आत्म घाती लोग - लघुकथा -
मेरे मोबाइल की घंटी बजी। स्क्रीन पर दीन दयाल का नाम था। मगर दीन दयाल का स्वर्गवास हुए तो दो साल हो गये। उसके परिवार ने तो कभी भी याद ही नहीं किया। आज अचानक कैसे याद आ गई।…
ContinueAdded by TEJ VEER SINGH on July 23, 2021 at 9:58am — 4 Comments
221 2121 1221 212
रस्मो- रिवाज बन गयी पहचान हो गयी
वो दिलरुबा थी मेरी जो भगवान हो गयी
मक़तल बना है शहर वो रफ्तार ज़िन्दगी,
मुश्किल हुई है जीस्त कि श्मशान हो गयी
हर शख्स वो अकेला ही दुनिया में आजकल,
क्या वो करें जो कह सकें गुलदान हो गयी
सुन राजदाँ बहुत हुई बेज़ार ज़िन्दगी,
कासिद नहीं आया जबाँ कान हो गयी
जाहिल बने रईस वो हक़दार देश के,
अब हार-जीत उनकी खुदा शान हो…
ContinueAdded by Chetan Prakash on July 22, 2021 at 7:30am — 1 Comment
२१२/२१२/२१२ /२२
जिसका अपना यहाँ दायरा कम है
आसमाँ को भी वो मानता कम है।१।
*
मुझसे कहता है क्यों पूजता कम है
देख तुझ में भी तो देवता कम है।२।
*
जो ठहरना नहीं चाहता साथी
उसके हिस्से में क्यों रास्ता कम है।३।
*
बात औरों के सिर डालकर देखो
अपने ईमान को तौलता कम है।४।
*
पास बैठा है लेकिन अबोला ही
कौन कहता है अब फासला कम है।५।
*
हर बुराई …
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on July 21, 2021 at 9:43am — 12 Comments
कलयुग में ऋण के बिना, सरे न कोई काम।
बड़ी बड़ी जो हस्तियाँ , ऋण ले बनी तमाम ॥
टाँक पैबंद वस्त्र में, तब ढकते थे लाज।
लोग प्रदर्शन कर रहे, उन्हें फाड़कर आज॥
मूर्ति मात्र साधन सदा, ध्यान लगाएँ नित्य।
निराकार ईश्वर सदा, देखता सबके कृत्य॥
मान पुरुष को दे भले, सामाजिक परिवेश।
घर पर तो चलता सदा, पत्नी का आदेश॥
कर…
ContinueAdded by Om Parkash Sharma on July 21, 2021 at 12:00am — 5 Comments
अन्तस में नर्तन करें, विगत रैन के द्वन्द ।
मुदित नैन रचने लगे, प्रीत गंध के छन्द । ।
नैनों से नैना करें , गुपचुप- गुपचुप बात ।
रैन तिमिर में हो गए, अलबेले उत्पात ।।
थोड़े से इंकार थे, थोड़े से इकरार ।
भली लगी संघर्ष में, भोली भाली हार ।।
सुशील सरना / 20-7-21
मौलिक एवं अप्रकाशित
Added by Sushil Sarna on July 20, 2021 at 12:00pm — 10 Comments
1212, 1122, 1212, 22
1)वो ऐसे लोग जो दुनिया से तेरी ग़ाफ़िल हैं
मेरी नज़र में वही आज सबसे आक़िल हैं
2)ये उसके सामने इक़रार करना चाहता हूँ
रक़ीब सारे मेरी जान मुझसे क़ाबिल हैं
3) हमारे मुल्क में है मसअला यही इक बस
पढ़े लिखे भी बहुत से यहाँ के जाहिल हैं
4)हकीम बेबसी मँहगी दवा सियासतदाँ
यही हैं वो जो मेरी ज़िन्दगी के क़ातिल हैं
5)मैं जिनके वास्ते दुनिया से लड़ने निकला हूँ …
Added by Md. Anis arman on July 18, 2021 at 8:00pm — 8 Comments
2122 1212 22
1
एक बेहिस को दिल दिया हमने
कह के अपना उसे ख़ुदा हमने
2
रहके तुमसे खफ़ा खफ़ा हमने
ख़ुद को बर्बाद कर लिया हमने…
ContinueAdded by Rachna Bhatia on July 15, 2021 at 7:12pm — 7 Comments
अभिव्यक्ति ......
