For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

रुठ जाते हैं कभी दिन के उजाले मुझसे..( ग़ज़ल :- सालिक गणवीर)

2122. 1122. 1122. 22.

रूठ जाते हैं कभी दिन के उजाले मुझसे
अब नहीं जाते अँधेरे ये सँभाले मुझसे (1)

सूख जाता है गला प्यास के मारे जब भी
दूर हो जाते हैं पानी के पियाले मुझसे    (2)

क़ैद रक्खा है मुझे उसने कई सालों से
चाबियों का भी पता पूछ न ताले मुझसे (3)

सामने मेरे बहुत लोग यहाँ भूखे हैं
आज निगले नहीं जाएँगे निवाले मुझसे (4)

हाथ जब मेरे सलीबें ही उठाना चाहें
ख़ार अब माँग रहे पैरों के छाले मुझसे  (5)

इक ज़माना था कभी साथ दिखा करते थे
दूर ही रहते हैं अब देखने वाले मुझसे   (6)

क्यों नहीं छपती यहाँ ग़ज़लें तुम्हारी 'सालिक'
पूछते रहते हैं हर दिन ही रिसाले मुझसे (7)

*मौलिक एवं अप्रकाशित.

Views: 727

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by सालिक गणवीर on October 15, 2020 at 9:48am

आदरणीय अमीरूद्दीन 'अमीर' साहिब
सादर अभिवादन
ग़ज़ल पर आपकी उपस्थिती और सराहना के लिए ह्रदय तल से आपका आभारी हूँ.

Comment by अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी on October 14, 2020 at 8:48pm

आदरणीय सालिक गणवीर जी आदाब, अच्छी ग़ज़ल हुई दिली मुबारकबाद क़ुबूल फ़रमाएं। सादर।

Comment by सालिक गणवीर on October 14, 2020 at 4:02pm

आदरणीय कबीर साहिब

सानी कुछ यूँ लिखा है....

अब नहीं जाते अँधेरे ये सँभाले मुझसे....

Comment by सालिक गणवीर on October 14, 2020 at 1:16pm

आदरणीय भाई लक्ष्मण धामी जी
आदाब
ग़ज़ल पर आपकी उपस्थिती और हौसला अफ़ज़ाई के लिए तह-ए -दिल से शुक्रिया ।

Comment by सालिक गणवीर on October 14, 2020 at 1:14pm

आदरणीया रचना भाटिया जी
आदाब
ग़ज़ल पर आपकी उपस्थिती और हौसला अफ़ज़ाई के लिए तह-ए -दिल से शुक्रिया ।

Comment by सालिक गणवीर on October 14, 2020 at 1:12pm

आदरणीय निलेश 'नूर' साहिब
आदाब
ग़ज़ल पर आपकी उपस्थिती और हौसला अफ़ज़ाई के लिए तह-ए -दिल से शुक्रिया । आपकी इस्लाह पर मश्क़ करता हूँ ,जनाब ।

Comment by सालिक गणवीर on October 14, 2020 at 1:08pm

आदरणीय समर कबीर साहिब

आदाब
ग़ज़ल पर आपकी उपस्थिती और हौसला अफ़ज़ाई के लिए तह-ए -दिल से ममनून हूँ। आपकी इस्लाह का मुंतज़िर था. मतला पर मश्क़ करता हूँ ,मुहतरम।

Comment by Rachna Bhatia on October 14, 2020 at 11:52am

आदरणीय सालिक गणवीर जी, बेहतरीन अशआर हुए हैं।दूसरा बहुत अच्छा लगा।मतले पर गुणिजनों से सहमत हूँ।

Comment by Samar kabeer on October 14, 2020 at 11:49am

जनाब सालिक गणवीर जी आदाब, ग़ज़ल का अच्छा प्रयास है, बधाई स्वीकार करें ।

'रूठ जाते हैं कभी दिन के उजाले मुझसे
या उलझते हैं कभी रात के जाले मुझसे'

मतले के दोनों मिसरों में 'जाले' की क़ैद हो रही है, देखिये ।

Comment by Nilesh Shevgaonkar on October 14, 2020 at 11:46am

आ. सालिक जी,

अच्छी ग़ज़ल हुई है.
बधाई स्वीकार करें..
मतले को लेकर संशय है.. उजाले और जाले में कहीं जाले की क़ैद न हो रही हो.. वैसे राहत इन्दौरी साहब की ग़ज़लों में ऐसा अक्सर देखने मिलता है जैसे..
शह्रों में तो बारूदों का मौसम है 
गाँव चलो अमरूदों का मौसम है.
.
या.
सरहदों पर बहुत तनाव.... चुनाव आदि ..
बड़े नाम मंच पर कुछ भी कर सकते हैं ... मैं स्वयं आश्वस्त नहीं हूँ कि सहीह क्या है ..
मंच के गुनीजनों से मार्गदर्शन की अपेक्षा है 
सादर  

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . .
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार आदरणीय जी "
2 hours ago
नाथ सोनांचली commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post नूतन वर्ष
"आद0 सुरेश कल्याण जी सादर अभिवादन। बढ़िया भावभियक्ति हुई है। वाकई में समय बदल रहा है, लेकिन बदलना तो…"
9 hours ago
नाथ सोनांचली commented on आशीष यादव's blog post जाने तुमको क्या क्या कहता
"आद0 आशीष यादव जी सादर अभिवादन। बढ़िया श्रृंगार की रचना हुई है"
9 hours ago
नाथ सोनांचली commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post मकर संक्रांति
"बढ़िया है"
9 hours ago
सुरेश कुमार 'कल्याण' posted a blog post

मकर संक्रांति

मकर संक्रांति -----------------प्रकृति में परिवर्तन की शुरुआतसूरज का दक्षिण से उत्तरायण गमनहोता…See More
10 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted a blog post

नए साल में - गजल -लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'

पूछ सुख का पता फिर नए साल में एक निर्धन  चला  फिर नए साल में।१। * फिर वही रोग  संकट  वही दुश्मनी…See More
10 hours ago
सुरेश कुमार 'कल्याण' commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post नूतन वर्ष
"बहुत बहुत आभार आदरणीय लक्ष्मण धामी जी "
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . .
"आ. भाई सुशील जी, सादर अभिवादन। अच्छे दोहे हुए हैं। हार्दिक बधाई।"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-170
"आ. भाई अखिलेश जी, सादर अभिवादन। दोहों पर मनोहारी प्रतिक्रिया के लिए हार्दिक आभार।"
Sunday
Sushil Sarna replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-170
"सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार आदरणीय जी "
Sunday
Sushil Sarna replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-170
"सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार आदरणीय लक्ष्मण धामी जी , सहमत - मौन मधुर झंकार  "
Sunday
अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-170
"इस प्रस्तुति पर  हार्दिक बधाई, आदरणीय सुशील  भाईजी|"
Sunday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service