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प्रीत के उपहार

प्रीत के उपहार

छंद रूपमाला (१४ +१० ) अंत गुरु-लघु ,समतुकांत
*****************************************************
झनक झन झांझर झनकती , छेड़ एक मल्हार .
खन खनन कंगन खनकते, सावनी मनुहार .
फहर फर फर आज आँचल , प्रीत का इज़हार .
बावरा मन थिरक चँचल , साजना अभिसार .
*****************************************************
धडकनें मदहोश पागल , नयन छलके…
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Added by Dr.Prachi Singh on July 22, 2012 at 12:00pm — 21 Comments

हर मौसम लगे बहार, तुम से मिलकर {नज्म/गीत}

==========नज्म/गीत ==========



हर मौसम लगे बहार, तुम से मिलकर

इस दिल को मिले करार, तुम से मिलकर



पल पल भी मुश्किल से कटता है तुम बिन

इक पल भी इक साल सा लगता है तुम बिन

घडी का काँटा रुक रुक चलता है तुम बिन

सूरज चढ़ के  देर से…

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Added by SANDEEP KUMAR PATEL on July 22, 2012 at 10:45am — 5 Comments

तुम भीतर तक भर जाओगे बाबाजी

मेहनत से यदि डर जाओगे बाबाजी

जीवन में क्या कर पाओगे बाबाजी



रोते रोते आये  जैसे दुनिया में

वैसे ही तुम घर जाओगे बाबाजी



बाइक पर मोबाइल से मत बात करो…

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Added by Albela Khatri on July 22, 2012 at 10:30am — 18 Comments

राज़ नवादवी: मेरी डायरी के पन्ने- २५

तशवीशात के अजीमुश्शान महल में जैसे खो गया हूँ. हज़ार रास्ते, मगर कौन सही है, दीवारें जो दिख रहीं हैं वो आँखों का धोखा तो नहीं. दरीचों में समाया मंज़र शायद वहम हो. जगह जगह फिक्रों के फानूस टंगे हैं, अज़ीयतों के जौहर से दरोदीवार आरास्ता हैं. दूर कहीं आँगन में अंदेशों के आबशार से बह रहे हैं, बगीचे खौफ के दरख्तों से गुंजान और उलझनों के टिमटिमाते चरागों से शबिस्ताँ रौशन है. गलियारों में कशीदगी के कालीन बिछे हैं, कफेपा से जिनपे दिल की शोरीदगी के नक्श उभर आए हैं. बैठकखानों में मखफी सायों की मजलिस…

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Added by राज़ नवादवी on July 21, 2012 at 8:00pm — 4 Comments

हम गीले थे

वो कोमल थे, वो कंटीले थे,

आँखें सूखीं थी, हम गीले थे,

रास्ते फूलों के, पथरीले थे,

जख्मी पग, कांटें जहरीले थे,

ढहे पेंड़ों से, पत्ते ढीले थे,

बिखरे हम, कर उसके पीले थे,

नाजुक लब, नयना शर्मीले थे,…

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Added by अरुन 'अनन्त' on July 21, 2012 at 5:30pm — 7 Comments

खिलौना........लघुकथा.

रेंजर साहब की पत्नी आगन में बैठकर अपने तीन साल के बेटे को खिला रही थी.सामने के पेड़ पर एक बंदरिया अपने छोटे से बच्चे को छाती से  चिपकाए इधर-उधर कूद-फांद रही थी.बेटे की नज़र उस बंदरिया और उसके बच्चे पर पड़ी.वाह माँ से जिद करने लगा कि उसे खेलने के लिये बंदर का बच्चा चाहिए. माँ ने पिता के आने के नाम पर बेटे को बहलाए रखा.लंच पर रेंजर साहब आये.आते ही पत्नी ने फ़रमाया :
'मुन्ने को सामने के पेड़ पर रहने वाली बंदरिया का बच्चा खेलने के लिये चाहिए".
"इतनी सी बात…
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Added by AVINASH S BAGDE on July 21, 2012 at 1:00pm — 12 Comments