कैसे व्यक्त करूँ
अपने प्रेम की गहराई को
अभिव्यक्ति के अवगुंठन में
एक खीज है
तुम्हें छूने की
अबोले स्पर्शों से
कब तक लड़ूँ मैं
तुम ही कहो न
अपने प्रेम की गहराई को
कैसे व्यक्त करूँ मैं
हां! मैं तुम्हें प्यार करूँगी
भोर की उजास में
साँझ की प्यास में
तृप्ति की आस में
हर हलाहल पी जाऊँगी
मर के भी जी जाऊँगी
बस मेरी तन्हाई में
कुछ देर और जी जाओ
तुम ही कहो
तुम्हारे प्यार में आखिर…
Added by Sushil Sarna on July 15, 2021 at 3:32pm — 10 Comments
221, 2122, 221, 2122
1)इन आँसुओं की इक दिन तासीर बोल उठेगी
ग़म देख मेरा तेरी तस्वीर बोल उठेगी
2)जो हाल -ए -दिल हम अपना लिख दें कभी क़लम से
रोने लगेगा काग़ज़ तहरीर बोल उठेगी
3)ईमान पुख़्ता रख और हिम्मत से काम ले तू
फिर देख कैसे तेरी तक़दीर बोल उठेगी
4)पूछोगे प्यार से तुम जब हाल- ए- दिल हमारा
हर ज़ख़्म जी उठेगा हर पीर बोल उठेगी
5) इतना ग़लत भी मत कर ये इल्तिजा है तुझसे
वर्ना तू देख…
Added by Md. Anis arman on July 15, 2021 at 10:50am — 4 Comments
सासु यहाँ घर पर करे, अब बाई का काम।
बहू सुबह है निकलती, आती है फिर शाम॥
.
शिक्षा सारी व्यर्थ है, व्यर्थ समझ सब ज्ञान।
पदवी पा करता नही, मात पिता सम्मान।।
.
शिक्षा जिसमें सीख हो, और श्रेष्ठ संस्कार।
जीवन को उज्ज्वल करे, सिखलाए व्यवहार॥
.
मेघ छटे अब खिल गई, यहाँ सुनहली धूप।
धुली धुली सी लग रही। मोहक प्रकृति अनूप॥
.
हम चिंता निज की…
ContinueAdded by Om Parkash Sharma on July 14, 2021 at 11:00pm — No Comments
सुलगते अँधेरे .......
न जाने आज
मन इतना उदास क्यों है
लगता है
स्मृतियों की सीलन से
मन की दीवारें
भुरभुरा सी गई हैं
यादों के पारदर्शी प्रतिबिम्ब
जैसे गिरती दीवारों पर
मन की बेबसी पर
अट्टहास लगा लगा रहे हों
कितनी ढीठ है
ये बरसाती हवा
जानती है मेरी आकुलता को
फिर भी मुझे छू कर
मुझसे मेरा हाल पूछती है
अब अच्छी नहीं लगतीं मुझे
आहटें
मन के वातायन पर गूँजती…
Added by Sushil Sarna on July 13, 2021 at 8:00pm — 8 Comments
(1)
ताला बंदी बाद अब, देखो थोड़ी छूट।
भीड़ दिखे अब शहर में, नियम रहे हैं टूट॥
(2)
घटा घिरी घनघोर अब, मन घट धरे न धीर।
आओ प्रियतम जल्द तुम, तभी मिटे मम पीर॥
( 3)
अन्य चुनावों से अधिक, रखना पड़े बचाव।
पंचायत के जब निकट, आने लगें चुनाव॥
(4)
अंकुश वाणी कलम पर, करें न अनुचित बात ।
इसमें ही जग का भला , यह ही जग विख्यात…
ContinueAdded by Om Parkash Sharma on July 12, 2021 at 9:30pm — 5 Comments
11212 11212 11212 11212
तुम्हें कह चुका हूँ, मैं दोस्तो मेरे साथ आज बहार है !
है महर खुदा की वो आसरा सो खिवैया ही तो कहार है !
थी नहीं कभी रज़ा जिसकी होड़ - उड़ान में कभी ज़िन्दगी,
कहूँ कैसै वो रहा साथी मेरा जहाँ, सदा बारहा वो तो हार है !
न तुम्हें कोई भी है फिक्र गाँव- गली का वो न लिहाज़ है,
न वो शर्म माँ कि न बाप की, न तुम्हें जड़ों से ही प्यार है !
