For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

All Blog Posts (19,101)

उठा लाये फिर हम फ़सानों के पत्थर- ग़ज़ल

122 122 122 122

पड़े जब कभी बेज़बानों के पत्थर 

चटकने लगे फिर चटानों के पत्थर 

मुहब्बत तेरी दास्तानों के पत्थर 

उठा लाये फिर हम फ़सानों के पत्थर 

बड़ी आग फेंकी बड़ा ज़हर थूका 

उगलता रहा वो गुमानों के…

Continue

Added by Rahul Dangi Panchal on July 9, 2021 at 5:00pm — 9 Comments

भूख का व्यापार मत करवाइए- लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'

२१२२/२१२२/२१२२/२१२

कायराना  काम  कोई  यार  मत करवाइए

हर नदी नाले को हम से पार मत करवाइए।१।

*

शेर पाला है तो शेरों से लड़ाओ खूब पर

गीदड़ों से तो उसे दो-चार मत करवाइए।२।

*

वीरता की धार इससे कुंद सी पड़ जायेगी

रोजमर्रा दुश्मनों   से   प्यार मत करवाइए।३।

*

जाति धर्मों  के  लवादे  में  सियासत हेतु यूँ

नित्य अपनों से तो इतनी रार मत करवाइए।४।

*

चापलूसों को जमाकर रंग रोगन बस…

Continue

Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on July 9, 2021 at 7:43am — 6 Comments

ग़ज़ल

2122, 1122, 1122, 22

है दुआ तुझसे यूँ चमका दे मुक़द्दर मौला

कर दे ईमाँ से मेरे दिल को मुनव्वर मौला

अबरहा चल पड़ा है आज सितम ढाने को

भेज दे फिर से अबाबीलों का लश्कर मौला

मोड़ कर पैरों को सीने से लगा रक्खा है

फिर भी छोटी ही पड़े मेरी ये चादर मौला

होंगी कितनी हसीं जन्नत की वो हूरें आख़िर

सोचता रहता हूँ ये बात मैं अक्सर मौला

ज़िन्दगी कट तो गयी पर मैं जिसे अपना कहूँ

ऐसा इक पल न हुआ मुझ को मयस्सर…

Continue

Added by Md. Anis arman on July 8, 2021 at 1:00pm — 6 Comments

ग़ज़ल

2122    2122    2122   212

बह्रे रमल मुसम्मन महफूज़:

हिब्ज जिसको राजधानी क्या ज़रूरत धाम की !!

सारी दुनिया है उसी की कब रज़ा  हुक्काम  की !!

ज़िन्दगी तो  दोस्त बस जिन्दादिली का नाम है,

मौज़िजा हो जायेगा यारा इबादत  राम की  !!

साथ जीते भारती हम मत करें नाहक मना,

अन्त भी होगा यहीं या रब मलानत जाम की !!

आइना टूटा हुआ है, यार देखोगे क्या  तुम ?

इल्म की छाया नही है हर खिताबत नाम की !!

कब…

Continue

Added by Chetan Prakash on July 6, 2021 at 8:53pm — No Comments

ग़ज़ल

2122    2122    2122   212

बह्रे रमल मुसम्मन महफूज़:

हिब्ज जिसको राजधानी क्या ज़रूरत धाम की !!

सारी दुनिया है उसी की कब रज़ा  हुक्काम  की !!

ज़िन्दगी तो  दोस्त बस जिन्दादिली का नाम है,

मौज़िजा हो जायेगा यारा इबादत  राम की  !!

साथ जीते भारती हम मत करें नाहक मना,

अन्त भी होगा यहीं या रब मलानत जाम की !!

आइना टूटा हुआ है, यार देखोगे क्या  तुम ?

इल्म की छाया नही है हर खिताबत नाम की !!

कब…

Continue

Added by Chetan Prakash on July 6, 2021 at 8:09pm — No Comments

ग़ज़ल

 212     212     212     212

जो चला वो नमाज़ी  फँसा  रह गया !

दूरियाँ  घट गयीं फासला  रह गया  !!

ज़िन्दगी  बंदगी हो  सकी  गर खुदा,

दूर था प्यार वो पास  आ रह गया !!

ना रहा कोई  अपना जहाँ दोस्त  जाँ,

जीस्त  होती रही दिल जला रह गया !

क्या हुआ गर तुम्हारा वो सर झुक गया,

झूठ  का  दम  रहा बेमज़ा रह गया !!

साजिशें चाहे जितनी करे कोई  याँ,

सर मरासिम  का पर बारहा रह गया  !

