जंग से जमीन में
घाव बहुत होते हैं
जख्म गर भरे भी तो
रोम-रोम रोते हैं !
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इन्सां ने इन्सां को
इन्सां सा प्यार दिया
स्वर्ग धरा लाये आज …
ContinueAdded by SURENDRA KUMAR SHUKLA BHRAMAR on April 12, 2012 at 10:30pm — 12 Comments
Added by विन्ध्येश्वरी प्रसाद त्रिपाठी on April 12, 2012 at 8:00pm — 13 Comments
Added by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on April 12, 2012 at 7:00pm — 5 Comments
तुम हर पल क्यूँ सजग रहे
कौन व्यथा है दबी हिय में
किस अगन में संत्रस्त रहे |
घूर रहे क्यूँ रक्तिम चक्षु
कुपित अधर क्यूँ फड़क रहे
दावानल से केश खुले क्यूँ
तन से शोले भड़क रहे |
प्रदूषण ने ध्वस्त किये
जो, बहु तेरे संबल रहे
कतरा -कतरा टूट-टूट कर
चुपके -चुपके पिघल रहे…
ContinueAdded by rajesh kumari on April 12, 2012 at 6:30pm — 19 Comments
प्यार का ख्याल.....
प्यार का ख्याल गर खाब मैं ही हो आये,
तो ज़िन्दगी खूब से खूबतर हो जाये.
हर आँख से…
ContinueAdded by Monika Jain on April 12, 2012 at 4:31pm — 5 Comments
Added by Deepak Sharma Kuluvi on April 12, 2012 at 12:48pm — No Comments
Added by MAHIMA SHREE on April 12, 2012 at 11:45am — 12 Comments
मै भी लड़ना चाहती हूँ! मुझे लड़ने दो!
हार का मै स्वाद चखना चाहती हूँ.
जीत का अभ्यास करना चाहती हूँ.
.
प्रेयसी बन बन के हो गई हूँ बोर!
मै नए किरदार बनना चाहती हूँ.
मै भी जिम्मेदार बनना चाहती हूँ.
.
सीता-गीता मेरे अब नाम मत रखो!
धनुष का मै तीर बनाना चाहती हूँ,
गरल पीकर रूद्र बनना चाहती हूँ.
.
अपने पास ही रखो हमदर्दी अपनी!
खड़े होकर सफ़र करना चाहती हूँ,
'बसो' का मै ड्राइवर बनना चाहती हूँ.
मै…
ContinueAdded by राकेश त्रिपाठी 'बस्तीवी' on April 12, 2012 at 11:03am — 10 Comments
आज नहीं तो कल सबके ही दिन आएँगे
Added by Deepak Sharma Kuluvi on April 12, 2012 at 10:33am — 2 Comments
Added by Sarita Sinha on April 12, 2012 at 10:00am — 24 Comments
Added by Neelam Upadhyaya on April 12, 2012 at 10:00am — 2 Comments
मच्छर आवाज़ उठाता है
‘सिस्टम’ ताली बजाकर मार देता है
और ‘मीडिया’ को दिखाता है भूखे मच्छर का खून
अपना खून कहकर
मच्छर बंदूक उठाते हैं
‘सिस्टम’ ‘मलेरिया’ ‘मलेरिया’ चिल्लाता है
और सारे घर में जहर फैला देता है
अंग बागी हो जाते हैं
‘सिस्टम’ सड़न पैदा होने का डर दिखालाता है
बागी अंग काटकर जला दिए जाते हैं
उनकी जगह तुरंत उग आते हैं नये अंग
‘सिस्टम’ के पास नहीं है खून बनाने वाली…
ContinueAdded by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on April 11, 2012 at 8:30pm — 8 Comments
किसका किसका हिसाब बाक़ी है,
जाने क्या क्या अज़ाब बाक़ी है......
नब्ज़ देखो अभी भी चलती है,
हसरते टूट गयीं जान अब भी बाक़ी है.....
दिलों के ज़ख्म हैं आँखों की राह रिसते हैं,
तुम समझते हो कि आँसू हमारे बाक़ी हैं.....
सुनो एक बात पूछनी थी, मगर रहने दो,
तुम को क्या पता एहसास कहाँ बाक़ी है.....