न वो मानता है किसी भी सोच को जानता नहीं मर्म…
ContinueAdded by Chetan Prakash on July 12, 2021 at 10:05am — No Comments
२२१/२१२१/१२२१/२१२
आँखों में नींद ला के जगाती है रात भर
पाकर अकेला याद जो आती है रात भर।१।
*
कैसे हो चैन देह को मन को सुकून तब
शोलों सी चाँदनी ये जलाती है रात भर।२।
*
होने लगी है जुल्फ जो उसकी सफेद यूँ
आँखों के आँसुओं से नहाती है रात भर।३।
*
बजती हवा से दूर जो मंदिर की घन्टियाँ
आवाज दे के लगता बुलाती है रात भर।४।
*
आता है याद माँ का वो दामन हमें बहुत
जब रात सर्दियों की सताती है रात…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on July 12, 2021 at 7:30am — 5 Comments
2122 - 2122 - 2122 - 212
फ़ाइलातुन-फ़ाइलातुन-फ़ाइलातुन-फ़ाइलुन
(बह्र- रमल मुसम्मन् महज़ूफ़)
मसनदों पर आज बैठे हो नहीं बैठोगे कल
फ़र्श पर आ जाओ वैसे भी यहीं बैठोगे कल
देना होगा पूरा-पूरा साहिबो तुमको हिसाब
रू-ब-रू नज़रें मिलाकर यूँ नहीं बैठोगे कल
आज तुम हो होगा कल हाकिम ज़माना देखना
जाग उट्ठा है बशर अब छुप कहीं बैठोगे कल…
Added by अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी on July 11, 2021 at 3:54pm — 8 Comments
1212, 1122, 1212, 22
1)तेरे जमाल के मारों से गुफ़्तगू की है
तमाम रात सितारों से गुफ़्तगू की है
2)है तेरे हुस्न से ख़तरे में हर चमन का वजूद
गुलों ने डर के बहारों से गुफ़्तगू की है
3)उदास टूटे मेरे दिल ने आज सारी रात
मेरे मकाँ की दरारों से गुफ़्तगू की है
4) मुदावा हो गया मेरे सभी ग़मों का आज
ज़माने बाद जो यारों से गुफ़्तगू की है
5)मिला नहीं है हमें अब तलक कोई तुमसा
जहाँ में हमने हज़ारों से गुफ़्तगू की…
Added by Md. Anis arman on July 11, 2021 at 1:00pm — 4 Comments
२२१/२१२१/१२२१/२१२
सेवा के नाम खाते हैं मेवा छिपा हुआ
इनके सिवा बताओ तो किसका भला हुआ।१।
*
मिलती हैं रोटियाँ जो ये कुर्सी के खेल से
है रक्त बेबशों का भी इन में लगा हुआ।२।
*
मुकरे हैं नेता सारे ही देकर वचन हमें
करके दिखाया देश में किसने कहा हुआ।३।
*
नेता हुए हैं आज के गिरगिट सरीखे सब
खादी को ऐसे कर दिया सबसे गिरा हुआ।४।
*
ये नीरो जैसे देश में रहते हैं …
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on July 11, 2021 at 2:41am — 4 Comments
मन का साहिल ......
जाने कब मेरे अन्तस में
भावनाओं का सागर उफान मारने लगा
भावों की वीचियों पर
चाहत की कश्ती
अठखेलियां करने लगी
दिल के किसी कोने में
एक चाहत उभरी
कि मैं हौले से छू लूँ
फिर वही
अधर दलों पर ठहरी
उल्फ़त की गंध
चुपके से
डूब जाऊँ
किसी मदहोश भंवरे की तरह
पुष्प आगोश में
पराग का रसपान करते हुए
आकंठ तक
और मिल जाए
मेरी चाहत की कश्ती को
मेरे मन का…
Added by Sushil Sarna on July 10, 2021 at 2:57pm — 10 Comments
२२१/२१२१/१२२१/२१२
रस्ता बदल न और कभी काफ़िला बदल
केवल तू अपनी सोच का ये दायरा बदल।१।
*
मिलती है राह कर्म से जन्नत की भी मगर
किस्मत को जीतने के लिए हौसला बदल।२।
*
है जानकार जो भी वो पैसों के पीछे बस
जिसको पता न रोग का कहता दवा बदल।३।
*
चेहरा ही अपना दाग से करता जो गुफ्तगू
क्या होगा हमको लाभ बता आईना बदल।४।
*
पूजा का खुद को तौर तरीका न आता है
कहते पुजारी मुझ से हैं तू देवता बदल।५। …
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on July 10, 2021 at 7:00am — 4 Comments
122 122 122 122
पड़े जब कभी बेज़बानों के पत्थर
चटकने लगे फिर चटानों के पत्थर
मुहब्बत तेरी दास्तानों के पत्थर
उठा लाये फिर हम फ़सानों के पत्थर
बड़ी आग फेंकी बड़ा ज़हर थूका
उगलता रहा वो गुमानों के…
ContinueAdded by Rahul Dangi Panchal on July 9, 2021 at 5:00pm — 9 Comments
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