सागर से भी गहरे देखे.
जब-जब ख़्वाब सुनहरे देखे.
नए दौर में नई सदी में,
साँसों पर भी पहरे देखे.
गांधी जी के तीनों बंदर,
अंधे गूँगे बहरे देखे.
…
ContinueAdded by बसंत कुमार शर्मा on October 14, 2020 at 12:54pm — 10 Comments
122 122 122 12
रिदा से ही जब पा बड़ा हो गया
ख़ुदा मेरा मुझसे ख़फा हो गया
मेरे साथ गम का चले कारवाँ
अकेला मैं फ़िर क्यों बता हो गया
जिसे छूना तुमको न मुमकिन लगे
समझ लो वही अब ख़ुदा हो गया
नहीं ज़िन्दगी ज़िन्दगी सी रही
सफ़र यह भी अब बदमज़ा हो गया
सुख़न शाइरी भी अजब शै हुई
तसव्वुर का इक आसरा हो गया
अँधेरों की आदत बना लीजिए
ज़िया से अधिक फ़ासला हो…
ContinueAdded by Rachna Bhatia on October 14, 2020 at 10:41am — 7 Comments
हाथ पकड़ कर चाहा जिसका हो जाना
उसको भाया भीड़ का होकर खो जाना।१।
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किस्मत किस्मत रटते सबको देखा पर
एक न पाया जिस ने किस्मत को जाना।२।
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मीत अकेलेपन सा कोई और नहीं
लेकिन ये भी सब को पाया तो जाना।३।
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नींद न आये तो ये कैसे भूलें हम
झील किनारे गोद में सर रख सो जाना।४।
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पीर हमें अब लगती सच में अपनी सी
फूल के बदले पथ में काँटे बो…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on October 13, 2020 at 6:40pm — 13 Comments
पानी से आग बुझाने की ....
किस तिनके ने दी इजाज़त
घर में धूप को आने की
दहलीज़ पे रातों की आकर
पलकों में ख़्वाब जलाने की
जिस खिड़की पर लगी थी चिलमन
नज़र से हुस्न बचाने की
उस खिड़की पर रुकी थी नज़रें
इस कम्बख़्त ज़माने की
मंज़िल उसको मान के हम
उसके इश्क में जलते रहे
वो चालें अपनी चलते रहे
हमसे हमें चुराने की
ख़्वाहिश बस ख़्वाहिश ही रही
पलकों में घर बनाने की
नादाँ दिल को मिली सज़ा
नज़रों से नज़र मिलाने की
कसर न छोड़ी…
Added by Sushil Sarna on October 12, 2020 at 3:25pm — 4 Comments
2122 - 2122 - 2122 - 212
ज़िन्दगी भर हादसे दर हादसे होते रहे
और हम हालात पर हँसते रहे रोते रहे
आए हैं बेदार करने देखिये हमको वही
उम्र भर जो ग़फ़लतों की नींद में सोते रहे
कर दिए आबाद गुलशन हमने जिनके वास्ते
वो हमारे रास्तों में ख़ार ही बोते रहे
बोझ बन जाते हैं रिश्ते बिन भरोसे प्यार के
जाने क्यूँ हम नफ़रतों की गठरियाँ ढोते …
ContinueAdded by अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी on October 11, 2020 at 9:57pm — 5 Comments
2122. 1122. 1122. 22.
