For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

हमें माफ़ कर दो आफरीन.....

प्रिय आफरीन, 
हम तुम्हे पहले से कहाँ जानते थे. वो तो जब तुम्हारे अपने  पापा ने तुम्हारी जान लेने की कोशिश की तब अख़बार वालो ने हमें तुम्हारे बारे में बताया...पूरे पाँच दिन तुम ज़िन्दगी और मौत की लड़ाई लडती रही , लेकिन अफ़सोस .....हार गयी.....हमारा तुमसे कोई रिश्ता कहाँ है, लेकिन इन पांच दिनों में, एक एक पल हम तुम्हारे लिए बेचैन रहे , और आज ...जब तुम चुपचाप जिंदगी से लड़ते लड़ते, हार कर अपनी दुनिया में लौट गयी.....बता नहीं सकते कि  हम तुमसे कितने शर्मिंदा हैं...तुम्हारी नन्ही सी जान ने इन पाँच   दिनों में जो कुछ भी झेला  है, वो शायद कोई अपनी पूरी ज़िन्दगी में नहीं झेलता होगा.....
तुम तो चली गयी, सिर्फ तीन महीनो के लिए हमारी दुनिया में आयी थी , लेकिन फिर भी , हम तुम्हे अपने साथ ले जाने के लिए कोई खूबसूरत याद न दे सके....
इस संसार का सदस्य बनने के पहले ही दिन से , जब तुम धरती पर आयी भी नहीं थी,  तब से ही अपनी माँ को अपने पापा द्वारा प्रताड़ित   किये जाते हुए चुपचाप देख रही थी...जुर्म भी क्या था ....कि वो अभागी "तुम्हारी" माँ बनने वाली  थी...एक लड़की की...वो बेचारी भी तो अपने पति की यातना झेलने के लिए मजबूर थी...कुदरत की दी हुई सब से अनमोल ख़ुशी.... संतान, जो एक औरत सिर्फ और सिर्फ अपने पति के साथ बाँटना चाहती है , उसे भी उस के पति ने बाँट दिया...तुम्हारा एक और सहोदर जो तुम्हारे साथ ही आने वाला था ...वो तुम से ज्यादा कमज़ोर निकला और दुनिया में कदम रखने से पहले ही वापस  हो गया.....
तुम किस उम्मीद में चली आयी..तुम्हे लगा होगा कि शायद तुम्हारा मासूम , गुलाबी, परियों जैसा चेहरा देख कर वो, तुम्हारा पिता  तुमसे प्यार करने लगे गा...नादान...क्या जानती थी कि राक्षस हमेशा राक्षस ही रहे गा...
उफफ्फ्फ्फ़.......तुम्हे कैसा लगा होगा जब तुमने अपने पापा को दूध में ज़हर मिलाते हुए देखा होगा..हम समझ सकते हैं , ...तुम ने चाहा ज़रूर होगा कि तुम्हारी माँ , जिसे उस शैतान ने बहाने से बाहर भेज दिया था...वो ही तुम को दूध पिलाये...लेकिन मजबूर, नाज़ुक तीन महीने की  बच्ची तुम , मुंह खोलने के सिवा कुदरत ने अभी तुम को कुछ सिखाया भी तो नहीं था....तुम्हारी किलकारियां भी उस दानव को मोहित न कर सकीं...उसे एक बार भी याद न आया कि  तुम उस की  अपनी संतान थी...अपना खून...किस तरह तुम्हें सिगरेट से जलाने के लिए उस जानवर के हाथ उठे होंगे...कैसे वो नन्ही परी जैसी मासूम गुडिया को झिंझोड़ पाया होगा.......जब उसका खून ही पानी बन चुका था तो क्या कहें...
क्या कमी थी  उस को....उस के पिता, बड़े भाई, खुद वो...सभी अच्छा कमाते खाते थे..अपना खुद का दोमंजिला मकान था ...फिर भी वो दानव न जाने और क्या पाने की  आस में संतान के रूप में एक "लड़का" चाहता था...  भिखमंगों की  तरह तुम्हारे नाना से लाखों रुपये मांगता रहता था....
महज़ १९ साल की  उम्र में तुम्हारी माँ ने दुनिया के सारे रंग देख लिए...अपने से लगभग दुगनी उम्र के इंसान से शादी हुई, फिर शादी के बाद से एक पल की  ख़ुशी भी उसे नसीब न हुई...कुदरत ने तुम्हारे रूप में उसे एक प्यारा खिलौना दिया भी तो उसे भी उस  राक्षस ने छीन लिया ...क्या दोष था उस का...यही न कि वो एक गरीब बाप की बेटी है जो कबाड़ बेच कर अपना और अपने परिवार का गुज़र बसर करता है.. कहाँ से  तुम्हारे पापा को "दहेज़" नाम की  भीख देता.....
खैर....अब हम तुम से माफ़ी मांगने के सिवा क्या कह सकते हैं...बैंगलोर जैसे आधुनिक टेक्नोलॉजी युक्त शहर में जहाँ चौबीसों घंटे उजाला रहता है, रफ़्तार कभी थमती नहीं है, वहां   एक अँधेरा कोना  आज भी मौजूद है.. तुम्हारे पापा और उस जैसे और कुछ लोगों के सड़े गले  विचारों  रूपी अँधेरा कोना.....
हम तो आज तुम्हारे चले जाने के बाद आंसू बहा कर , दो चार दिनों में तुम्हे भूल भी जायें गे..पर इस समाज का क्या करें?????   कब तक गरीब बापों की  अभागी लड़कियां , अपनी कमज़ोरी की  सजा भुगतें गी....वो अपराध जो उन्हों ने किया ही नहीं...उस के लिए उन्हें कब तक प्रताड़ित किया जाता रहे गा????? तुम तो बच गयीं.. लेकिन जो हैं,  उन का क्या होगा??????
एक बार फिर से कहते है......हमें माफ़ कर दो आफरीन ......हम तुम्हे बचा नहीं सके......

