221 2121 1221 212
क्या जाने किस जनम का सिला दे गया मुझे
था बेगुनाह फिर भी सज़ा दे गया मुझे
कैसे यक़ीन कीजिए ग़ैरों की बात का
समझा था जिसको अपना दगा दे गया मुझे
लम्बी हो उम्र मेरी दुआ मांँगता रहा
मरने की मुफ़्त में जो दवा दे गया मुझे
उसके इशारों को मैं समझ ही नहीं सका
गूंँगा था आदमी जो सदा दे गया मुझे
ग़ज़लें पुरानी ले गया आया था ख़्वाब में
इनके इवज में घाव नया दे गया मुझे
भीगा था जिस्म…
ContinueAdded by सालिक गणवीर on September 6, 2020 at 10:00pm — 18 Comments
एक गजल तेरे होठों पर लिख सकता था
इसकी टपक रही लाली पर बिक सकता था
किंतु सामने जब शहीद की पीर पुकारे
जान वतन पर देने वाला वीर पुकारे
जिसने भाई, लाल, कंत कुर्बान किये हों
सूख चुकी उनकी आँखों का नीर पुकारे
कैसे उन क़ातिल मुस्कानों पर बिकता
कैसे कोमल नाजुक होठों पर लिखता
एक गजल तेरी आँखों पर लिख सकता था
चंचल चितवन सी कमान पर बिक सकता था
पर कौरव-पांडव दल आँखें मींच रहा हो
चीर दुःशासन द्रुपद-सुता की…
Added by आशीष यादव on September 6, 2020 at 8:30pm — 8 Comments
221 2122 221 2122
ये मामला है दिल का फैला ले पर मेरे ख़त/1
जाना पड़ेगा तुझको उड़कर शहर मेरे ख़त
इस बार लिखना तय था वरना तो जाने कब से/2
आ जा रहे थे ख़्वाबों में उनके घर मेरे ख़त
अनपढ़ गंवार पागल थी इश्क़ क्या ही करती/3
चूल्हा जला रही थी वो फाड़ कर मेरे ख़त
सर्दी की रात थी जब उनको क़मर कहा था/4
उड़ कर के खुद गए थे उनके शहर मेरे ख़त
होठों की लाली होती थी जिन ख़तों पे पहले/5
अब रद्दी बन रहे थे बस उनके घर मेरे ख़त
इनकार लिखना…
ContinueAdded by Dimple Sharma on September 6, 2020 at 3:07pm — 10 Comments
शिक्षक है एक कुम्भकार और शिल्पकार
हम गीली मिट्टी देता हमे वो आकार
उसने ही अच्छे बुरे का ज्ञान करवाया
जीवन रूपी भंवर में कैसे है तैरना
ये मेरे गुरु ने मुझे सिखलाया
जैसे नदी में एक नाव माझी बिना
वैसे ही अज्ञानी हम शिक्षक बिना
जिंदगी में उसने हमें सही मुक़ाम पर पहुंचाया
जीवन रूपी भंवर में कैसे है तैरना
ये मेरे गुरु ने मुझे सिखलाया
उसने कभी कुछ नहीं हमसे माँगा
आगे बढ़ता देख हमें वो फूला न समाया …
ContinueAdded by Madhu Passi 'महक' on September 4, 2020 at 11:00am — 6 Comments
ज़िंदगी ........