रूठ जाते हैं कभी दिन के उजाले मुझसे
अब नहीं जाते अँधेरे ये सँभाले मुझसे (1)
सूख जाता है गला प्यास के मारे जब भी
दूर हो जाते हैं पानी के पियाले मुझसे (2)
क़ैद रक्खा है मुझे उसने कई सालों से
चाबियों का भी पता पूछ न ताले मुझसे (3)
सामने मेरे बहुत लोग यहाँ भूखे हैं
आज निगले नहीं जाएँगे निवाले मुझसे (4)
हाथ जब मेरे सलीबें ही उठाना चाहें
ख़ार अब माँग रहे पैरों के छाले…
Added by सालिक गणवीर on October 11, 2020 at 3:30pm — 11 Comments
"आंटी जी, अगर उस दिन आप ने शिंदो के सर पर हाथ न रखा होता तो पता नहीं ये कहाँ होती।" रज्जो ने कहा
कीमत तो इसकी पहले ही लग चुकी थी,बस उस दिन तो पैसे देने थे, मालिक को ।
शिंदो को तो इस बारे कुछ पता ही नही था।“भला हो उस के साथ डांस पार्टी में काम करने वाली का”,रज्जो ने बात बढ़ाते हुए कहा।
"उसने बता दिया,वरना पता नहीं कहाँ कहाँ बिक गई चुकी होती, अब तक ।
जब मालिक ने कहा कि कल वह किसी और डांस पार्टी के साथ काम करेगी " तब उसे खनक गई थी,कि इस के आगे़ क्या होने वाला…
ContinueAdded by मोहन बेगोवाल on October 10, 2020 at 2:00pm — 2 Comments
2122 - 2122 - 2122 - 21- 21
हादिसात ऐसे हुए हैं ज़िन्दगी में बार-बार
हर ख़ुशी हर मोड़ पर रोई तड़प कर ज़ार-ज़ार
दर्द ने अंँगडाईयाँ लेकर ज़बान-ए-तन्ज़ में यूँ
पूछा मेरी बेबसी से कौन तेरा ग़म-गुसार
अपनी-अपनी क़िस्मतें हैं अपना-अपना इंतिख़ाब
दिलपे कब होता किसी के है किसी को इख़्तियार
रफ़्ता-रफ़्ता जानिब-ए-दिल संग भी आने लगे अब
जिस जगह पर हम किया करते हैं तेरा…
ContinueAdded by अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी on October 8, 2020 at 11:51am — 4 Comments
कौशिशें इतनी सी हैं बस शायरी की
आदमी सी फ़ितरतें हों आदमी की
हद जुनूँ की तोड़ कर की है इबादत
ख़ूँँ जलाकर अपना तेरी आरती की
गोलियों की ही धमक है हर दिशा में
और तू कहता है ग़ज़लें आशिक़ी की!
भूले-बिसरे लफ़्ज़ कुछ आये हवा में
कोई बातें कर रहा है सादगी की
इतनी लंबी हो गयी है ये अमावस
चाँद भी अब शक्ल भूला चांदनी की
बूँद मय की तुम पिलाओ वक़्ते-रुखसत
आखि़री ख्वा़हिश यही है ज़िन्दगी…
Added by अजय गुप्ता 'अजेय on October 7, 2020 at 5:00pm — 6 Comments
Added by Sushil Sarna on October 7, 2020 at 3:03pm — 2 Comments
सत्य की तलाश - लघुकथा –
आधी रात का वक्त था। गाँव से दूर पूर्व की ओर एक खाली पड़े खेत में एक चिता सजाई जा रही थी। चारों ओर से पुलिस उस खेत को घेरे हुए थी।ऐसा लग रहा था जैसे पूरे देश की पुलिस यहाँ एकत्र कर रखी हो।पुलिस के अलावा कोई भी नज़र नहीं आ रहा था।
हाँ पुलिस के घेरे से बाहर अवश्य एक भीड़ जुटी हुई थी।भीड़ में कुछ लोग रो रहे थे। कुछ हँस भी रहे थे।कुछ नारे लगा रहे थे।
इसी बीच एक सौ साल से ऊपर का वृद्ध पुरुष सफेद धोती से अपना जर्जर शरीर लपेटे हुए हाथ में एक लाठी लिए भीड़ को…
ContinueAdded by TEJ VEER SINGH on October 7, 2020 at 11:40am — 10 Comments
1222 - 1222 - 1222 - 1222
न यूँ दर-दर भटकते हम जो अपना आशियाँ होता
ख़ुदा ने काश हमको भी किया अह्ल-ए-मकाँ होता
बिछा के राहों में काँटे पता देते हैं मंज़िल का
कोई तो रहनुमा होता कोई तो मेह्रबाँ होता
ख़ुदा या फेर लेता रुख़ जो तू भी ग़म के मारों से
तो मुझ-से बेक़रारों का ठिकाना फिर कहाँ होता
बने तुम हमसफ़र मेरे ख़ुदा का शुक्र है वर्ना
न जाने तुम कहाँ होते न जाने मैं कहाँ …
ContinueAdded by अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी on October 7, 2020 at 8:36am — 3 Comments
देश की सुन्दर तस्वीरें अब रचने वाले नेता कम
सच में जन के हित में नेता बनने वाले नेता कम।१।
**
बाँट रहे हैं जाति-धर्म में दशकों पहले जैसा ही
एक रहो सब देश की खातिर कहने वाले नेता कम।२।
**
सब धनिकों का पक्ष उठाते अपनी अण्टी भरने को
अब निर्धन की पीड़ाओं को सुनने वाले नेता कम।३।
**
ठाठ पुराने राजा जैसे अब हर नेता अपनाता
लाल …
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on October 6, 2020 at 7:01pm — 4 Comments
122 122
उधर जब तपन है
इधर भी अगन है
अदू साथ तेरे
मुझे क्यों जलन है
ये क्यों मीठी मीठी
सी दिल में चुभन है
वही दुश्मन-ए-जाँ
वही जान-ए-मन है
सुखी वो नहीं पर
दुखी आज मन है
जहाँ फूल थे कल
वहाँ आज गन है
यहाँ झूठ सच है
यही तो चलन है
कहो कुछ भी'सालिक'
तुम्हारा दहन है
*मौलिक एवं अप्रकाशित.
