For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

(प्रस्तुत पंक्तियों को उल्लाला छंद में लिखने का प्रयास किया गया है,इसके प्रत्येक चरण में 13-13मात्रायें होती हैं।लघु-गुरू का कोई विशेष नियम नहीं होता,किन्तु 11वीं मात्रा लघु होनी चाहिए)

भूखी आंतों के लिए,
सेंसेक्स बस बवाल है।
तीसमार खां कह रहे,
मार्केट में उछाल है॥

जेब नहीं कौड़ी फुटी,
जनता सब बेहाल है।
भारत विकसित हो रहा,
वाह!बढ़िया कमाल है॥

कर्ज बोझ सिर पे लदा,
कृषक हुआ बदहाल है।
हम विकसित हो जायगें,
यह कोरा भौकाल है॥

आंधी भ्रष्टाचार की,
भारत में पुरजोर है।
महगाई की मार से,
आम मनुज कमजोर है॥

जन रक्षक भक्षक हुये,
त्राहि त्राहि चहुओर है।
किसके दर पर जाय हम,
हर कोई घुसखोर है॥

यह भी अपना देश है,
रहा ज्ञान का खान जो।
इस पर भी अभिमान करें,
हम पा रहे सम्मान जो॥

Views: 631

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by वीनस केसरी on April 14, 2012 at 10:55pm

विन्ध्येश्वरी प्रसाद त्रिपाठीजी,

मुझे उल्लाला छ्न्द के बारे में आपसे ही जानकारी प्राप्त हुई है, इसलिए आपसे ही और जानने कि इच्छा हुई
मैंने जिन पंक्तियों को अपने कमेन्ट में कोट किया था उसमें आपने एक पंक्ति में १३ मात्र को कैसे निभाया है यह समझने में मुझे दिक्कत हो रही है,

ग़ज़ल विधा में मात्रा गिनने का तरीका हिन्दी छ्न्द से अलग होता है इसलिए मुझे समझने में दिक्कत हो रही है
क्योकि मेरे गिनने के हिसाब से इन पंक्ति में १४- १४ मात्रा आ रही है

इस २ / पर २ /  भी २ / अ १ भि १ मा २ न १ / क १ रें २ , = १४
हम २ / पा २ / र १ हे २ / सम् २  मा २ न  १ / जो २  = १४

मैं भी उल्लाला छ्न्द के लिए कुछ खोजबीन करता हूँ कुछ जानकारी प्राप्त हुई तो आपसे साझा करूँगा

सादर

Comment by विन्ध्येश्वरी प्रसाद त्रिपाठी on April 14, 2012 at 8:50pm
आदरणीय बागी जी और आदरणीय वीनस जी को रचना की सराहना हेतु हार्दिक आभार।
Comment by विन्ध्येश्वरी प्रसाद त्रिपाठी on April 14, 2012 at 8:44pm
आदरणीय वीनस सर जी!आपने कहा था कि सीखने के लिहाज से कुछ प्रश्न कर रहा हूं।
सर सिखाने वाला(उस्ताद) तो मैं भी नहीं हूं!बस आप सब गुरूजनों के चरण-सान्निध्य में सीख ही रहा हूं।
उल्लाला छन्द के बारे में वर्तमान में मेरे पास कोई विस्तृत जानकारी न तो है और न ही मिल रही है।जो थोड़ी बहुत जानकारी थी,उसी के आधार पर मैं उक्त रचना को लिखा है।कतिपय प्रयास के बाद मुझे थोड़ी सी जानकारी मिली है जिसे मैंने छन्द विधान समूह में पोस्ट कर दिया है,जिसे वहां पर पढ़ा जा सकता है।उक्त पोस्ट पर आप सभी गुरुजनों से चर्चा आमंत्रित है।यदि यह चर्चा आगे बढ़ती है तो मैं आप सबका आभारी रहूंगा।
रही बात कहीं-कहीं अटकाव की तो अभी तो मैं बच्चा ही हूं और वो भी नादान।सो तो होगा ही,हालांकि अटकाव खत्म करने का प्रयास कर रहा हूं।और आप सभी गुरुजनों से आशा करता हूं कि मुझे इस अटकाव से बचने का रास्ता भी जरूर बतायेंगे।
सादर।
Comment by विन्ध्येश्वरी प्रसाद त्रिपाठी on April 12, 2012 at 9:03pm
गुरु श्रेष्ट श्री सतीश मापतापुरी सर,आदरणीय श्री अश्विनी सर,आदरणीय श्री अरुण कुमार जी,पूज्य श्री अविनाश सर जी,वन्दनीय श्री प्रदीप सर जी एवं बहन सुश्री महिमा जी आप सभी को प्रयास की सराहना के लिए हार्दिक साधुवाद,धन्यवाद।
आपने रचना को मान दिया रचना व रचयिता दोनों ही उपकृत व कृतकृत्य हैं।
सादर।
Comment by PRADEEP KUMAR SINGH KUSHWAHA on April 11, 2012 at 10:29pm

