अंतरराष्ट्रीय_पुरुष_दिवस
पुरूष क्यूँ
रो नहीं सकता?
भाव विभोर हो नहीं सकता
किसने उससे
नर होने का अधिकार छिन लिया?
कहो भला
उसने पुरुष के साथ ऐसा क्यूँ किया?
क्या उसका मन आहत नहीं होता?
क्या उसका तन
तानों से घायल नहीं होता?
झेल जाता है सब कुछ
बस अपने नर होने की आर में
पर उसे रोने का अधिकार नहीं है
रोएगा तो कमज़ोर माना जायेगा
औरों से उसे
कमतर आँका जायेगा
समाज में फिर तिरस्कार होता है
अपनों के हीं सभा…
Added by AMAN SINHA on November 19, 2022 at 6:00pm — No Comments
122 122 122 122
अभी दुश्मनी में वो शिद्दत नहीं है
हवा को चराग़ों से दिक़्क़त नहीं है
सभी को यहाँ मैं ख़फ़ा कर चुका हूँ
मुझे सच छुपाने की आदत नहीं है
मुझे है बहुत कुछ बताने की चाहत
मगर बात करने की मोहलत नहीं है
किसी से तुझे क्यों मिलेगी मुहब्बत
तुझे जब तुझी से मुहब्बत नहीं है
हक़ीक़त कहूँ तो मैं हूँ ख़ैरियत से
मगर ख़ैरियत में हक़ीक़त नहीं है
मिरे दिल पे तेरी हुक़ूमत है…
ContinueAdded by Zaif on November 19, 2022 at 12:07am — 4 Comments
(आ. समर सर जी की इस्लाह के बाद)
(22 22 22 22)
सोचा कुछ तो होगा उसने
हमको मुड़कर देखा उसने
कौन वफ़ा करता है ऐसी
सारी उम्र सताया उसने
जुड़ता कैसे ये टूटा दिल
टुकड़े करके छोड़ा उसने
जब-जब ज़िक्र-ए-उल्फ़त छेड़ा
तब-तब मुझको टोका उसने
उसको कौन समझ सकता था
बदला रोज़ मुखौटा उसने
जिसको सबसे बढ़कर चाहा
छोड़ा मुझको तन्हा उसने
जाकर वापस…
ContinueAdded by Zaif on November 18, 2022 at 7:32pm — 6 Comments
सियाह शब की रिदा पार कर गया सूरज
जो सुब्ह आई तो उम्मीद भर गया सूरज
बड़ा ग़ुरूर तमाज़त पे था इसे लेकिन
तपिश हयात की देखी तो डर गया सूरज
हमारे साथ भी रौनक हमेशा चलती है
कि जैसे नूर उधर है जिधर गया सूरज
ग्रहण लगा के जहाँ ने मिटाना चाहा मगर
मेरे वजूद का फिर भी संँवर गया सूरज
ज़मीं से दूर बहुत दूर जब ये रहता है
तो कैसे दरिया के दिल में उतर गया सूरज
यतीम बच्चों ने वालिद की मौत पर सोचा
किसी…
Added by Anjuman Mansury 'Arzoo' on November 17, 2022 at 11:45pm — 4 Comments
दोहा त्रयी :मैं क्या जानूं
मैं क्या जानूं आज का, कल क्या होगा रूप ।
सुख की होगी छाँव या , दुख की होगी धूप ।।
मैं क्या जानूं भोर का, होगा क्या अंजाम।
दिन बीतेगा किस तरह , कैसी होगी शाम ।।
मैं क्या जानूं जिन्दगी, क्या खेलेगी खेल ।
उड़ जाए कब तोड़ कर , पंछी तन की जेल ।।
सुशील सरना / 17-11-22
मौलिक एवं अप्रकाशित
Added by Sushil Sarna on November 17, 2022 at 12:00pm — 6 Comments
मैना बैठी सोच रही है
पिंजरे के दिल में
मिल जाता है दाना पानी
जीवन जीने में आसानी
सुनती सबकी बात सयानी
फिर भी होती है हैरानी
मुझसे ज्यादा ख़ुश तो
चूहा है अपने बिल में
जब तक बोले मीठा-मीठा
सबको लगती है ये सीता
जैसे ही कहती कुछ अपना
सब कहते बस चुप ही रहना
अच्छी चिड़िया नहीं बोलती
ऐसे महफ़िल में
बहुत सलाखों से टकराई
पर पिंजरे से निकल न पाई
चला न…
ContinueAdded by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on November 16, 2022 at 11:30am — 4 Comments
बालदिवस पर चन्द दोहे :. . . .