मेरे गुनाहों की…
ContinueAdded by Sarita Sinha on April 11, 2012 at 6:11pm — 15 Comments
Added by Deepak Sharma Kuluvi on April 11, 2012 at 5:27pm — 2 Comments
लम्हा-लम्हा सरक रहा है,
Added by AVINASH S BAGDE on April 11, 2012 at 2:30pm — 5 Comments
कभी प्यार हमें भी हो सकता है , हमने सोचा न था
Added by Rohit Dubey "योद्धा " on April 11, 2012 at 11:00am — 5 Comments
जान ले लेगा वो तिल, लब पे जो बनाया है .
मेरी कलम ने तुम्हें , महबूबा बनाया है .
मुस्कुराती हो जब तो गालों पे, जानलेवा भंवर सा बनता है.
खोलती हो अदा से जब पलकें , झील में दो कँवल सा खिलता है.
साथ जिसको नहीं मिला तेरा, क्यों यहाँ ज़िन्दगी गंवाया है.
मेरी कलम ने तुम्हें , महबूबा बनाया है .
हुस्न की देवी तेरे ही दम से, खिलते हैं फूल दिल के गुलशन में.
देखकर तुमको ही ये हुरे ज़मीं , पलते हैं इश्क दिल की धड़कन में.
हर कोई देखता है तुमको ही, रब…
Added by satish mapatpuri on April 11, 2012 at 12:42am — 11 Comments
सुबह-सुबह एक अजीब सा खयाल आया. आप कहेंगे ये सुबह-सुबह क्यों ? खयाल तो अक्सर रात में आते हैं, जोरदार आते हैं. फिर ये सुबह के वक्त कैसे आया ! यानि, कोई रतजगा था क्या कल रात जो इस खयाल को आने में सुबह हो गयी ? नहीं, ऐसा कुछ नहीं है. वस्तुतः, मेरे हिसाब से, ये खयाल कुछ अजीब सा था, इसीलिये इसे समझते-बूझते सुबह हो गयी.
चूँकि सुबह के वक्त जो कुछ भी आता है बहुत जोर से आता है, सो, खयाल की भी हालत कुछ वही थी. एकदम से बाहर निकल आने को बेकरार ! अब सुबह-सुबह अपना खयाल कहाँ, किसपे साफ़ करुँ ? एकदम…
ContinueAdded by Shubhranshu Pandey on April 10, 2012 at 10:00pm — 19 Comments
(प्रस्तुत पंक्तियों को उल्लाला छंद में लिखने का प्रयास किया गया है,इसके प्रत्येक चरण में 13-13मात्रायें होती हैं।लघु-गुरू का कोई विशेष नियम नहीं होता,किन्तु 11वीं मात्रा लघु होनी चाहिए)
भूखी आंतों के लिए,
सेंसेक्स बस बवाल है।
तीसमार खां कह रहे,
मार्केट में उछाल है॥
जेब नहीं कौड़ी फुटी,
जनता सब बेहाल है।
भारत विकसित हो रहा,
वाह!बढ़िया कमाल है॥
कर्ज बोझ सिर पे लदा,
कृषक हुआ बदहाल है।
हम विकसित हो जायगें,
यह कोरा भौकाल…
Added by विन्ध्येश्वरी प्रसाद त्रिपाठी on April 10, 2012 at 9:30pm — 12 Comments
फुरसत
शहर की मशहूर सी उस गली के दोनों किनारों पर बने घरों में रोशनी करने के लिए बिजली के तार एक दूसरे से उलझे हुवे एक घर से दूसरे घर में, दुसरे घर से तीसरे घर में और इसी तरह गली के सारे घरों से जुड़े हुवे थे. बिजली के इन तारों में उलझ कर एक दिन एक बंदर की मौत हो गयी. गली में बने सभी घरों में रहने वाले लोगों को बंदर की मौत से लगने वाले पाप से छुटकारा पाने की चिंता हो गयी. गली के सभी बाशिंदओं ने आपस में रायशुमारी करने के…
Added by Neelam Upadhyaya on April 10, 2012 at 8:30pm — 5 Comments
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