For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

जिंदगी के चंद टुकड़े
यूँही
बिखरने दिया
कभी यूँही
उड़ने दिया
संभाल कर जब कभी
रखना चाहा
समय ने ना रहने दिया
नदी सी मैं
बहती रही
कभी मचलती रही
कभी उफनती रही
तोड़ किनारा
जब भी बहना चाहा
बांधो( बन्धनों) से और भी
जकड़ा पाया
गंदे नाले हों
या शीतल धारा
जो भी मिला
अपना बना डाला
जिंदगी
कभी नदी सी
कभी टुकड़ो सी
जैसे भी पाया
बस जी डाला

Views: 625

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by MAHIMA SHREE on April 15, 2012 at 2:28pm

आदरणीय प्रदीप सर ,

सादर प्रणाम ,

सत्य वचन सर ..जिंदगी तो इसकी का नाम है...स्नेह बनाये रखे ..साभार

Comment by MAHIMA SHREE on April 15, 2012 at 2:25pm

आदरणीय सौरभ सर ,

सादर नमस्कार

सराहना के लिए आपका हार्दिक धन्यवाद

Comment by PRADEEP KUMAR SINGH KUSHWAHA on April 14, 2012 at 10:48pm

गंदे नाले हों
या शीतल धारा
जो भी मिला
अपना बना डाला
जिंदगी
कभी नदी सी
कभी टुकड़ो सी
जैसे भी पाया
बस जी डाला

jina isi ka naam hai, snehi mahima ji, saadar. badhai.


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on April 14, 2012 at 4:38am

भाव व काल विशेष उद्गार के लिये बधाई. 

Comment by MAHIMA SHREE on April 13, 2012 at 2:07pm
आदरणीय भ्रमर सर,
आपका बहुत -२ आभार , सकरात्मक प्रतिक्रिया के लिए ...आपका हार्दिक धन्यवाद
Comment by SURENDRA KUMAR SHUKLA BHRAMAR on April 13, 2012 at 2:02pm

नदी सी मैं
बहती रही
कभी मचलती रही
कभी उफनती रही
तोड़ किनारा
जब भी बहना चाहा
बांधो( बन्धनों) से और भी
जकड़ा पाया

महिमा जी खूबसूरत भाव ..काश ये बंधन टूटें ...मुक्त हो मन ..प्यारा मौसम प्यारी गलियाँ ...

जय श्री राधे 
भ्रमर ५ 


Comment by MAHIMA SHREE on April 13, 2012 at 1:55pm
आदरणीय सतीश सर .
सादर नमस्कार ,
आप ने समय दिया , सराहा आपका हार्दिक धन्यवाद , साभार
Comment by MAHIMA SHREE on April 13, 2012 at 1:54pm
आदरणीया सरिता दी
नमस्कार , हर स्त्री "सरिता ही है " ..आप तक भाव पहुचे , अच्छा लगा..लिखना सफल हुआ
सादर आभार
Comment by satish mapatpuri on April 12, 2012 at 11:38pm

नदी सी मैं
 बहती रही कभी मचलती रही
कभी उफनती रही तोड़ किनारा
जब भी बहना चाहा
बांधो( बन्धनों) से और भी
जकड़ा पाया

बहुत अच्छा महिमा जी ............ बधाई हो

Comment by Sarita Sinha on April 12, 2012 at 7:25pm

priy mahima ji, namaskar,

ye to aap ne "sarita " ki kahani suna dali...bahut khub....mujhe to baha le gayi.......

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"आ. भाई सौरभ जी, सादर अभिवादन। प्रदत्त विषय पर सुंदर रचना हुई है। हार्दिक बधाई।"
19 minutes ago
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा पंचक. . . शृंगार

दोहा पंचक. . . . शृंगारबात हुई कुछ इस तरह,  उनसे मेरी यार ।सिरहाने खामोशियाँ, टूटी सौ- सौ बार…See More
3 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन।प्रदत्त विषय पर सुन्दर प्रस्तुति हुई है। हार्दिक बधाई।"
3 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"बीते तो फिर बीत कर, पल छिन हुए अतीत जो है अपने बीच का, वह जायेगा बीत जीवन की गति बावरी, अकसर दिखी…"
7 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"वो भी क्या दिन थे,  ओ यारा, ओ भी क्या दिन थे। ख़बर भोर की घड़ियों से भी पहले मुर्गा…"
9 hours ago
Ravi Shukla commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल - ( औपचारिकता न खा जाये सरलता ) गिरिराज भंडारी
"आदरणीय गिरिराज जी एक अच्छी गजल आपने पेश की है इसके लिए आपको बहुत-बहुत बधाई आदरणीय मिथिलेश जी ने…"
12 hours ago
Ravi Shukla commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय मिथिलेश जी सबसे पहले तो इस उम्दा गजल के लिए आपको मैं शेर दर शेरों बधाई देता हूं आदरणीय सौरभ…"
12 hours ago
Ravi Shukla commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post साथ करवाचौथ का त्यौहार करके-लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी बहुत अच्छी गजल आपने कहीं करवा चौथ का दृश्य सरकार करती  इस ग़ज़ल के लिए…"
13 hours ago
Ravi Shukla commented on धर्मेन्द्र कुमार सिंह's blog post देश की बदक़िस्मती थी चार व्यापारी मिले (ग़ज़ल)
"आदरणीय धर्मेंद्र जी बहुत अच्छी गजल आपने कहीं शेर दर शेर मुबारक बात कुबूल करें। सादर"
13 hours ago
Ravi Shukla commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post आदमी क्या आदमी को जानता है -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी गजल की प्रस्तुति के लिए बहुत-बहुत बधाई गजल के मकता के संबंध में एक जिज्ञासा…"
13 hours ago
Ravi Shukla commented on Saurabh Pandey's blog post कौन क्या कहता नहीं अब कान देते // सौरभ
"आदरणीय सौरभ जी अच्छी गजल आपने कही है इसके लिए बहुत-बहुत बधाई सेकंड लास्ट शेर के उला मिसरा की तकती…"
13 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन। प्रदत्त विषय पर आपने सर्वोत्तम रचना लिख कर मेरी आकांक्षा…"
yesterday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service