Views: 892

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by अरुण कान्त शुक्ला on April 16, 2012 at 6:38pm

मार्मिक रचना .. मकसद में कामयाब ..

Comment by Sarita Sinha on April 15, 2012 at 12:40pm

आदरणीय सौरभ  पाण्डेय जी, नमस्कार,

सराहना हेतु, हार्दिक आभार...
Comment by Sarita Sinha on April 15, 2012 at 12:37pm

आदरणीय अरुण कुमार जी,

प्रतिक्रिया के लिए धन्यवाद...
Comment by PRADEEP KUMAR SINGH KUSHWAHA on April 14, 2012 at 10:40pm

yahan popular blog aur usse unchi featuerd blog 2 categary hain.no.1 hetu badhai.

Comment by Abhinav Arun on April 14, 2012 at 12:58pm
सामयिक घटना क्रम पर पैनी नज़र !! धार दार कथ्य हेतु हार्दिक बधाई आपको !!

सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on April 14, 2012 at 2:17am

सरिताजी, आपकी संवेदनशीलता मात्र साहित्य नहीं सामाजिक सकारात्मक सरोकारों के लिये भी आवश्यक है. चूँकि कोई ज़िन्दा साहित्य अपने समाज को ही रुपायित करता है, आपकी रचना के माध्यम से जड़ा गया जोर का तमाचा कुत्सित मनस को, हे भगवान, महसूस हो सके. ऐसा इसलिये कि ऐसों की चमड़ी यक़ीनन मोटी होती है.

अच्छे ढंग से कही गयी अच्छी बात !!

Comment by Sarita Sinha on April 13, 2012 at 11:01pm

आदरणीय कुशवाहा जी, सादर नमस्कार,

इस पाशविक घटना ने अन्दर तक हिला कर रख दिया ...कुछ कहने के लिए शब्द ही नही मिले.....
फीचर्ड होना  क्या होता है ये मुझे आज तक समझ में नहीं आया....लेकिन धन्यवाद...
Comment by Sarita Sinha on April 13, 2012 at 10:59pm

प्राची जी नमस्कार,

भ्रूण  हत्या   तो अलग बात हुई, यहाँ तो साक्षात् हंसती मुस्कुराती ,किलकारी भरती जीवित कन्या को उस के वहशी पिता ने मार डाला . पाशविकता  की  सीमा  है  ये....
आप ने पढ़ा इस के लिए धन्यवाद...
Comment by Sarita Sinha on April 13, 2012 at 10:54pm

सतीश जी नमस्कार,

प्रतिक्रिया के लिए धन्यवाद.....
Comment by Sarita Sinha on April 13, 2012 at 10:53pm

भ्रमर जी नमस्कार,

जी हाँ आप सही कहते हैं..सब को मिल कर ही समाज से ऐसी बुराइयों के उन्मूलन का प्रयास करना  चाहिए.....
सहमति के लिए धन्यवाद...

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted a blog post

आदमी क्या आदमी को जानता है -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

२१२२/२१२२/२१२२ कर तरक्की जो सभा में बोलता है बाँध पाँवो को वही छिप रोकता है।। * देवता जिस को…See More
23 hours ago
Admin posted a discussion

"ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180

आदरणीय साहित्य प्रेमियो, जैसाकि आप सभी को ज्ञात ही है, महा-उत्सव आयोजन दरअसल रचनाकारों, विशेषकर…See More
yesterday
Sushil Sarna posted blog posts
Thursday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Saurabh Pandey's blog post कौन क्या कहता नहीं अब कान देते // सौरभ
"आ. भाई सौरभ जी, सादर अभिवादन। बेहतरीन गजल हुई है। हार्दिक बधाई।"
Nov 5
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted a blog post

देवता क्यों दोस्त होंगे फिर भला- लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

२१२२/२१२२/२१२ **** तीर्थ जाना  हो  गया है सैर जब भक्ति का यूँ भाव जाता तैर जब।१। * देवता…See More
Nov 5

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey posted a blog post

कौन क्या कहता नहीं अब कान देते // सौरभ

२१२२ २१२२ २१२२ जब जिये हम दर्द.. थपकी-तान देते कौन क्या कहता नहीं अब कान देते   आपके निर्देश हैं…See More
Nov 2
Profile IconDr. VASUDEV VENKATRAMAN, Sarita baghela and Abhilash Pandey joined Open Books Online
Nov 1
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदाब। रचना पटल पर नियमित उपस्थिति और समीक्षात्मक टिप्पणी सहित अमूल्य मार्गदर्शन प्रदान करने हेतु…"
Oct 31
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"सादर नमस्कार। रचना पटल पर अपना अमूल्य समय देकर अमूल्य सहभागिता और रचना पर समीक्षात्मक टिप्पणी हेतु…"
Oct 31
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा सप्तक. . . सागर प्रेम

दोहा सप्तक. . . सागर प्रेमजाने कितनी वेदना, बिखरी सागर तीर । पीते - पीते हो गया, खारा उसका नीर…See More
Oct 31
pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदरणीय उस्मानी जी एक गंभीर विमर्श को रोचक बनाते हुए आपने लघुकथा का अच्छा ताना बाना बुना है।…"
Oct 31

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय सौरभ सर, आपको मेरा प्रयास पसंद आया, जानकार मुग्ध हूँ. आपकी सराहना सदैव लेखन के लिए प्रेरित…"
Oct 31

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service