For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

आत्म घाती लोग - लघुकथा -

आत्म घाती लोग - लघुकथा - 

मेरे मोबाइल की  घंटी बजी। स्क्रीन पर दीन दयाल का नाम था। मगर दीन दयाल का स्वर्गवास हुए तो दो साल हो गये।  उसके परिवार ने तो  कभी भी याद ही नहीं किया। आज अचानक कैसे याद आ गई। 

मैंने मोबाइल उठाया। 

"हैलो अंकल, मैं  पवन बोल रहा हूँ।

हाँ बोल पवन, आज कैसे याद किया?" 

"कुछ नहीं अंकल, आपकी याद आ गयी। कैसे हैं आप?”

"मैं ठीक हूँ बेटा। तुम लोग कैसे हो?”

"सब ठीक हैं अंकल। आपसे एक मदद चाहिये थी।

"कैसी मदद बेटा?”

"कुछ पैसे चाहिये थे।" 

उसकी बात सुनते ही मेरे दिमाग में कुछ साल पुरानी एक घटना याद आ गयी। दीन दयाल भी अकसर पैसे मांगता रहता था। 

हम दोनों एक ही विभाग में थे। तनख्वाह भी बराबर ही थी। मेरा परिवार  बड़ा था। इसके बावजूद भी मैंने कभी किसी के आगे हाथ नहीं पसारे ।मेरा मानना था कि उधार प्रेम की कैंची होती है। उधार लेना और देना दोनों ही संबंध बिगाड़ते हैं। 

दीन दयाल का परिवार तो बहुत छोटा था। पति पत्नी और एक बेटा। कुल तीन सदस्य। लेकिन उसको शराब पीने की बुरी लत थी।वह भी रोज। इसलिये हमेशा हाथ पसारता रहता था। 

एक दिन मैंने उसे समझाने के उद्देश्य से सलाह देने की कोशिश की,"देख भाई दीन दयाल, रोज रोज उधार लेकर दारू पीना ठीक नहीं है।यह सेहत भी खराब कर देगी और आर्थिक रूप से भी कमजोर करेगी।

मेरी बात पर वह उखड़ गया,"देख भाई, तू मेरा दोस्त है इसका मतलब यह नहीं कि तू मेरे हर मामले में टाँग अड़ाये।

"अरे यार तू तो बुरा मान गया।

"नहीं भाई, मैं तेरी चिंता समझता हूँ। तुझे अपने पैसों की चिंता है। मैंने सब हिसाब मेरी डायरी में लिख रखा है। और मैंने अपने बेटे पवन से भी कह रखा है कि मुझे कुछ हो जाए तो तेरे पैसे जिम्मेदारी से लौटा दे।" 

आखिरकार वही हुआ जिसका मुझे डर था। एक दिन नशे में स्कूटर किसी की कार से टकरा दिया। और वह चल बसा। 

हम सब ने भाग दौड़ कर उसके बेटे को उसकी जगह नौकरी दिला दी। 

बाद में मुझे पता चला कि उसके नशेबाज दोस्तों ने उसके बेटे को भी अपनी मंडली में शामिल कर लिया। 

मैंने तब से उससे दूरी बना ली। 

आज उसका फोन आने पर सोचा कि इसे भी कुछ नसीहत देने की कोशिश करूं, शायद सुधर जाए, "पवन, तुम्हारे पापा ने भी मुझसे कुछ उधार लिया था। तुम्हें कुछ बताया था क्या?”

उधर से कोई उत्तर नहीं मिला तो मैंने बात आगे बढ़ाई,"पवन, मैंने सुना है कि तुम भी दीन दयाल के पद चिन्हों पर चल रहे हो?"

उधर से तुरंत फोन कट गया। 

मौलिक, अप्रकाशित एवं अप्रसारित

Views: 442

Facebook

You Might Be Interested In ...

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by TEJ VEER SINGH on August 2, 2021 at 7:35pm

हार्दिक आभार आदरणीय लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' जी।

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on August 1, 2021 at 8:26pm

आ. भाई तेजवीर जी, सादर अभिवादन । सुंदर समसामयिक कथा हुई है । हार्दिक बधाई स्वीकारें।

Comment by TEJ VEER SINGH on July 26, 2021 at 9:40am

हार्दिक आभार आदरणीय समर कबीर साहब जी।

Comment by Samar kabeer on July 25, 2021 at 12:25pm

जनाब तेजवीर सिंह जी आदाब, अच्छी लघुकथा लिखी आपने, बधाई स्वीकार करें ।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity


सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post कहीं खो गयी है उड़ानों की जिद में-गजल
"आदरणीय लक्ष्मण भाई , ग़ज़ल के लिए आपको हार्दिक बधाई "
Monday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी and Mayank Kumar Dwivedi are now friends
Monday
Mayank Kumar Dwivedi left a comment for Mayank Kumar Dwivedi
"Ok"
Sunday
Sushil Sarna commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post दोहे -रिश्ता
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी रिश्तों पर आधारित आपकी दोहावली बहुत सुंदर और सार्थक बन पड़ी है ।हार्दिक बधाई…"
Apr 1
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-120
"तू ही वो वज़ह है (लघुकथा): "हैलो, अस्सलामुअलैकुम। ई़द मुबारक़। कैसी रही ई़द?" बड़े ने…"
Mar 31
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-120
"गोष्ठी का आग़ाज़ बेहतरीन मार्मिक लघुकथा से करने हेतु हार्दिक बधाई आदरणीय मनन कुमार सिंह…"
Mar 31
Manan Kumar singh replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-120
"आपका हार्दिक आभार भाई लक्ष्मण धामी जी।"
Mar 31
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-120
"आ. भाई मनन जी, सादर अभिवादन। बहुत सुंदर लघुकथा हुई है। हार्दिक बधाई।"
Mar 31
Manan Kumar singh replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-120
"ध्वनि लोग उसे  पूजते।चढ़ावे लाते।वह बस आशीष देता।चढ़ावे स्पर्श कर  इशारे करता।जींस,असबाब…"
Mar 30
Admin replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-120
"स्वागतम"
Mar 30
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-177
"आ. रिचा जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए आभार।"
Mar 29
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-177
"आ. भाई अजय जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए आभार।"
Mar 29

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service