२२१/२१२१/१२२१/२१२
*
बाबर से यार जो भी बुलाने पे आ गये
इतिहास लिख के झूठ छुपाने पे आ गये।१।
*
अनबन से घर की गैर जो न्योते गये कभी
अपनों के बाद खुद भी निशाने पे आ गये।२।
*
पुरखों को अपने भूल के अपनाते गैर को
ये कौन लोग देश जलाने पे आ गये।३।
*
कानून कैसे आज भी पहले सा है विवश
गुण्डे समूची फौज ले थाने पे आ गये।४।
*
गुजरा वो दौर बम से जो दहले था देश पर
पत्थर से आज शान्ति उड़ाने पे जा गये।५।…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on June 12, 2022 at 9:30pm — 4 Comments
(1222 1222 1222 1222 - हजज मुसम्मन सालिम)
न देखा है कभी उनको हुई पर प्रीत क्या कहने.
न जाना ही न पहचाना बने मनमीत क्या कहने.
कहें सब जाल दुनिया यह सभी सुर ताल आभासी,
लिखे ऋतु गीत उपवन के बजे संगीत क्या कहने.
- शून्य…
ContinueAdded by C.M.Upadhyay "Shoonya Akankshi" on June 11, 2022 at 7:00pm — No Comments
बोझ पड़ा सिर पे घर का मन में घनघोर अशांति हुई
यौवन में तन वृद्ध हुआ अरु जर्जर मानस क्लांति हुई
बीत गए सुख चैन भरे दिन जो अब लौट नहीं सकते
बाल सफेद हुए सिर के मुख की सब गायब कांति हुई
जीवन के दिन चार यहाँ इसमें उसमें हम त्रस्त हुए
अर्थ क्षुधा बुझती न कभी धन संचय में बस व्यस्त हुए
वक़्त नहीं मिलता जिसमें हम बैठ कहीं कुछ सोच सकें
बन्धु सखा हित वक़्त नहीं अब यूँ हम शुद्ध गृहस्थ हुए
नाथ सोनांचली
विधान -: भानस ×7…
ContinueAdded by नाथ सोनांचली on June 11, 2022 at 2:30pm — No Comments
मैं बिकती हूँ बाज़ारों में, तन ढंकने को तन देती हूँ
मैं बिकती हूँ बाज़ारों में, अन्न पाने को तन देती हूँ
तन देना है मर्जी मेरी, मैं अपने दम पर जीती हूँ
जिल्लत की पानी मंजूर नहीं, मेहनत का विष मैं पिती हूँ
हाथ पसारा जब मैंने, हवस की नज़रों ने भेद दिया
अपनों के हीं घेरे में, तन मन मेरा छेद…
ContinueAdded by AMAN SINHA on June 11, 2022 at 10:24am — No Comments
1।।
कभी डाँट से तो कभी स्नेह दे के पिता ने किया पूर्ण कल्यान मेरा
पढ़ाया लिखाया सिखाया मुझे जो उसी से हुआ आज उत्थान मेरा
नहीं जो पिता साथ होते कभी तो, लगा यों कि संसार वीरान मेरा
पिता का नहीं नाम जो साथ होता न होता कही आज सम्मान मेरा
2।।
पिता में बसे तीर्थ सारे हमारे उन्हीं में सदा ईश का भान पाया
पिता के बिना जो पड़ी मुश्किलें तो स्वयं को निरामूर्ख नादान पाया
निजी ज़िन्दगी में पिता जी सरीखा रहा दोस्त जो वो न इंसान…
Added by नाथ सोनांचली on June 10, 2022 at 2:30pm — 8 Comments
तू उगता सा सूरज, मैं ढलता सितारा
तेरी एक झलक से मैं छुप जाऊँ सारा
तू गहरा सा सागर, मैं छिछलाता पानी
तू सर्वगुण सम्पन्न मैं निर्गुण अभिमानी
तू दीपक के जैसा मैं हूँ एक अंधेरा
तू निराकार रचयिता, मैं…
ContinueAdded by AMAN SINHA on June 9, 2022 at 11:30am — No Comments
२२१/२१२१/१२२१/२१२
*
जो व्यक्ति जग में जन्म से अपना इमाम हो
बोलो किसी भी और का क्योंकर ग़ुलाम हो।।
*
इतनी न आपने देश में फैले अशान्ति फिर
घर में सभी के आज भी पौदा जो राम हो।।
*
चाहे किसी भी कौम से नाता हो फर्क क्या
जाफर न घर में आप के, पैदा कलाम हो।।
*
दण्डित किया ही जाएगा गद्दार देश में
अब्दुल गणेश जोन या करतार नाम हो।।
*
छोड़ो ये खानदान ये मजहब ये जातियाँ
सबकी वतन में देखिए पहचान काम हो।।
*
नफरत लिए न भोर के बैठी हो…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on June 8, 2022 at 9:58am — 2 Comments
