आज़ादी
मेरे देश की आज़ादी
चीख रही थी
लाउड स्पीकर से
ऐ मेरे वतन के लोगो
ऐ मेरे प्यारे वतन
बहरे सुन रहे थे
गूंगे गुनगुना रहे थे
अंधे देख देख विश्मित हो रहे थे
लाल लाल शोलों से घिरा
एक दरख्त
कुछ लोग चढ़े हुए
हरे नीले पीले लाल
हाँ लाल लाल लाल
उस काले से दरख्त पे
सुर्ख लाल पत्ते
जिनकी नोंको से टपक रही थी
शराब सी शबनम
टप टप- टप टप
घेरा डाले बैठे से
बाज़ चील कौए
डाल डाल…
Added by SANDEEP KUMAR PATEL on August 17, 2012 at 9:57am — 2 Comments
संवेदनाओं की गहरी
-जड़ों पे टिके
अभिव्यक्ति के विशाल वृक्ष पे
भावनाओं की विस्तृत साखें
स्मृतियों के हरे भरे सब्ज पत्ते
आशाओं की उद्दीप्त नवल कोपल
और लटकते हैं
कडवे मीठे शब्द
कच्चे ,अध् पके ,अध् कच्चे
और कभी कभी पके शब्द
नीम नीम
या
शहद शहद
लज्ज़त लेने को
चख लेता हूँ
शब्द शब्द
अभिव्यक्ति के दरख्त पे
शब्द शब्द
संदीप पटेल "दीप"
Added by SANDEEP KUMAR PATEL on August 17, 2012 at 9:21am — 4 Comments
एक अपार प्रसन्नता जो इस मंच के कारण मिली, उसे अन्य सोशल साइट्स के मित्रों से साझा कर शुभकामनाएँ लेते हुए आज ओबीओ के सदस्यों और पाठकों से भी साझा कर आशीर्वाद ले रहा हूँ.
मेरी हास्य रचना ’..और मैं कवि बन गया’ को ओबीओ प्रबन्धन और प्रधान सम्पादक द्वारा माह अप्रैल’12 की सर्वश्रेष्ठ रचना घोषित की गयी थी. इसका सर्टिफिकेट तथा पुरस्कार राशि का चेक प्राप्त हुआ. मेरे रचना-प्रयास को मान देने के लिये ओबीओ के सभी सदस्यों और प्रायोजक को मेरा प्रणाम.
ओबीओ मंच द्वारा इस उत्साहवर्धन के लिये…
ContinueAdded by Shubhranshu Pandey on August 17, 2012 at 9:00am — 5 Comments
पहले से ही त्रस्त हैं, सीधे सादे लोग
मत फैलाओ भाइयो, अफवाहों का रोग
जन जन आशंकित हुआ, नख से लेकर केश
अफवाहों की आँच में, झुलस न जाये देश
देश हमारा ताज है, देशधर्म सरताज
जब तक इसकी लाज है, तब तक अपनी लाज
किसके सिर में चल रही, हिंसा की खुजलाट
मुझको गर दिख जाये वो, मारूँ उसे चमाट
कर्णाटक हो या असम, चाहे महाराष्ट्र
एक हमारी भावना, एक हमारा राष्ट्र
बीज न बोयें द्वेष का, रखिये मन में नेह
आपस में…
Added by Albela Khatri on August 17, 2012 at 1:30am — 23 Comments
मेरे प्यारे मित्रो ! आपको यह जानकार ख़ुशी होगी कि "ओपन बुक्सऑन लाइन" द्वारा आयोजित "चित्र से काव्य तक " प्रतियोगिता में मेरी प्रविष्टि को प्रथम पुरस्कार मिला है . साथ ही "ओपन बुक्स ऑन लाइन" द्वारा मुझे जुलाई 2012 के लिए महीने का सक्रिय सदस्य घोषित करके पुरस्कृत किया गया है . आज ही प्रमाण-पत्र और रुपये 2100 का ड्राफ्ट प्राप्त हुआ है . इस ख़ुश खबर को आपके साथ सांझा कर रहा हूँ......आपकी दुआ से आज मैं ख़ूब प्रसन्न हूँ.....
