 7:05am

अच्छी गज़ल के लिए बधाई।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Sushil Sarna posted blog posts
2 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted blog posts
2 hours ago
सतविन्द्र कुमार राणा posted a blog post

जमा है धुंध का बादल

  चला क्या आज दुनिया में बताने को वही आया जमा है धुंध का बादल हटाने को वही आयाजरा सोचो कभी झगड़े भला…See More
2 hours ago
आशीष यादव posted a blog post

जाने तुमको क्या क्या कहता

तेरी बात अगर छिड़ जातीजाने तुमको क्या क्या कहतासूरज चंदा तारे उपवनझील समंदर दरिया कहताकहता तेरे…See More
2 hours ago
Admin posted a discussion

"ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-170

आदरणीय साहित्य प्रेमियो, जैसाकि आप सभी को ज्ञात ही है, महा-उत्सव आयोजन दरअसल रचनाकारों, विशेषकर…See More
14 hours ago
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . रोटी
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार आदरणीय जी "
Tuesday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post एक बूँद
"आ. भाई सुरेश जी, सादर अभिवादन। सुंदर रचना हुई है । हार्दिक बधाई।"
Tuesday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . रोटी
"आ. भाई सुशील जी, सादर अभिवादन। सुंदर दोहे रचे हैं। हार्दिक बधाई।"
Saturday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . विविध
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी सृजन आपकी मनोहारी प्रशंसा का दिल से आभारी है सर "
Jan 2
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . विरह
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार आदरणीय जी "
Jan 2
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post कुंडलिया ....
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार आदरणीय "
Jan 2
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . कागज
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी सृजन आपकी स्नेहिल प्रशंसा का दिल से आभारी है सर ।  नव वर्ष की हार्दिक…"
Jan 2

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service