बातों ने ली ऐसी करवट
रिश्तों में आ गई सिलवट
बदला ज़रा - जरा मैं जब
सूरत से था हटा घूँघट
पानी बहा नदी का तब
बखेरी जे वो सुखा कर लट,
कलेजा निकाल कर लाया,
वो रख गयी जुबां पर हट,
आँचल हवा से उड़ता है,
जीवन न अब रहा है कट
Comment
आदरणीय सौरभ जी तथा बागी जी, आप दोनों के द्वारा दिए गए सुझाव पर आगे से ध्यान रखूँगा.
बातों ने ली ऐसी करवट
रिश्तों में भी आई सिलवट
अध्ययन और मेहनत दोनों की मांग करती है यह रचना | ग़ज़ल की कक्षा से आपको लाभ हो सकता है अवश्य देखें |
अरुण शर्मा भाई, आप शिल्प के लिहाज़ से क्या लिखना चाह रहे हैं ?
भाई अरुण श्रीवास्तवजी ने आपकी किसी रचना पर प्रतिक्रिया स्वरूप पहले ही एक सटीक सुझाव दिया है कि आप आवश्यक अध्ययन करें. मेरा भी ऐसा मानना है. फिर आपकी रचनाओं से पाठक अवश्य लाभान्वित होंगे. आपके पास यथोचित भाव हैं.
बखेरी जे वो सुखा कर लट .. इस मिसरा का अर्थ स्पष्ट नहीं हुआ.
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