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स्वप्न साधना ....

स्वप्न साधना ....

निस्सीम प्रीत के
मधुपलों में
हो समर्पित
चिर सुख की
मिलन वेला में
खो गयी मैं
और हार के
स्वयं को स्वयं से
अमर जीत
हो गयी मैं

करती रही
क्षण क्षण संचित
एकांत वास में
अपने प्रिय के
प्रीतपाश का

विस्मृत कर
विभावरी के
अंतकाल को
श्वास स्पंदन
की मिलन गंध को
विभावरी के
शेष पलों में
जीती रही मैं

शून्य हुआ
तुम बिन हर पल
श्वास मेरी भी
शून्य हुई
बंध अनुबंध
सब गौण हुए
और जीत हार भी
शून्य हुई
तुम विलीन हुए नभ में
मैं अनंत निद्रा में
लीन हुई

थी अपूर्ण मैं
तुमसे पहले
तुमसे मिलकर
पूर्ण हुई
कर समर्पित
तुम में
स्वयं को
मेरी स्वप्न साधना
पूर्ण हुई


सुशील सरना
मौलिक अप्रकाशित

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Comment by Sushil Sarna on May 22, 2017 at 2:19pm

आदरणीय  Mahendra Kumar  जी रचना के भावों को आपने आत्मीय मान से अलंकृत करने का दिल से शुक्रिया।

Comment by Mahendra Kumar on May 22, 2017 at 9:20am

बहुत अच्छी भावपूर्ण कविता है आदरणीय सुशील सरना जी. हार्दिक बधाई स्वीकार कीजिए. सादर.

Comment by Sushil Sarna on May 19, 2017 at 3:04pm

आदरणीय  vijay nikoreसाहिब रचना के भावों को आपने आत्मीय मान से अलंकृत करने का दिल से शुक्रिया।

Comment by vijay nikore on May 19, 2017 at 6:57am

//और जीत हार भी
शून्य हुई
तुम विलीन हुए नभ में
मैं अनंत निद्रा में
लीन हुई//

वाह, वह। बहुत अच्छे भाव हैं। आनन्द आ गया। आपको हार्दिक बधाई, आदरणीय सुशील जी

Comment by Sushil Sarna on May 18, 2017 at 8:22pm

आदरणीय narendrasinh chauhan जी सृजन के भावों को मान देने का शुक्रिया।

Comment by narendrasinh chauhan on May 16, 2017 at 5:50pm

खूब सुन्दर रचना। ...

Comment by Sushil Sarna on May 16, 2017 at 3:39pm

आदरणीय समर कबीर साहिब रचना के भावों को आपने आत्मीय मान से अलंकृत करने का दिल से शुक्रिया।

Comment by Sushil Sarna on May 16, 2017 at 3:39pm

आदरणीय मोहित मुक्त जी सृजन के भावों को मान देने का शुक्रिया।

Comment by Samar kabeer on May 16, 2017 at 3:07pm
जनाब सुशील सरना जी आदाब,बहुत सुंदर कविता हुई है,दाद के साथ मुबारकबाद पेश करता हूँ ।

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