बख्श…

Continue

Added by Chetan Prakash on July 6, 2021 at 4:08pm — No Comments

दोहे

अपर्याप्त तो सोचना, किए बिना प्रयास।

हो प्रयास उसके लिए, पूरी तब हो आस॥

इच्छाएँ सीमित रहें, दें प्रकृति को मान।

रखें स्वच्छ पर्यावरण, धरती स्वर्ग समान॥

तन को ढकने के…

Continue

Added by Om Parkash Sharma on July 4, 2021 at 11:30pm — 8 Comments

अहसास की ग़ज़ल : मनोज अहसास

1222    1222    122

खबर झूठी उड़ाना चाहता हूँ,

तेरी यादें छुपाना चाहता हूँ।

तुम्हारे पास थोड़ा वक्त हो तो,

मैं हाले दिल सुनाना चाहता हूँ।

रकीबों की गली में आ गया हूँ,

तेरे घर में ठिकाना चाहता हूँ।

जो मेरी जान के दुश्मन बने हैं,

उन्हीं के हाथ आना चाहता हूँ।

बवंडर क्यों उठा है सरहदों पर,

मैं सबको सच बताना चाहता हूँ।

सियासत ,घर के झगड़े, दिल की बातें

मैं सब से दूर जाना…

Continue

Added by मनोज अहसास on July 3, 2021 at 8:39pm — 2 Comments

अहसास की ग़ज़ल : मनोज अहसास

ग़ज़ल-221 1222 22 221 1222 22

इस बहर में मेरी ये पहली ग़ज़ल है यह मतला लगभग 2 वर्ष पहले हुआ था लेकिन यह ग़ज़ल पूरी नहीं हो रही थी इसका कारण यह है कि मैं इस बहर में सहज महसूस नहीं कर रहा था यह बहर मेरी समझ में ही नहीं आ रही आज किसी तरह यह पूरी हुई है जानकार लोग बताएं कि क्या यह बहर ठीक से निभाई गई है या नहीं....

मरने का बहाना मिल जाता, जीने की सज़ा से बच जाते,

इक बार कभी वो आ जाते जो आ न सके आते आते ।

महसूस कभी होता कैसे वो दर्द का रिश्ता टूट गया…

Continue

Added by मनोज अहसास on July 3, 2021 at 12:06am — 7 Comments

कोविड 19 - 2021

221 - 2121 - 1221 - 212 

है कौन  ऐसा  जिसको  यहाँ आज  ग़म नहीं 

हर दिल में याद यादों के नश्तर भी कम नहीं 

दहलाता हर किसी को ये मंज़र है ख़ौफ़नाक

साँसें  हुईं   मुहाल  कि  मसला  शिकम  नहीं 

ग़म  को  वसीह  करते  ये अटके  हुए  बदन

नदियों के तट भी गोर-ए-ग़रीबाँ से कम नहीं 

आई  वबा ये कैसी  कि मातम  है  हर तरफ़ 

ग़मगीन  चहरे  लाशों पे  लाशें भी कम नहीं 

मस्कन भी थी ये गंगा है मद्फ़न भी आज…

Continue

Added by अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी on July 2, 2021 at 11:15pm — 17 Comments

ग़ज़ल (जगह दिल में तुम्हारे...)

1222 - 1222 - 1222 - 1222 

(बह्र-ए-हज़ज मुसम्मन सालिम) 

जगह  दिल में  तुम्हारे अब  भी थोड़ी  सी बची  है  क्या

मेरे  बिन  ज़िन्दगी  में  जो  कमी  सी  थी  वही  है  क्या

अभी  तक  आरज़ू  जो  दफ़्न  कर  रक्खी  है  सीने  में 

तड़प  उसकी जो  सुनता हूँ  वो तुमने भी  सुनी है  क्या

तेरे  साँसों   की  गर्मी  से  पिघल  कर   रह  गया  हूँ  मैं 

जो    हालत   हो   गई   मेरी  वही   तेरी  हुई   है   क्या 

मिले  हो जब भी…

Continue

Added by अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी on July 2, 2021 at 6:04pm — 7 Comments

देवता होना नहीं पर दानवों की बात सुन-लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'

१२२/२१२२/२१२२/२१२



कौन कहता घाव  अपने  सी  रहा है आदमी

आजकल तो खून  अपना  चूसता है आदमी।१।

*

देवता होना  नहीं  पर  दानवों  की बात सुन

आदमी की  पाँत  से  ही  लापता है आदमी।२।

*

जब हुआ उत्पन्न होगा तब भले वरदान हो

आज धरती के लिए बस हादसा है आदमी।३।

*

प्यास होने पर  मरुस्थल  छान लेता नीर…

Continue

Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on July 1, 2021 at 6:42pm — 12 Comments

