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मुक्तिका "सावन"

मेघों का गर्जन है सावन
बूंदों का अर्पण है सावन

हरियाली चहुँ ओर बिखेरे
कितना मन रंजन है सावन

दीनों की छत से टप टप स्वर
दुःख का अनुरंजन है सावन

शीतल बूंद गिरे जब तन पर
अतिशय तप भंजन है सावन

छेड़े धुन मल्हार पवन जब
मीठा स्वर गुंजन है सावन

"दीप" सजे सब मंदिर देखो
भोले का पूजन है सावन

संदीप पटेल "दीप"

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Comment

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Comment by SANDEEP KUMAR PATEL on July 24, 2012 at 10:37am

आदरणीय अलबेला सर जी आदरणीय अम्बरीश सर जी आप दोनों का बहुत बहुत धन्यवाद और सादर आभार इस मुक्तिका को पढ़ के साराहना के लिए आने बनाये रखिये

Comment by Er. Ambarish Srivastava on July 23, 2012 at 4:01pm

//छेड़े धुन मल्हार पवन जब
मीठा स्वर गुंजन है सावन
//

हरियाली मन मोह रही है,

आँखों का अंजन है सावन.

वाह संदीप जी वाह! सावन पर आधारित अत्यंत सुंदर मुक्तिका रची है आपने! बहुत बहुत बधाई मित्र 

Comment by Albela Khatri on July 22, 2012 at 11:18pm

बहुत खूब

शीतल बूंद गिरे जब तन पर
अतिशय तप भंजन है सावन
__बधाई

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