aadarniya tripathi ji, saadar, kavita ke bhav ati sundar , aaj ki sthiti ko darshte hue. taknik batai, abhar , badhai.

Comment by MAHIMA SHREE on April 11, 2012 at 3:44pm
जेब नहीं कौड़ी फुटी,
जनता सब बेहाल है।
भारत विकसित हो रहा,
वाह!बढ़िया कमाल है॥

जन रक्षक भक्षक हुये,
त्राहि त्राहि चहुओर है।
किसके दर पर जाय हम,
हर कोई घुसखोर है॥
प्रिय विन्धेस्वरी भाई नमस्कार ,
क्या बात है.....यथार्थ को दिखाती और वर्तमान व्यवस्था पे चोट करती रचना ....बहुत खूब बधाई स्वीकार करें
Comment by AVINASH S BAGDE on April 11, 2012 at 3:02pm

भूखी आंतों के लिए,
सेंसेक्स बस बवाल है।
तीसमार खां कह रहे,
मार्केट में उछाल है॥...sahi bat kahiविन्ध्येश्वरी प्रसाद त्रिपाठी जी

Comment by Abhinav Arun on April 11, 2012 at 8:44am

हर बंद बेहद सुरुचिपूर्ण बन पड़ा है अच्छी प्रभाव परक प्रवाहमय रचना -

कर्ज बोझ सिर पे लदा,
कृषक हुआ बदहाल है।
हम विकसित हो जायगें,
यह कोरा भौकाल है॥\

hardik बधाई !!

Comment by अश्विनी कुमार on April 11, 2012 at 8:00am

Vindhyeshwari prasad tripathi  जी अति उत्तम प्रयाश और सार्थक प्रयाश के लिए हार्दिक आभार ,,

Comment by satish mapatpuri on April 11, 2012 at 12:44am

बेहतरीन ....... बधाई हो

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-109 (सियासत)
"यूॅं छू ले आसमाॅं (लघुकथा): "तुम हर रोज़ रिश्तेदार और रिश्ते-नातों का रोना रोते हो? कितनी बार…"
yesterday
Admin replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-109 (सियासत)
"स्वागतम"
Sunday
Vikram Motegi is now a member of Open Books Online
Sunday
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा पंचक. . . . .पुष्प - अलि

दोहा पंचक. . . . पुष्प -अलिगंध चुराने आ गए, कलियों के चितचोर । कली -कली से प्रेम की, अलिकुल बाँधे…See More
Sunday
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय दयाराम मेठानी जी आदाब, ग़ज़ल पर आपकी आमद और हौसला अफ़ज़ाई का तह-ए-दिल से शुक्रिया।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई दयाराम जी, सादर आभार।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई संजय जी हार्दिक आभार।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए आभार।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. रिचा जी, हार्दिक धन्यवाद"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई दिनेश जी, सादर आभार।"
Saturday
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय रिचा यादव जी, पोस्ट पर कमेंट के लिए हार्दिक आभार।"
Saturday
Shyam Narain Verma commented on Aazi Tamaam's blog post ग़ज़ल: ग़मज़दा आँखों का पानी
"नमस्ते जी, बहुत ही सुंदर प्रस्तुति, हार्दिक बधाई l सादर"
Saturday

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service