स्वयं को आजमाने को तू खुलकर आ जमाने में

स्वयं को आजमाने को

तू खुलकर आ जमाने में

बहुत अनमोल है जीवन

गवाँता क्यों बहाने में

नदी के पास बैठा है

दबा के प्यास बैठा है

तुझे मालूम है, तुझमें

कोई एहसास बैठा है

किनारे कुछ न पाओगे

मिलेगा डूब जाने में

तुम्हारे सामने दुनिया

सुनो रणभूमि जैसी है

स्वयं का तू ही दुश्मन है

स्वयं का तू हितैषी है

कहीं पीछे न रह जाना

स्वयं से ही निभाने में

कहाँ दसरथ की दौलत …

Continue

Added by आशीष यादव on July 1, 2021 at 2:30am — 4 Comments

निष्पक्ष सत्य सुर्खी में -लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'

221-2121-1221-212



अखबार कोई आज भी अच्छा बचा है क्या

हर सत्य जिसमें नाप के छपता खरा है क्या।१।

*

राजा से पूछा  करता  जो  डंके  की चोट पर

जन के दुखों को देख के मानस दुखा है क्या।२।

*

हट  कर खबर  के  पृष्ठों  से  सम्पादकीय में

जनता के हित का मामला कोई उठा है क्या।३।

*

जिस का लगाता दाँव है पत्रकार जान तक

निष्पक्ष सत्य  सुर्खी  में  आता सदा है क्या।४।

*

पीड़ा हो जिस में लोक की केवल छपी हुई

नेता के नित्य कर्म को लिखना घटा है…

Continue

Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on June 30, 2021 at 6:41am — 3 Comments

आंखें

आंखें आंखें अद्भुत आंखें,नित नए रूप बदलती आंखें

सबकुछ कहतीं पर चुप रहतीं,नित नए रूप दिखाती आंखें 

कहीं तो ज्वालामुखी हैं आँखें,कहीं झील सी गहरी आंखें 

मंद मंद मुस्काती आँखें,कहीं उपहास उडा़ती आंखें 

हिरनी सी चंचल ये आँखें,डरी डरी सहमी सी आंखें 

लज्जा से भरी अवगुंठित आँखें,फिर टेढी चितवन वाली आंखें 

कहीं प्यार बरसाती आंखें,कहीं पर सबक सिखाती आंखें 

ममता भरी वो भीगी आँखें,सजदे में झुक जाती आंखें 

क्रोध से लाल धधकती आँखें,मेघों सी वो बरसती…

Continue

Added by Veena Gupta on June 29, 2021 at 6:54pm — 4 Comments

अहसास की ग़ज़ल : मनोज अहसास

2×15

वक़्त गुज़र जाएगा ये भी पल पल का घबराना क्या?

जो आँखों में ठहर न पाये उन सपनों से रिश्ता क्या?

अपनी मर्ज़ी का जीवन हो ज्यादा हो या थोड़ा हो,

मरना तो सबको है इक दिन घुट घुट कर फिर जीना क्या?

सोच समझ कर कदम बढ़ाना हर रस्ते पर धोखा है,

घर के किस्से,देश की बातें ,दीन धर्म का झगड़ा क्या?

पहली दफा जब मिले थे तुमसे वो दिन तो अब याद नहीं,

लेकिन अब तक सोच रहे हैं टूट गया वो रिश्ता क्या?

सबका भला करने की कोशिश कभी नहीं…

Continue

Added by मनोज अहसास on June 29, 2021 at 12:40am — No Comments

भटका रही हैं रोज ही रस्तों की खेतियाँ-लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'

221/2121/1221/212

पत्थर जमाना  बोये  जो  काटों की खेतियाँ

छोड़ो न तुम तो साथियों सुमनों की खेतियाँ।१।

*

कर लेंगे  ये  भी  शौक  से  बेटे  किसान के

लिख दो हमारे हिस्से में जख्मों की खेतियाँ।२।

*

ये जो  है  लोकतंत्र  का  धोखा  मिला  हमें

बन्धक रखी  हैं  वोट  दे  हाथों की खेतियाँ।३।

*

बदलो स्वभाव काम का हर दुख मिटाने को

किस्मत पे छाप  छोड़ती  कर्मों की खेतियाँ।४।

*

उजड़े नगर…

Continue

Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on June 28, 2021 at 1:28pm — No Comments

बूढ़ा ट्रैक्टर (नवगीत)