बाल दिवस का बचपना, क्या जाने अब अर्थ ।
अर्थ चक्र में पीसते, बचपन चन्द समर्थ ।।
बाल दिवस से बेखबर, भोलेपन से दूर ।
बना रहे कुछ भेड़िये , बच्चों को मजदूर ।।
भाषण में शिक्षा मिले, भाषण ही दे प्यार ।
बालदिवस पर बाँटते, नेता प्यार -दुलार ।।
फुटपाथों पर देखिए, बच्चों का संसार ।
दो रोटी की चाह में , झोली रहे पसार ।।
गाली की लोरी मिले, लातों के उपहार ।
इनका बचपन खा गया, अर्थ लिप्त संसार ।।
बाल दिवस पर दीजिए,…
ContinueAdded by Sushil Sarna on November 14, 2022 at 3:30pm — 2 Comments
सावन सूखा बीत रहा है, एक बूंद की प्यास में
रूह बदन में कैद है अब भी, तुझ से मिलने की आस में
जैसे दरिया के लहरों, में कश्ती गोते खाते है
हम तेरी यादों में हर दिन, वैसे हीं डूबे जाते है…
ContinueAdded by AMAN SINHA on November 14, 2022 at 9:47am — No Comments
दोहे बाल दिवस पर
***
लेता फिर सुधि कौन है, दिवस मना हर साल।
वन्चित बच्चे जानते, बस बच्चों का हाल।।
*
कितने बच्चे चोरते, निसिदिन शातिर चोर।
लेकिन मचता है नहीं, तनिक देश में शोर।।
*
भूखा बच्चा रोकता, अनजाने की राह।
बासी रोटी फेंक मत, तेरे पास अथाह।।
*
नेता करते देह का, धन के बल आखेट।
कितने बच्चे सो रहे, निसदिन भूखे पेट।।
*
बच्चे हर धनवान के, हैं सुख से भरपूर।
निर्धन के सुख खोजने, बन जाते…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on November 12, 2022 at 10:11pm — 2 Comments
कह रहे हैं आज हम भी तानकर सीना।
प्रीत ने चलना सिखाया, प्रीत ने जीना।।
*
थे भटकते फिर रहे पथ में अकेले।
आप आये तो जुड़े हम से बहुत मेले।।
था नहीं परिचय स्वयं से, तो भला क्यों।
कौन अनजाना बुलाता आन सुख लेले।।
*
पीर ही थाती हमारी बन गयी थी पर।
आप की मुस्कान ने हर दर्द है छीना।।
*
हर चमन के फूल मसले शूल से खेले।
हम रहे अब तक महज संसार में ढेले।।
नेह के हर बोध से अनजान जीवनभर।
वासना की कोख में नित क्या नहीं झेले।।…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on November 12, 2022 at 5:30am — 2 Comments
कर्तव्य-बोध
मरे कौवे ली लाश तीन दिनों से उस पॉश कॉलोनी के बीचोबीच गुजरनेवाली सड़क पर पड़ी थी। गाड़ियाँ गुजरतीं,उसे रौंदतीं। लोग आते। चले जाते। दो लोग अपने अच्छी नस्ल के कुत्तों को सायंकालीन प्राकृतिक क्रिया से निबटारा कराने के लिए भ्रमण के बहाने वहाँ से गुजरे। कौवे की शेष बची लाश पर अकस्मात एक का पैर पड़ गया।नाक-भौं सिकोड़ते हुए वह गुर्राया,
‘कैसे लोग इधर रहते हैं! सड़ी लाश के परखच्चे उड़ रहे हैं। किसी को कोई चिंता ही नहीं।’
‘नगर…
ContinueAdded by Manan Kumar singh on November 10, 2022 at 9:28am — 4 Comments
भिखारी छंद -
24 मात्रिक - 12 पर यति - पदांत-गा ला
साजन के दीवाने , दो नैना मस्ताने ।
कभी लगें ये अपने , कभी लगें बेगाने ।।
पागल दिल को भाते, उसके सपन सुहाने ।
खामोशी की बातें, खामोशी ही जाने ।।
=×=×=×=
रैन काल के सपने , भोर लगें अनजाने ।
अवगुंठन में बनते , प्यार भरे अफसाने ।।
बिन बोले ही होतीं , जाने क्या-क्या बातें ।
मन से कभी न जातीं , आलिंगन की रातें ।।
सुशील सरना…
ContinueAdded by Sushil Sarna on November 8, 2022 at 4:54pm — 4 Comments
2122 1212 22/112
जितनी क़िस्मत में थी लिखी रोटी
सबको उतनी ही मिल सकी रोटी
मुफ़्लिसी, भूख, दर्द, दुख, आंसू
हां, बहुत कुछ है बोलती रोटी
याद परदेस में भी आती है
मां के हाथों की वो बनी रोटी
ज़ाइक़ा कुछ अलग ही है इनका
वो नमक-मिर्च, वो दही-रोटी
रो रहा है सड़क पे इक बच्चा-
'दो दिनों से नहीं मिली रोटी'
कीं बहुत 'ज़ैफ़' कोशिशें हमने