ऐ मेरे सजन

============= गीत =============



मेरी इबादत हो तुम्ही, मेरा हो पूजन, ऐ मेरे सजन

मेरा ये तन औ ये मन, तुमको है अर्पण, ऐ मेरे सजन



सुबहो शाम, रात दिन, याद मुझे आ रहे

वो बिताये पल सुहाने नैनों में समा रहे

खिल रहे नए पुष्प, मन की वाटिका में गा रहे

तुमसे ही चलती हैं साँसे तुमसे है जीवन, ऐ मेरे सजन



मेरी इबादत हो तुम्ही, मेरा हो पूजन, ऐ मेरे सजन

मेरा ये तन औ ये मन, तुमको है अर्पण, ऐ मेरे सजन



छा रहे है मेघ घने आपकी ही प्रीत के…

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Added by SANDEEP KUMAR PATEL on July 21, 2012 at 12:28pm — 8 Comments

लगता इसकी मति गई मारी बाबाजी

नीयत हो यदि साफ़ हमारी बाबाजी

नियति भी तब लगेगी प्यारी बाबाजी



पुस्तक, सी डी और  दवायें बेच रहे

सन्त नहीं, वे  हैं व्यापारी बाबाजी



कोई किसी का सगा नहीं है दुनिया में…

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Added by Albela Khatri on July 21, 2012 at 11:00am — 19 Comments

मुक्तिका "सावन"

मुक्तिका "सावन"

मेघों का गर्जन है सावन
बूंदों का अर्पण है सावन

हरियाली चहुँ ओर बिखेरे
कितना मन रंजन है सावन

दीनों की छत से टप टप स्वर
दुःख का अनुरंजन है सावन

शीतल बूंद गिरे जब तन पर
अतिशय तप भंजन है सावन

छेड़े धुन मल्हार पवन जब
मीठा स्वर गुंजन है सावन

"दीप" सजे सब मंदिर देखो
भोले का पूजन है सावन

संदीप पटेल "दीप"

Added by SANDEEP KUMAR PATEL on July 21, 2012 at 9:00am — 3 Comments

है फतवा खाप पंचायत का सुनकर प्यार सदमे में

कोई भी हो नहीं देखी गई सरकार सदमे में।

मगर जनता है जो देखी गयी हर बार सदमे में॥

 

मुहब्बत करने वाले हैं ज़माने के निशाने पर,

है फतवा खाप पंचायत का सुनकर प्यार सदमे में॥…

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Added by डॉ. सूर्या बाली "सूरज" on July 20, 2012 at 9:54pm — 11 Comments

मुझे आजादी चाहिए

(नोट: अपने हिंदुस्तान में ही हिंदी को हर कदम पर अपमानित होना पड़ रहा है ये हिंदुस्तान के अस्तित्व पर ये सवालिया निशान लगता है)



मैं अपने ही घर में कैद हूँ

मुझे अपनों से ही आजादी चाहिए

रोती बिलखती सर पटकती रही मैं

अब मेरी आवाज को एक आवाज चाहिए

जी रही हूँ कड़वे घूँट पीकर

न मेरी राह में कांटे उगाइये   

मैं अपने ही घर में कैद हूँ

मुझे अपनों से ही आजादी चाहिए

पराये मेरे दुःख पे आंसू बहा रहे हैं

मेरे जख्मों पे फिर भी मरहम लगा…

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Added by राजेन्द्र सिंह कुँवर 'फरियादी' on July 20, 2012 at 5:00pm — 5 Comments

पानी था या हवा था

पानी था, या हवा था,

वो किस दिल, की दुआ था,



ठंडा मौसम, कड़ी लू

वो गम था, या दवा था,

 

लगता था, वो खुदा पर,

किस्मत था, या जुआ था,

 

बेवजह…

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Added by अरुन 'अनन्त' on July 20, 2012 at 11:37am — 19 Comments

जिनके सर पर बाल नहीं है बाबाजी

सुर है लेकिन ताल नहीं है बाबाजी

पॉकेट  है पर माल नहीं है बाबाजी



क्योंकर कोई चूमे हमको सावन में

अपने चिकने गाल नहीं है बाबाजी



दर्पण से उनको नफ़रत हो जाती है…

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Added by Albela Khatri on July 20, 2012 at 12:00am — 32 Comments

गीत: साँसों की खिड़की पर... संजीव 'सलिल'

गीत:



साँसों की खिड़की पर...



संजीव 'सलिल'

*

साँसों की खिड़की पर बैठी, अलस्सुबह की किरण सरीखी 
आसों की चिड़िया का कलरव, सुनकर गहरी नींद खुली है...
 

