For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

              मौन
                          आचार्य शीलक राम
सरल-सहज है तुम्हारी सूरत
देवलोक की जैसे कोई मूरत
मूरत होकर भी अमूर्त लगती
भीतर जाने को शक्ति जगती । 1
देख-देखकर कोई समझ न पाए
बिन समझे क्या खाक बताए
सारा खेल है समझ, अनुभूति का
प्रज्ञा-रूप एक दिव्य द्युति का । 2
अवलोकन करते जो बाहरी रूप का
वे रहस्य न जाने शाश्वत् अरूप का
क्षणभंगुर है बाहरी सब दिखावा
मिलेगा अंत में बस पछतावा । 3
मैदानी क्षेत्र में जैसे नदिया बहती
रहकर मौन बहुत कुछ कहती
बहती रहती वह शांत भाव से
संघर्ष किए बिन, बिना दुराव से ।4
तृप्तिदायी है तुम्हारी झलक
मन करता देखने को अपलक
भीतर तक शांति छा जाती
अपनी ऊर्जा से खूब नहलाती ।5
कामुकता नहीं, आनंद मिलता
हृदय चक्र में प्रसून खिलता
आक्रामकता गायब हो जाए
अंतर्मुखता का पथ सुझाए ।6
नहीं लगता पाखंड और छल
अंतःकरण पर लगता कम मल
ओस-बिंदु प्रभात सी तुम
रहती मौन सदैव गुमसुम ।7
आषाढ़ मास की तुम फुहार सी
ऋतुराज बसंत की बहार सी
देती संतुष्टि और शीतलता
शांति, मौन का दीपक जलता ।8
सुप्रभात की अरूण लालिमा
मिटाए किसी साधक की कालिमा
लगता ऐसे प्रथम नव-दृष्टि
परमपिता की अद्भूत सी सृष्टि ।9
शीतल सरोवर में नव-कली सी
जो भी निहारे उस हेतु भली सी
अवर्णित, कमनीय, शांत चित्त सी
सहायक, मित्र, सर्व के हित सी ।10
शांत सरोवर बिना लहर के
अद्भूत मस्ती आया पहर के
संभव नहीं है वर्णन पूरा
कर-करके भी रहे अधूरा ।11
कुसुम कोई खिलने से पहले
सुप्त यौवन को कुछ भी कह ले
रहस्य प्रकट करता नहीं अपने
लोक-परलोक के लेता सपने ।12
सुखा पल्लव पेड़ से आता
जीवन जीया, छूट गया नाता
सहज भाव से गिरता नीचे
ध्यान शांति से सबको सींचे ।13
नवांकुर जैसे अभी-अभी फटे
बीज खोल से गए हैं छूटे
शांति में लग जाता गोता
कहना असंभव, जो कुछ होता ।14
परम सुहानी लगती मुस्कान
ब्रह्मा की कोई भेजी मेहमान
इसके आगे सब अर्थहीन
कोई भी तत्त्पर करने को यकीन ।15
मुस्कान तुम्हारी रहस्यों का सागर
कर-करके भी हो न उजागर
अर्थों की इनमें परत घनी हैं
नीचे, ऊपर कई जनी हैं ।16
बढ़ता कपट ज्ञान साथ में
विनाश अस्त्र आ जाता हाथ में
लगता ऐसे तुम्हें निहारकर
कुटिलता भागी तुमसे हारकर ।17
निश्चल, शांत, मौन कोई ताल
बिना लहर के, बिना जंजाल
मुख की आभा इससे संपन्न
मिले न तृप्ति; अभागा, विपन्न ।18
मधुर-भाषण वाणी से बोले
परम सुखदायक, न हृदय छोले
मन नहीं भरता तुमको सुनकर
ब्रह्मा ने बनाया, तुमको चुनकर ।19
तुम पर सजता, लज्जा का गहना
कहां से सीखा, ऐसे रहना
नजरें नीची, है मंद मुस्कान
आदर, प्रतिष्ठा और मान-सम्मान ।20
स्वच्छ सरोवर जलमुरगाई
बिन हलचल के, तुम कैसे आई
तृप्त हों नेत्र, देखने मात्र से
न दुग्ध दुषित हो, स्वच्छ पात्र से ।21
लगता हृदय, दुग्ध धवल सा
पूरा खिला सरोवर कमल सा
झूठी हैं यहां सब उपमाएं
तोड़नी पड़ेंगी सब प्रतिमाएं ।22
आंखें हैं निर्दोष बाल सी
दर्पण समान एकरस चाल सी
कपट, स्वार्थ, अहम् के बिना
सार्थक जीवन, सिखा दे जीना ।23
आंखें ‘स्व’ का होती दर्पण
कुकर्म, करूणा या हो समर्पण
इनकी भाषा होती अजीब
सत्य दिखाने की, ये तरकीब ।24
केश-राशि घनघोर अंधकार
लगे मूढ़ों को यह एक दिवार
मुख की आभा इसके संग
अज्ञानी करे जैसे सत्संग ।25
भीतर जिज्ञासा ऊपर मौन
अज्ञानी खोजे, है तू कौन
खोज-खोजकर जाए हार