झड़ जाते हैं
मौसमों की मार सहते सहते
एक एक करके सारे पात
किसी वयोवृद्ध वृक्ष के
भ्रम है उसकी अवस्था
क्योँकि
उम्र के चरम के बावज़ूद
रहती है ज़िंदा
अपने मौसम की प्रतीक्षा में
आदि किरण
ज़िंदगी की
लौट आते हैं उदास विहग
ज़िंदगी के
पुनः उन्हीं पर्ण विहीन शाखाओं पर
अंकुरित होती है जहाँ
फिर से शाखाओं की कोरों पर
पीत पुष्पों से
लौटे मौसम का अभिनन्दन करती…
Added by Sushil Sarna on September 3, 2020 at 9:30pm — 6 Comments
देह पर कुछ दोहे, ,,,,,,
देह धरा में खो गई, शून्य हुए सम्बंध ।
तस्वीरों में रह गई, रिश्तों की बस गंध ।।
देह मिटी तो मिट गए, भौतिक जग के दंश ।
शेष पवन में रह गए, कुछ यादों के अंश ।।
देह छोड़ के उड़ चला ,श्वास पंख का हंस ।
काल न छोड़े जीव को ,होता काल नृशंस ।।
आती -जाती देह में , सांसे हैं आभास ।
एक श्वास का भी नहीं, जीवन में विश्वास ।।
देह दास है श्वास की, श्वास देह की प्यास ।
श्वास देह की जिंदगी, श्वास देह की आस…
Added by Sushil Sarna on September 3, 2020 at 8:35pm — 10 Comments
धरणी को बरबाद कर
चन्द्र करो जा नष्ट
फिर ढूँढो घर तीसरा
जहाँ न कोई कष्ट
यह क्रम चलता ही रहे
मानव ही जब दुष्ट
आपस में लड़ कर करे
सर्व विभूति विनष्ट
समझे मालिक स्वयं को
बन बैठा भगवान
हिरनकशिपु सम सोच रख
औरों का अपमान
करते बम के परीक्षण
खुशी मने ज्यों पर्व
राम , कृष्ण सदृश कोई
आए , तोड़े गर्व
मौलिक एवं अप्रकाशित
Added by Usha Awasthi on September 3, 2020 at 7:26pm — 3 Comments
Added by Neeta Tayal on September 3, 2020 at 3:27pm — 4 Comments
शिक्षा देने वाले हे गुरुजनों,
कैसे आपका बखान करूं।
सूरज को दिया दिखाने जैसा,
कैसे ये तुच्छ काम करूं।।
ज्ञान शस्त्र जो मिला आपसे,
फिर दुनियां से क्यूं डरूं।
अज्ञानता के अन्धकार को,
जन जन के जीवन से दूर करूं।।
शिक्षक दिवस पर सभी गुरुजनों को,
हाथ जोड़ वंदन करूं।
बिना रुके बिना झुके,
आपके प्रशस्त मार्ग पर बढ़ती रहूं।।
किताबी ज्ञान को व्यवहारिक कर
जीवन में कूट कूट कर भर लूं।
समानता का अधिकार दिलाने,
दुनियां से भी मैं लड़…
Added by Neeta Tayal on September 3, 2020 at 8:20am — 7 Comments
1212 1122 1212 22
बदल रहा है तेरा शह्र पैरहन मेरा/1
ख़ुदारा खैर है बदला नहीं है तन मेरा
तेरा यूँ ख्वाब-ओ-ख्यालों में आना जाना/2
रखेगा कौन बता यार यूँ जतन मेरा
तू लड़ मगर तोड़ मत ये आईना इकलौता/3
जो टूटा कौन निहारेगा फिर बदन मेरा
मुझे ख़बर हुई है तेरे आने की जबसे/4
महक रहा है तेरे ख्याल से बदन मेरा
था खुबसूरत मेरा भी एक आशियाना सुन/5
उजाड़ा है मेरे अपनों ने ही चमन मेरा
जो इन्तजार मेरी मौत का सभी को था/6
तो लो खरीद लिया…
Added by Dimple Sharma on September 2, 2020 at 4:00pm — 7 Comments
दमन कर अपनी खुशियों का,
फर्ज पर अपने डटी रही।
एक बार नहीं दो बार नहीं,
बार बार करती रही।।
समझ ना सके फिर भी मुझे क्यूं,
क्यूं बार बार झकझोर दिया।
फर्ज निभाने का मुझे,
दण्ड ये कैसा मिला?
बहु बनकर जब कभी भी,
सासु मां का साथ दिया।
रूढ़िवादी हो अम्मा की तरह,
बच्चों ने झट से कह दिया।
क्यूं समय के साथ नहीं हो,
आज समय है बदल गया।
फर्ज बहु का निभाने का,
दण्ड ये कैसा मिला?
माँ बनकर जब कभी भी,
अपने बच्चों का साथ दिया।
सर पर…
Added by Neeta Tayal on September 2, 2020 at 1:48pm — 5 Comments
221 2121 1221 212
ये तितलियाँ ये फूल भी सकते में आ गये
जब पेड़ चल के ख़ुद ही बगीचेे मेंं आ गए
कल तक मिरे अज़ीज़ अंँधेरों में क़ैद थे
आंँखें रगड़ - रगड़ के उजाले में आ गये
नीलाम हो रही है ख़ुशी सुन रहे थे कल
हम भी थे बेवक़ूफ़ जो झांँसे में आ गये
मारा गया गली में उसे सब के सामने
दर पर खड़े थे लोग दरीचे में आ गये
कह कर गए थे है ये मुलाक़ात आख़िरी
जैसे ही आँख झपकी वो सपने में आ…
ContinueAdded by सालिक गणवीर on August 31, 2020 at 10:00pm — 14 Comments
Added by गिरधारी सिंह गहलोत 'तुरंत ' on August 31, 2020 at 7:00pm — 6 Comments
सृष्टि का चलन
चाँद चमकता
सूर्य की ही रोशनी से
हर दिन,
एक दिन क्यों आ जाता
सूर्य और पृथ्वी के बीच,
लगाता सूर्य को ग्रहण
बहुत पास जाकर
रोकता उसका प्रकाश,
बना देता है उसे
अपने ही जैसा,
यह प्यार है चाँद का
या जलन,
नहीं नहीं....