सत्य जानकर नहीं मानता, उहापोह में मन जी लेता

अमिय चाहता नहीं मिले तो, खूं के आँसू ही पी लेता..

अलकापुरी न जा पायेगा, मेघदूत यह ज्ञात किन्तु नित-

भेजे पाती अमर प्रेम की, उफ़ न करे लब भी सी लेता..

सुधियों के दर्पण में देखा चाह चदरिया बिछी धुली है...

आसों की…

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Added by sanjiv verma 'salil' on July 19, 2012 at 9:00pm — 8 Comments

उम्मीदों का कोना

लहू से लतपथ,  उम्मीदों का कोना है,

कि मैं घडी भर हूँ जागा, उम्र भर सोना है,



मिला लुटा हर लम्हा, जीवन का तिनका सा,

लबों पे रख कर लफ़्ज़ों को, जी भर रोना है,



छुड़ा के दामन अब वो दोस्त, अपना बदला,

मिला के आँखों का गम, सारा आलम धोना है,…



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Added by अरुन 'अनन्त' on July 19, 2012 at 6:15pm — 10 Comments

कहानी : मठ और गढ़

सौ साल बाद एक पैसे का सिक्का गढ्ढे से बाहर निकला। एक ऊँची इमारत बनाने के लिए खुदाई चल रही थी। एक मजदूर के फावड़े से टकराकर मिट्टी के साथ उछला और जाकर सड़क के किनारे गिरा। वर्षों बाद उसने खुली हवा में साँस ली और अपने आस पास नजर घुमाई तो उसे कई निर्माणाधीन इमारतें दिखाई पड़ीं। थोड़ी देर खुली हवा में साँस लेने के बाद धीरे धीरे उसकी चेतना लौटने लगी। उसे याद आने लगा कि कैसे वो एक सेठ की थैली से निकलकर गढ्ढे में गिर गया था। सेठ ने उसे निकालने की कोशिश की मगर अंत में थक हारकर सेठ ने उसे गढ्ढे में ही…

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Added by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on July 19, 2012 at 5:56pm — 18 Comments

रिश्तों में आ गई सिलवट

बातों ने ली ऐसी करवट
रिश्तों में आ गई सिलवट

बदला ज़रा - जरा मैं जब
सूरत से था हटा घूँघट

पानी बहा नदी का तब
बखेरी जे वो सुखा कर लट,

कलेजा निकाल कर लाया,
वो रख गयी जुबां पर हट,

आँचल हवा से उड़ता है,
जीवन न अब रहा है कट

Added by अरुन 'अनन्त' on July 19, 2012 at 5:30pm — 3 Comments

गज़ल - आदमी जो बेतुका है

वो अगर  मुझसे खफा है

हक है उसको क्या बुरा है

 

घोंसले  के साथ  जुडकर

एक  तिनका  जी  रहा है

 

जो अपरिचित  है नदी से

बाढ़   पर  वो  बोलता  है

 

है   यकीं   चारागरी   पर

हो  जहर  तो  भी  दवा है

 

देख  कर  मुँह  फेर लेना

कुछ  पुराना   आशना  है

 

टूट  ही  जाना  है  उसको

सच  दिखाता  आइना  है

 

जी  रहा   तुकबंदियों  को 

आदमी   जो   बेतुका  …

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Added by Arun Sri on July 19, 2012 at 11:55am — 29 Comments

श्रद्धाजलि -

श्रद्धाजलि -

(दीवाना रूप मस्ताना प्यार जिसका )
 
बसर करता रहा जो  जिंदगी-
अपनी अदा से,
लुटाता रहा प्यार जो,
अपनी नजर से,
चाहता रहा प्यार जिसका-…
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Added by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on July 19, 2012 at 9:30am — 4 Comments

तीन कह-मुकरियाँ

तीन कह-मुकरियाँ

(एक अभिनव प्रयोग)

 

खुसरो की बेटी कहलाये

भारतेंदु संग रास रचाये

कविजन सारे जिसके प्रहरी

क्या वह कविता? नहिं कह-मुकरी!

 

बांच जिसे जियरा हरषाये

सोलह मात्रा छंद सुहाये

पुलकित नयना बरसे बदरी

क्या चौपाई ? नहिं कह-मुकरी!

 

चैन चुराये दिल को भाये 

चिर-आनंदित जो…

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Added by Er. Ambarish Srivastava on July 19, 2012 at 1:00am — 23 Comments

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