बन न पाई वो गोल-सी…
Added by Zaif on November 8, 2022 at 5:30am — 8 Comments
किसका बच्चा
सँवरी के नाक-नक्श तीखे हैं। मुँह का पानी थोड़ा फीका पड़ा है,तो क्या? उसे दूल्हे के लिए कभी तरसना नहीं पड़ता। चढ़ती जवानी में उसे दिल्ली के दिल वाले दूल्हे का संग मिला। खूब रंगरेलियाँ हुईं।फिर उसे लगा कि उसका दूल्हा किसी और पर फिदा है।स्मृति-पटल पर वे लमहे उभरते, जब उसके हर नाज-नखरे कुबूल होते थे। अब उसे अपने भाव में कमतरी का अहसास हुआ। बिदक गई। दिल्लीवाले को चिढ़ाने के लिए उसने एक ठेंठ भोजपुरिया दूल्हा ढूँढा। उसके संग हो गई।प्यार…
ContinueAdded by Manan Kumar singh on November 7, 2022 at 3:14pm — 2 Comments
Added by AMAN SINHA on November 7, 2022 at 2:29pm — 1 Comment
दुर्घटना ....(लघुकथा)
"निकल लो उस्ताद । बहुत भयंकर दुर्घटना हुई है । लगता है वो शायद मर गया है ।" कल्लू हेल्पर ने ड्राइवर रघु से कहा ।
रघु ने व्यू मिरर से पीछे देखा तो दुर्घटना स्थल पर भीड़ दिखी । रघु ने ट्रक भगाने में भलाई समझी । रघु वहाँ से चला तो घर जा कर रुका।
"कल्लू ये घर पर भीड़ कैसी है ।" रघु ट्रक रोकते हुए बोला ।
भीड़ को चीरते हुए रघु जैसे ही अन्दर पहुंचा, तो देख कर सन्न रह गया । उसका 10 साल का इकलौता बेटा रक्तरंजित बीच आँगन में तड़प रहा…
ContinueAdded by Sushil Sarna on November 6, 2022 at 12:52pm — 2 Comments
अरकान : 2122 1212 22/112
आशिक़ों का भला करे कोई
मौत आए, दुआ करे कोई
पाँव में फूल चुभ गया उनके
जाए जाए दवा करे कोई
हाल पे मेरे रोता है शब भर
सुब्ह मुझ पर हँसा करे कोई
फ़र्क़ ज़ालिम पे कुछ नहीं पड़ता
चाहे कुछ भी कहा करे कोई
ये नहीं होता, ये नहीं होगा
हम कहें और सुना करे कोई
इन रईसों के शौक़ की ख़ातिर
मरता हो तो मरा करे कोई
बेवफ़ा मुझको कह रहा है…
ContinueAdded by Mahendra Kumar on November 4, 2022 at 1:37pm — 12 Comments
221 2121 1221 212
बेहद ज़रूरी है तू सभी को बिसार कर,
कुछ रोज अपने आप से जी भर के प्यार कर।
उलझन हो तेरी खत्म, मेरा दर्द भी मिटे,
इक बार मेरे दिल पे ज़रा दिल से वार कर।
कुछ फासले अधूरे हैं अब भी हमारे बीच,
इतना सफर इक दूसरे के बिन गुजार कर।
लगता है मैं भी मतलबी सा हो गया हूँ अब
सारी उमर की ख्वाहिशें दिल में ही मार कर।
अहसान भी हो जाएगा और दाम भी अलग
इस दौर में तू सोच समझ कर उधार…
Added by मनोज अहसास on November 2, 2022 at 11:06pm — 4 Comments
बुनिया उम्र में बड़ी थी,तो क्या?गोरी चिट्टी,छरहरी थी। कमलू से ब्याह दी गई।अब कमलू अपना पाँच बार फेल हुआ मैट्रिक का इम्तहान संभाले, या बुनिया को निहारे? वह नाराज रहने लगी।
एक शाम बुनिया की तबीयत बिगड़ गई। हाथ-पैर पटकती। सिर दीवार से टकराती। घरेलू डॉक्टर की दवाएँ काम न आईं। चतुरी चाची बोलीं, ‘हवा लगी है।’
‘फिर क्या करें?’ घरवालों ने पूछा।
‘ओझा बुलाओ। और…
ContinueAdded by Manan Kumar singh on November 2, 2022 at 3:00pm — 2 Comments
221 2121 1221 212
आँखों को रतजगे मिले हैं जल भराव भी
उल्फ़त में दुख मिले तो मिले गहरे भाव भी
कानों को आहटें सुने बर्षों गुज़र गये
बुझने लगे हैं आँखों के जलते अलाव भी
कुछ इसलिये खमोशियाँ ये रास आ गईं
दुनिया न जान ले कहीं अंतस के घाव भी
गर डूबना नसीब है तो फ़िक़्र क्यों करूँ
दरिया में अब उतार दी है टूटी नाव भी
वो साथ दे सका न बहुत देर तक मेरा
इक तो हवा ख़िलाफ़ थी उसपे बहाव भी
वो चाँद है,वो चाँद भला किसका हो…
Added by बृजेश कुमार 'ब्रज' on November 1, 2022 at 6:30pm — 16 Comments
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