२२१/२१२१/१२२१/२१२
*
खिचवाते भीत प्रीत की ऊँची नहीं कहीं
मीनारें नफरतों की ये ढहती नहीं कहीं।।
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जकड़ा है राजनीति ने मकड़ी के जाल सा
इतिहास खोद बस्तियाँ मिलती नहीं कहीं।।
*
होली में कब वो रंग में डूबा था पूछ मत
अब तो मिठास ईद की दिखती नहीं कहीं।।
*
मजहब के फेर भूल के भटके हैं इस तरह
आये हैं ऐसी राह जो खुलती नहीं कहीं।।
*
मन्दिर के भग्नभाग का इतिहास क्या कहें
बातें जो वामियान की थमती नहीं कहीं।।
*
बाबर ढहाया तोड़ के…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on June 7, 2022 at 12:55pm — 2 Comments
२१२२/२१२२/२१२२/२१२
*
कैसे कैसे सर बचाने में लगे हैं लोग सब
क्या समझ खन्जर बचाने में लगे हैं लोग सब।।
*
एक हम हैं जो शिखर पर जान देने पर तुले
नींव के पत्थर बचाने में लगे हैं लोग सब।।
*
लहलहाते खेत मेटे सेज के विस्तार को
आजकल बन्जर बचाने में लगे हैं लोग सब।।
*
जिसको देखो आग ही की बात करता है यहाँ
कैसे कह दें घर बचाने में लगे हैं लोग सब।।
*
हैं सुरक्षित सोचकर वो भीड़ में शामिल मगर
अपने भीतर डर बचाने में लगे हैं…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on June 6, 2022 at 12:58pm — No Comments
पतझड़ का मौसम लगते ही बाग-बगीचों में जहां देखों वही पत्तों से जमीन ढक जाती हैं।
गर्मियों की छुट्टियों में बिनी और पम्मी के घर उनकी बुआजी के बच्चे टिपलू और टीना आए हुये थे।दिनभर खेलकूद खाने-पीने की मस्ती चलती और सुबह-शाम को बगीचे मे दादी के साथ पौधो को पानी डालते।
एकदिन शाम को रोजमर्रा की तरह पानी डालते बच्चों को दादाजी ने अपने पास बुलाया और क्यारियों में जमी खरपतबार को उखाड़कर एकतरफ ढेर लगाने को कहा और साथ में उग आए नीम, जामुन, पीपल, तुलसी बगेरह के पौधों को जड़ों सहित मिट्टी में…
Added by babitagupta on June 6, 2022 at 9:30am — No Comments
कौन है वो ......
उनींदीं आँखें
बिखरे बाल
पेशानी पर सलवटें
अजब सी तिश्नगी लिए
चलता रहता है
मेरे साथ
मुझ सा ही कोई
मेरी परछांईं बनकर
कौन है वो
जो
मेरे देखने पर
दूर खड़ा होकर
मुस्कुराता है
मेरी बेबसी पर
सुशील सरना / 5-6-22
मौलिक एवं अप्रकाशित
Added by Sushil Sarna on June 5, 2022 at 12:15pm — No Comments
२२१/२१२१/१२२१/२१२
मजहब की नफरतों का ये मन्जर नया नहीं
टोपी तिलक के बीच का अन्तर नया नहीं।१।
*
कितनों को कोसें और कहें जा निकल अभी
जाफर विभीषणों से भरा घर नया नहीं।२।
*
कितना बचेंगे साध के चुप्पी भला यहाँ
अपनों की आस्तीन का खन्जर नया नहीं।३।
*
उन की जुबाँ पे आज भी बँटवारा बैठा है
अपनों से पायी पीर का सागर नया नहीं।४।
*
उन्माद नाम धर्म के लिख राजनीति ने
देना तो देश दुनिया को उत्तर नया नहीं।५।
*
उलझे हुओं की सोच में तारण उसी से…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on June 4, 2022 at 9:39pm — 2 Comments
2122 2122 2122 212
1
उसने मेरे ज़ख़्मों का ऐसे मुदावा कर दिया
सी के आहों का मुहाना उनको गूँगा कर दिया
2
जिसने मेरा कद बढ़ा कर सबसे ऊँचा कर दिया
उसने सी कर लब मेरे किरदार बौना कर दिया
3
घर जलाकर अपना जिसके दर प कर दी रौशनी
उसने घबरा कर धुँएँ से शोर बरपा कर दिया
4
ख़त्म होते ही नहीं हैं ज़िन्दगी के मसअले
बैठते ही इक के दूजे ने तमाशा कर दिया
5
साथ देता ही नहीं है मेरे दिल का…