Added by सालिक गणवीर on October 5, 2020 at 9:30pm — 10 Comments
Added by Deepalee Thakur on October 5, 2020 at 7:34pm — 8 Comments
वेदना कुछ दोहे :
गली गली में घूमते , कामुक वहशी आज।
नहीं सुरक्षित आजकल, बहु-बेटी की लाज।।
इतने वहशी हो गए, जाने कैसे लोग।
रिश्ते दूषित कर गया, कामुकता का रोग।।
पीड़ित की पीड़ा भला, क्या समझे शैतान।
नोच-ंनोच वहशी करे, नारी लहूलुहान।।
बेटे से बेटी बड़ी, कहने की है बात।
बेटी सहती उम्र भर , अनचाहे आघात।।
नारी का कामी करें, छलनी हर सम्मान।
आदिकाल से आज तक, सहती वो अपमान ।।
सुशील…
ContinueAdded by Sushil Sarna on October 5, 2020 at 4:00pm — 8 Comments
१२२२ १२२२ १२२२ १२२२
जमीं पर बीज उल्फत के कोई बोता नहीं दिखता.
लगाता प्रेम सरिता में कोई गोता नहीं दिखता.
करे अपराध कोई और ही उसकी सजा पाए,
वो कहते हैं हुआ इंसाफ़, पर होता नहीं दिखता.
झरोखे हैं न आँगन है, न दाना है न गौरैया,…
ContinueAdded by बसंत कुमार शर्मा on October 5, 2020 at 9:30am — 12 Comments
२२२२/२२२२/२२२२/२२२
झण्डे बैनर टँगे हुए हैं और निशसतें ख़ाली हैं
भाषण देने वाले नेता सारे यार मवाली हैं
**
इन के दिन की बातें छोड़ो रातें तक मतवाली हैं
जनसेवक का धार विशेषण रहते बनकर माली हैं
**
कहते तो हैं नित्य ग़रीबी यार हटाएँगे लेकिन
जन के हाथों थमी थालियाँ देखो अबतक ख़ाली हैं
**
देश की जनता तरस रही है देखो एक निवाले को
पर ख़र्चे में इन की आदतें हैराँ करने वाली हैं
**
काम न करते कभी सदन में देश को उन्नत करने…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on October 4, 2020 at 11:01am — 6 Comments
ख़ूब इतराते हैं हम अपना ख़ज़ाना देख कर
आँसुओं पर तो कभी उन का मुहाना देख कर.
.
ग़ैब जब बख्शे ग़ज़ल तो बस यही कहता हूँ मैं
अपनी बेटी दी है उसने और घराना देख कर.
.
साँप डस ले या मिले सीढ़ी ये उस के हाथ है,
हम को आज़ादी नहीं चलने की ख़ाना देख कर.
.
इक तजल्ली यक-ब-यक दिल में मेरे भरती गयी
एक लौ का आँधियों से सर लड़ाना देख कर.
.
ऐसे तो आसान हूँ वैसे मगर मुश्किल भी हूँ
मूड कब…
Added by Nilesh Shevgaonkar on October 3, 2020 at 12:37pm — 8 Comments
अवसरवादी - लघुकथा –
आज शहर के लोक प्रिय नेताजी का जन्मदिन बड़े जोर शोर से मनाया जा रहा था। इस बार इतने सालों बाद बहुत खोज बीन के बाद ये पता चला कि नेताजी की असली जन्म तिथि दो अक्टूबर ही है।किसी को कोई आश्चर्य भी नहीं हुआ क्योंकि नेताजी जिस जमाने में पैदा हुए थे उस वक्त स्कूल में दाखिले के समय कोई जन्म तिथि का प्रमाण पत्र माँगता भी नहीं था।बनवाने का रिवाज़ भी नहीं था।मुँह जुबानी जो भी तारीख बोल दी वही लिख दी जाती थी।
कैसा विचित्र संयोग था कि नेता जी का जन्म दिन भी बापू जी और…
ContinueAdded by TEJ VEER SINGH on October 2, 2020 at 7:25pm — 4 Comments
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