गड़गड़ाकर

खाँसता है

एक बूढ़ा ट्रैक्टर

डगडगाता

जा रहा है

ईंट ओवरलोड कर

सरसराती कार निकली

घरघराती बस…

Continue

Added by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on June 26, 2021 at 9:21pm — 11 Comments

मेरा भारत

भारत की जब बात है होती,ज्योति मेरे दिल की है जलती

कितना सुंदर देश है मेरा,कितनी पावन रीति यहाँ की

घर घर मंदिर गुरुद्वारा है,सबके बीच परस्पर प्रीती

संतोष बड़ा धन है जीवन में,सिखलाती ये अपनीसंस्कृती

नहीं थोपते धर्म किसी पर,ना ज़िद कोई विश्व विजय की

खुश हैं हम अपनी धरती पर,नहीं चाहिए ज़मीं दुजे की

स्वयं जियो और जीने दो,भारत का सिद्धांत यही

विश्व संस्कृती को अपनाते,वसुधैव कुटुंबकम है येही


मौलिक/अप्रकाशित

      वीणा

Added by Veena Gupta on June 24, 2021 at 9:48pm — 5 Comments

ग़ज़ल: ज़ुमुररुद कब किसी मुफ़्लिस के घर चूल्हा जलाता है

1222 1222 1222 1222

ज़ुमुररुद कब किसी मुफ़्लिस के घर चूल्हा जलाता है

मिरी जाँ ये तो बस शाहों कि पोशाकें सजाता है

रिआया भी तो देखो कितनी दीवानी सी लगती है

उसी को ताज़ कहती है जो इनके घर जलाता है

नगर में नफ़रतों के भी महब्बत कौन समझेगा

ए पागल दिल तू वीराने में क्यों बाजा बजाता है

हमारे हौसले तो कब के आज़ी टूट जाते पर

ये नन्हा सा परिंदा है जो आशाएँ जगाता है

कोई बेचे यहाँ आँसू तो कोई…

Continue

Added by Aazi Tamaam on June 24, 2021 at 6:00pm — 8 Comments

Monthly Archives

2025

2024

2023

2022

2021

2020

2019

2018

2017

2016

2015

2014

2013

2012

2011

2010

1999

1970

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Richa Yadav replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-180
"122 122 122 122  मिटेगा जुदाई का डर धीरे धीरे करेगी मुहब्बत असर धीरे धीरे 1 भरोसा नहीं…"
32 minutes ago
Poonam Matia replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-180
"सुलगता रहा इक शरर धीरे धीरे जलाता रहा वो ये घर धीरे धीरे मचाया हवाओं ने कुहराम ऐसा गिरा टूट कर हर…"
9 hours ago
Tilak Raj Kapoor replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-180
"रदीफ़ क़ाफ़िया में तो ऐसा कोई बंधन नहीं है इसलिये आपका प्रश्न स्पष्ट नहीं है। "
10 hours ago
Poonam Matia replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-180
"नमस्कारक्या तरही मिसरे में लिंग अनुसार बदलाव करसकते हैंक्यूंकि उसे मैं अपने अनुसार प्रयोग…"
11 hours ago
Tilak Raj Kapoor replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-180
"स्वागत है।"
11 hours ago
Tilak Raj Kapoor commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post करेगी सुधा मित्र असर धीरे-धीरे -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
"यह तरही के लिए है या पृथक से?"
11 hours ago
Admin replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-180
"स्वागतम"
11 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी posted a blog post

ग़ज़ल -मुझे दूसरी का पता नहीं ( गिरिराज भंडारी )

११२१२     ११२१२       ११२१२     ११२१२  मुझे दूसरी का पता नहीं ***********************तुझे है पता तो…See More
14 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on Ravi Shukla's blog post तरही ग़ज़ल
"आदरणीय रवि भाई , वाह ! बहुत बढ़िया ग़ज़ल कही है , दिली बधाई स्वीकार करें "
14 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - सुनाने जैसी कोई दास्ताँ नहीं हूँ मैं
"आदरणीय  निलेश भाई  हमेशा की तरह अच्छी ग़ज़ल हुई है,  हार्दिक  बधाई वीकार…"
14 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post कहते हो बात रोज ही आँखें तरेर कर-लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
"आदरणीय लक्ष्मण  भाई , अच्छी ग़ज़ल कही , बड़ी कठिन रदीफ़ चुनी आपने , हार्दिक  बधाई आपको "
14 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post करेगी सुधा मित्र असर धीरे-धीरे -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
"आदरणीय लक्ष्मण भाई , अच्छी ग़ज़ल हुई है , बधाई स्वीकार करें मक्ता शायद अपनी बात नहीं कह पा रहा…"
14 hours ago

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service