मिले न उसको तुम्हारा द्वार ।26
प्रश्न बहुत हैं, लज्जा कहने में
न पीड़ा दे, ले मस्ती सहने में
समझे तुमको; विनम्र, विनीत
भीतर-बाहर से होकर पुनीत ।27
तरूवर झुका, फल भार से
लोचन नीचे, इसी प्रकार से
सृष्टि हो जाए, ऊपर पलकें
नीचे गिरना, विनाश की ढलकें ।28
मौन का धारण, कम बोलना
सही-सही बात को तोलना
है ही नहीं, शून्य आचरण
मस्ती पूरी, ऐसे आकरण ।29
बातों से लगता, कुछ चाहती करना
संकल्प, साहस संग; कोई भी डर ना
दृढ़ यदि इन पर, रहना हो जाए
सफलता फिर, स्वतः ही आ जाए ।30
अद्भूत साधन है, दृढ़ संकल्प
कोई भी नहीं है, इसका विकल्प
इसको साधना अभी बाकी है
सर्व सफलता की जो झांकी है ।31
मैत्री, प्रेम को, जगाओ भीतर से
पूर्ण समर्पण, अपने मित्र से
तभी कोई दिव्य घटना घटेगी
भीतर छुपी हुई, पीड़ा मिटेगी ।32
आचरण हो यदि, खिले फूल सा
संवेदनशीलता के अनुकूल सा
प्रेम सुगंध दे, आए जो समीप
भिक्षुक, स्वामी या हो महीप ।33
मैत्री, प्रेम, करूणा हो किसी को
हो जाए समर्थ, गाड़ी धंसी को
जीवन के ये अद्भूत गहने हैं
तुमने ये अभी, नहीं पहने हैं 34
प्रेम करने से, बढ़ता ही जाता
प्राणवान वह ‘स्व’ को पाता
कुंआ गंदा, बिन पनघट के
भरती नीर नारी जमघट के। 35
नदियां, झरने; पानी देते
बदलते में बादल कुछ न लेते
सूरज, चंदा बिन स्वार्थ का
जीवन जीते, बस परमार्थ का । 36
प्रेम देता, लेता नहीं है
जीवनशैली यही सही है
देने में ही, कुछ मिलता ऐसा
दे सकता नहीं, रूपया-पैसा ।37
मैत्री, प्रेम, करूणा, समर्पण
बन जाओ ऐसे, जैसे दर्पण
सार्थकता तभी इस योनि की
बचे न शंका, अनहोनी की ।38
मौनी, मौनू, माना ममता
क्या करे कोई तुमसे समता
ठीक नहीं है, यहीं पर रूकना
अपनी हार के आगे झुकना ।39
चरैवेति-चरैवेति, जीवन पथ है
इति कहां, अभी तो अथ है
रूको, झुको नहीं, जाओ बढ़ते
विकास की सीढ़ियां जाओ चढ़ते ।40
नर नहीं देवी, तुम नारी हो
सनातन से नर पर, तुम भारी हो
आजादी से, सीखो तुम रहना
अत्याचार, कभी मत सहना ।41
अर्धांग, नारी और नर हैं
एकत्व में अनेक अवसर हैं
अलग-अलग हैं, दोनों अधूरे
रहते तड़पते, होने को पूरे ।42
जीवन में कोई, मित्र हो ऐसा
भीतर जाए, उसे छूले जैसा
सुख-दुःख कह दें, बिना संकोच
अहम् रूपांतरित, जीवन में लोच ।43
जग में कोई है, अपने करीब
अपना भी है, अच्छा नसीब
सच्चा मित्र दे, ऐसी प्रतीति
प्रेम भरा आचरण, ऐसी ही नीति । 44
सच्चे मित्र से, दिव्य जग सारा
लगे न निरर्थक, नहीं आवारा
ओज, शक्ति, उल्लास, उमंग
पल-पल हो रहना, इनके ही संग ।45
संकीर्णता, हिचक, शर्म बुरी है
नाव किसकी, इनके संग तिरी है
त्यागो इनको, करो जीवन स्वागत
दुःख मिट जाएं, आगत-अनागत ।46
एक भी मित्र, मिले पूरे जीवन में
सुख, शांति, तृप्ति हो; तन और मन में
धन्य हो जाए, यह योनि मानुष
ईर्ष्या, घृणा मिटें, रहे न कोई कलुष ।47
तुम्हारा ऐसा है, चाल व आचरण
उतरो भीतर, न करो इसका विस्मरण
संभावनाएं तुममे, बहुत सी हैं भीतर
पहचानों उनको, बनो सही मित्र ।48
शील, समाधि, प्रज्ञा; मौन आमंत्रण
क्रूर, हिंसक बना दे, कड़ा नियंत्रण
करो स्वागत तैयारी, खोलो बंद द्वार
मस्ती, आनंद का, जानों तुम सार ।49
जीवन अल्प है, दुःख है घने
ढोंगी, कपटी हैं, यहां बहुत जने
व्यर्थ जीवन खोना, मूढ़ता निरी है
कोई भी चेतना, नहीं इस हेतु उतरी है ।50
सार्थक करो तुम, अपने नाम को
लीला समझो, इस दिव्य काम को
मौन के पीछे, खजाना आनंद रत्न है।51
रचना "मौलिक व अप्रकाशित" है।

