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(नोट: अपने हिंदुस्तान में ही हिंदी को हर कदम पर अपमानित होना पड़ रहा है ये हिंदुस्तान के अस्तित्व पर ये सवालिया निशान लगता है)

मैं अपने ही घर में कैद हूँ
मुझे अपनों से ही आजादी चाहिए
रोती बिलखती सर पटकती रही मैं
अब मेरी आवाज को एक आवाज चाहिए
जी रही हूँ कड़वे घूँट पीकर
न मेरी राह में कांटे उगाइये   
मैं अपने ही घर में कैद हूँ
मुझे अपनों से ही आजादी चाहिए
पराये मेरे दुःख पे आंसू बहा रहे हैं
मेरे जख्मों पे फिर भी मरहम लगा रहे हैं
जिन्हें पाल पोसकर नाम दिया अपना
मरघट में वो ही मुझे जला रहे हैं
बिलायती बहू के जख्मों से नहीं डरती मैं
अपनों की नजरों से मरती हूँ मैं
सामर्थ मिल रही मेरे पगों को फिर भी
हर तूफान से अकेले ही लड़ती हूँ मैं
मैं अपने ही घर में कैद हूँ
मुझे अपनों से ही आजादी चाहिए

.रचना - राजेन्द्र सिंह कुँवर 'फरियादी''

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Comment by AVINASH S BAGDE on July 21, 2012 at 6:30pm

श्री राजेंद्र कुमार जी हिंदी के प्रति आपकी भावना को...mera bhi सलाम..


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on July 21, 2012 at 1:05pm

बहुत सुन्दर सार्थक प्रस्तुति हिंदी सचमुच में सब रुकावटों के बावजूद खुद अपना रास्ता बनाकर आगे बढ़ रही है जागरूक करती सुन्दर सन्देश देती हुई इस पोस्ट के लिए बहुत बधाई 

Comment by UMASHANKER MISHRA on July 20, 2012 at 10:50pm

श्री राजेंद्र कुमार जी हिंदी के प्रति आपकी भावना को सलाम

भले ही अपने घर में हिंदी को वो सम्मान नहीं मिला ...परन्तु आज की परिस्थियों में आर्थिक जंग के दौर में हिंदी को अपनाना

लोगों की मज़बूरी बनते जा रही है ...हिंदी स्वयं रास्ता बनाते आगे बढ़ते चली जा रही है अमेरिका चीन जापान जैसे देश हिंदी सिखने की दिशा में अग्रसर हैं आपको इस बढ़िया रचना के लिए बधाई ..आओ हम सब मिल कर हिंदी के राहों में फूल बिछाएं

हिंदी मय रहेगा हिंदुस्तान हमारा .... जय हिंद

Comment by Bishwajit yadav on July 20, 2012 at 10:47pm
राजेन्द्र जी आप कि बात तो ठिक है पर अब समय थोडा बदला है पर हिन्दी के लिये हम सब को एकजुट होकर काम करना होगा
Comment by Albela Khatri on July 20, 2012 at 10:30pm

सम्मान्य राजेन्द्र सिंह जी,
हिन्दी  के दर्द को बहुत मार्मिक शब्दों में अभिव्यक्त किया आपने...अभिनन्दन

परन्तु ये एक सुखद  अनुभव भी है हमें  कि हिन्दी अब उतनी बुरी दशा में नहीं है.  बहुत तीव्रता से हिन्दी समूचे विश्व में फ़ैल रही है

सादर

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