चन्द्र किरणों की तो
शीतल है छुअन
यह तो है बस
रचयिता की लीला
और सृष्टि का चलन !…
Added by Dr Vandana Misra on August 31, 2020 at 4:12pm — 4 Comments
कपड़ा-लत्ता बाँधि कै
जावैं अपने देस
कितने दिनन बिता गए
तबहुँ लगै परदेस
पहुचैं अपने द्वार-घर
लक्ष्य यही बस एक
जा खेती - बाड़ी करैं
आलस करैं न नेक
धूप - ताप मा बिन रुके
चले जाँय सब गाँव
सोचत जात , थमें नहीं
मिले जो चाहे छाँव
नदियन नाला केर सब
कचरा देब हटाय
लहर-लहर बहियैं सबै
धरती पियै अघाय
बबुआ से कहिबै चलौ
गइया लेइ खरीद
दूध, दही , मट्ठा…
ContinueAdded by Usha Awasthi on August 30, 2020 at 11:27pm — 2 Comments
दोहा त्रयी : गरीबी
दृगजल से रहते भरे, निर्धन के दो नैन।
दर्द सुनाए लोरियाँ, भूखी बीते रैन।।
बिखरे बाल गरीब के, आँसू शोभित गाल।
उदर क्षुधा जीवित रहे, बन कर सदा सवाल।।
आँसू गिरा गरीब का, कोई न समझा दर्द।
संग श्वास लिपटी रही, सदा भूख की गर्द।।
सुशील सरना
मौलिक एवं अप्रकाशित
Added by Sushil Sarna on August 30, 2020 at 6:23pm — 2 Comments
122 122 122 12
नहीं आया फिर वो बुला कर मुझे
मज़ा ले रहा है सता कर मुझे
अगर मेरे अंदर समाया है तू
कभी आइने में दिखा कर मुझे
हमेशा मिला है तू रोते हुए
मिला कर कभी मुस्कुरा कर मुझे
सदा बस मुझे हुक्म देता है क्यूँ
सलाह मशवरा भी दिया कर मुझे
है डर कुर्सियों के नगर में यही
न वो बैठ जाए उठा कर मुझे
धड़कता हूँ मैं शोर करता नहीं
मैं दिल हूँ तेरा ही सुना कर…
Added by सालिक गणवीर on August 30, 2020 at 5:30pm — 9 Comments
Added by गिरधारी सिंह गहलोत 'तुरंत ' on August 30, 2020 at 4:00pm — 8 Comments
122 122 122 12
हवाओं के' झोंके मचलने लगे,
अदाओं के' आंचल सरकने लगे।1
दबे दिल के' कोने में ' जो थे कभी
परत दर परत राज खुलने लगे।2
बसाए फिरे जो जिगर में कभी
हकीकत बताने से बचने लगे।3
कहा था कभी, हम न होंगे जुदा,
मिले ही कहां,अब वो ' कहने लगे।4
नज़ाकत भरे थे जो लमहे कभी,
शरारत जदा आज डंसने लगे।5
"मौलिक व अप्रकाशित"
@
Added by Manan Kumar singh on August 29, 2020 at 4:36pm — 4 Comments
( 1222 1222 1222 1222 )
मुहब्बत की ज़मीँ देकर यक़ीं का आसमाँ दे दो
रहोगे सिर्फ़ मेरे तुम मुझे बस यह ज़बाँ दे दो
न रक्खो चीज़ कोई तुम तअल्लुक़ जिसका ग़म से है
तुम्हारी सिसकियाँ आहें कराहें और फुगाँ दे दो
परख लें एक दूजे को किसी कोने में रह लूंगा
मुझे कुछ दिन किराये पर सनम दिल का मकाँ दे दो
मुहब्बत में नफ़'अ-नुक़्सान की परवाह किसको है
चलो रक्खो तुम्हीं सब फ़ायदा मुझको ज़ियाँ दे दो
मेरे जज़्बात की कुछ क़द्र करना सीख लो हमदम
मेरी परवाज़-ए-उल्फ़त को खुला तुम…
Added by गिरधारी सिंह गहलोत 'तुरंत ' on August 28, 2020 at 5:30pm — 7 Comments
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