ContinueAdded by Rachna Bhatia on May 31, 2022 at 7:30pm — 6 Comments
अक्सर मैंने देखा उसको खुद से हीं बातें करते
कभी-कभी बिना कारण हीं खुद में हंसते खुद में रोते
कई दफा तो काटी उसने रातें यूं ही जाग जाग के
कभी किसी पर अटक गई जो पलकें उसकी बिना झपके
बैठे-बैठे खो जाती है वो…
ContinueAdded by AMAN SINHA on May 31, 2022 at 9:30am — 2 Comments
२१२२/२१२२/२१२
सत्य को कुछ उत्खनन तो कीजिए
दर्द होगा पर सहन तो कीजिए।१।
*
देशहित में क्या भला है आप भी
कौम से हटकर मनन तो कीजिए।२।
*
जब है मंदिर और मस्जिद में वही
आप दोनों में गमन तो कीजिए।३।
*
सद्गुणों को जब बढ़ाना आ गया
क्यों कहें अवगुण दमन तो कीजिए।४।
*
धर्म माटी को समझकर देश की
आप भी झुककर नमन तो कीजिए।५।
*
चाहिए अधिकार तो कर्तव्य का
आप थोड़ा निर्वहन तो कीजिए।६।
*
फिर उठाना दूसरे की आप सौं
पहले पूरा इक वचन…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on May 30, 2022 at 10:45pm — 2 Comments
गहरे तुम ध्यान समाधि लिए अभया अमिताभ गतागत हो
मुनि सोच पुनीत अथाह धरे करते सबका हिय स्वागत हो
मुखमंडल तेज लगे इस भांति कि सत्य विनायक आगत हो
तुम पंकज मध्य सुवासित सम्यक गौतम बुुद्ध तथागत हो।।1
तप से तप धम्म सहिष्णु बने न किसी पर स्थावर क्रुद्ध हुए
जब तर्क अकाट्य सुना जग ने सब ढोंग प्रपंच निरूद्ध हुए
अरु हिंसक वृत्ति रुकी जग की जन कर्म विचार विशुद्ध हुए
अपना सब दीप स्वयं बनिये कह गौतम से मुनि बुद्ध हुए।।2
नाथ…
ContinueAdded by नाथ सोनांचली on May 30, 2022 at 6:00am — 2 Comments
कलम की धार
सशक्त हथियार
चौबीसों घण्टे
चलता व्यापार
निष्पक्ष समाचार
बुराई पर वार
सम्भावित, हर लम्हा
तलवार की धार…
Added by Usha Awasthi on May 29, 2022 at 5:30pm — 2 Comments
याद आयेगा हमें .....
जान ले लेगा हमारी मुस्कुराना आपका
इस गली का हर बशर अब है दिवाना आपका
बारिशों में बाम पर वो भीगती अगड़ाइयाँ
आँख से जाता नहीं वो रुख छुपाना आपका
हम गली के मोड़ पर हैं आज तक ठहरे हुए
सोचते हैं हो गया गुम क्यों ठिकाना आपका
दिल लगा कर तोड़ना तासीर है ये आपकी
दूर जाने का नहीं अच्छा बहाना आपका
वो गिराना खिड़कियों से पर्चियाँ इकरार की
याद आयेगा हमें सदियों जमाना …
Added by Sushil Sarna on May 29, 2022 at 1:29pm — No Comments
रोला छंद. . . .
विगत पलों की याद, हृदय को लगे सुहानी।
छलक-छलक ये नैन, गाल पर लिखें कहानी ।
मौन छुअन संवाद, देह पर विचरण करते ।
सुधियों के सब रंग, रिक्त अम्बर में भरते ।
*=*=*=*
तड़प- तड़प के रात, गुजारे प्रेम दिवानी ।
विरहन की ये पीर, जगत ने कब है जानी ।
मौसम गुजरे साथ, प्यार के गये जमाने ।
रह - रह आते याद, रात के वो अफसाने ।
सुशील सरना / 28-5-22
मौलिक एवं अप्रकाशित
Added by Sushil Sarna on May 28, 2022 at 2:23pm — No Comments
तुम फूल कली तुम चन्द्र मुखी तुम स्वर्ग परी चित चंचल हो
तुम लौकिक केवल देह नहीं मकरन्द भरा नव कोंपल हो
तुम भ्रांति नहीं अनुभूति प्रिये तुम पुष्प कली सम कोमल हो
तुम पादप पल्लव हार प्रिये तुम गंग नदी सम निर्मल हो।।1
तुम निश्छल प्रेम भरी गगरी ऋतु पावस सी मनभावन हो
तुम हो इक नाम समर्पण का तुम रूप प्रसून सुहावन हो
तुम प्राणप्रिया शुचिता वनिता तुम ही रखती घर पावन हो
तुम प्रान सुधा घनश्याम घटा उर में बरसे वह सावन…
Added by नाथ सोनांचली on May 25, 2022 at 12:39pm — 6 Comments
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