दो दो पुरस्कार एक साथ मिलने की बात ही अलग है…
Added by Albela Khatri on August 16, 2012 at 9:30pm — 31 Comments
Added by Deepak Sharma Kuluvi on August 16, 2012 at 3:40pm — 2 Comments
तुम्हारे क़दमों के नीचे
सूखे हुए पत्तों की
चरमराहट ने भेज दिया
संदेसा,
छुप गई
मृगनयनी कोमल
लताओं की ओट में
अपलक निहारने लगी
तुम्हारा ओजपूर्ण लावण्य
काँधे पर तरकश
हाथ में तीर लेकर
ढूंढ रहे थे तुम अपना
शिकार
दरख़्त से
लिपटी हुई लताओं
के खिसकने की
आवाज के साथ
तुमने कुछ खिलखिलाहट
महसूस की
तुमने झाँक कर देखा
ढलते हुए सूरज की
सुर्ख लाल किरणों के
तीर उसकी आँखों को बींध…
Added by rajesh kumari on August 16, 2012 at 2:30pm — 15 Comments
Added by AVINASH S BAGDE on August 16, 2012 at 9:59am — 10 Comments
नैनों तेरी छवि बसी, मन तेरे गुण गाए,
फिर काहे तू दामिनी, रूठ मुझे सताए |
पल भर तेरी दूरी, दे मुझको तड़पाए,
ठंढी-ठंढी आहें भरूँ, कहीं जिया न जाए |
बिन तेरे ऐसे लगे, फूल भी शूल…
ContinueAdded by कुमार गौरव अजीतेन्दु on August 15, 2012 at 10:44pm — 2 Comments
प्यार की इक खोई नज़र आज फिर लौट आयी, झुकी आँखों का दबा दबा भंवर आज फिर याद हो आया. ज़मीन पे बिछे तोशक पे, दीवार से लगके बैठे, कँवल सी फ़ैली हथेलियों में अपनी ठोढ़ी संभाल के, अपनी लरज़ती ज़ुल्फों के काकुल के झरोखे से ज़मीन को ताकते हुए तुम किसे सोचती थीं? मैं जानता हूँ, वो मैं ही था और और थीं तो हमारे बेसाख्ता पैदा हुए प्यार के गैरमुऐयन मुस्तकबिल (अनिश्चित भविष्य) की तश्वीशात (चिंताएं)! फिक्रमंद, अपनी सतर उँगलियों से मिट्टी पे जो अबूझ से नक्श तुमने उकेरे थे, ...इक शाम मेरे साथ, आज वो ख़्वाबों…
ContinueAdded by राज़ नवादवी on August 15, 2012 at 9:12pm — 5 Comments
Added by Shashi Mehra on August 15, 2012 at 4:46pm — 6 Comments
१.
Added by Dr.Prachi Singh on August 15, 2012 at 4:08pm — 13 Comments
2012 में 15 अगस्त को भारतवासी अपनी आजादी के 66वें वर्ष में प्रवेश का जश्न मना रहे है, वही साथ ही उनके मन में यह प्रश्न भी कौंध रहा है कि इस प्रकार आधी-अधूरी आजादी के क्या मतलब। जबकि सच यह है कि आजादी आधी-अधूरी नहीं, बल्कि पूरी है। लेकिन जब मानसिकता ही गुलामी वाली हो तो कोई क्या कर सकता है। गुलामों को अगर शारीरिक तौर पर आजाद भी कर दिया जाए, तो भी वह जी-हुजूरी में इतने मग्न होते है कि उनको समझाना ही असंभव है कि वह आजाद हो गए है। अगर हम पूरी तरह से आजाद न होते तो क्या दिल्ली में लाखों लोग…
ContinueAdded by Harish Bhatt on August 15, 2012 at 2:30pm — 4 Comments
Added by rajni chhabra on August 15, 2012 at 12:30pm — 3 Comments
Added by Mukesh Kumar Saxena on August 15, 2012 at 11:30am — 3 Comments
भारत प्यारा वतन हमारा सबसे सुन्दर न्यारा देश
Added by SURENDRA KUMAR SHUKLA BHRAMAR on August 15, 2012 at 11:30am — 9 Comments
आज लगते ही तू लगता है चीखने
"आ ज़ाऽऽऽ दीऽऽऽऽऽऽऽऽ...."
घोंचू कहीं का.
मुट्ठियाँ भींच
भावावेष के अतिरेक में
चीखना कोई तुझसे सीखे .. मतिमूढ़ !
…
ContinueAdded by Saurabh Pandey on August 15, 2012 at 11:30am — 43 Comments
रंग बिरंगा देश है मेरा
रंग बिरंगी शान है
सारी दुनिया कहती है , सुनलो …
भारत देश महान है !
Added by Ranveer Pratap Singh on August 15, 2012 at 11:30am — 5 Comments
" बधाई – कुण्डलिया "
ओ.बी.ओ. के फलक पर , देखा है संदेश
मना रहे हैं जन्म-दिन , गुप्ता चंद्र दिनेश
गुप्ता चंद्र दिनेश , कहे जाते हैं रविकर…
Added by अरुण कुमार निगम on August 15, 2012 at 10:19am — 4 Comments
आता है हर साल मेरे राह में गुजर
शहिदों की यादें लिए त्यौहार को नमन
वो तो चले गये जो सदा रहेंगें अमर
उनके खूँ के गर्मी के उपकार को नमन
सम्हालना था जिन्हें इस देश की डगर
जाने कहाँ खो गये उनका भी हो नमन
लूटने…
ContinueAdded by UMASHANKER MISHRA on August 15, 2012 at 1:20am — 6 Comments
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