Views: 206

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by SURENDRA KUMAR SHUKLA BHRAMAR on December 10, 2022 at 5:43pm
शिक्षाप्रद पद और क्षणिकाएं, बहुत खूब , जय जय श्री राधे।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on नाथ सोनांचली's blog post कविता (गीत) : नाथ सोनांचली
"आ. भाई नाथ सोनांचली जी, सादर अभिवादन। अच्छा गीत हुआ है। हार्दिक बधाई।"
yesterday
Admin posted a discussion

"ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-118

आदरणीय साथियो,सादर नमन।."ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-118 में आप सभी का हार्दिक स्वागत है।"ओबीओ…See More
Sunday
Nilesh Shevgaonkar replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-175
"धन्यवाद सर, आप आते हैं तो उत्साह दोगुना हो जाता है।"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-175
"आ. भाई चेतन जी, सादर अभिवादन। गजल पर उपस्थिति और सुझाव के लिए धन्यवाद।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-175
"आ. रिचा जी, अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए धन्यवाद।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-175
"आ. भाई सौरभ जी, सादर अभिवादन। आपकी उपस्थिति और स्नेह पा गौरवान्वित महसूस कर रहा हूँ । आपके अनुमोदन…"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-175
"आ. रिचा जी अभिवादन। अच्छी गजल हुई है। हार्दिक बधाई। "
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-175
"आ. भाई दयाराम जी, सादर अभिवादन। अच्छी गजल हुइ है। हार्दिक बधाई।"
Saturday
अजय गुप्ता 'अजेय replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-175
"शुक्रिया ऋचा जी। बेशक़ अमित जी की सलाह उपयोगी होती है।"
Saturday
अजय गुप्ता 'अजेय replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-175
"बहुत शुक्रिया अमित भाई। वाक़ई बहुत मेहनत और वक़्त लगाते हो आप हर ग़ज़ल पर। आप का प्रयास और निश्चय…"
Saturday
अजय गुप्ता 'अजेय replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-175
"बहुत शुक्रिया लक्ष्मण भाई।"
Saturday
Richa Yadav replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-175
"आदरणीय अजय जी नमस्कार अच्छी ग़ज़ल हुई है बधाई स्वीकार कीजिये अमित जिनकी टिप्पणी से सीखने को मिला…"
Saturday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service