For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

मृगनयनी

तुम्हारे क़दमों के नीचे
सूखे हुए पत्तों की
चरमराहट ने भेज दिया
संदेसा,
छुप गई
मृगनयनी कोमल
लताओं की ओट में
अपलक निहारने लगी
तुम्हारा ओजपूर्ण लावण्य
काँधे पर तरकश
हाथ में तीर लेकर
ढूंढ रहे थे तुम अपना
शिकार
दरख़्त से
लिपटी हुई लताओं
के खिसकने की
आवाज के साथ
तुमने कुछ खिलखिलाहट
महसूस की
तुमने झाँक कर देखा
ढलते हुए सूरज की
सुर्ख लाल किरणों के
तीर उसकी आँखों को बींध गए
मानो दो दीये प्रज्ज्वलित हो उठे वहां
उस मृगनयनी आँखों में
और तुम अपलक देखते ही रह गए
समझ नहीं पाए तुम
कि शिकार तुम्हारा
दिल हो चुका था
पल में तुम्हारा दंभ
चकनाचूर हो गया
क्षणभर में एक गर्वित शिकारी
कब भिक्षुक बन बैठा
पता ही ना चला

*************

Views: 663

Facebook

You Might Be Interested In ...

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on August 22, 2012 at 9:12am

अशोक कुमार रक्तेला जी बहुत बहुत  हार्दिक  आभार 

Comment by Ashok Kumar Raktale on August 22, 2012 at 12:20am

राजेश कुमारी जी

                सादर, ह्रदय परिवर्तन के पल को इतने सुन्दर शब्दों से सजा कर प्रस्तुत करने के लिये हार्दिक बधाई.


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on August 17, 2012 at 1:01pm
बहुत- बहुत हार्दिक आभार रेखा जी इसी तरह स्नेह बनाए रखिये 
Comment by Rekha Joshi on August 17, 2012 at 12:59pm

समझ नहीं पाए तुम 
कि शिकार तुम्हारा 
दिल हो चुका था 
पल में तुम्हारा दंभ
चकनाचूर हो गया 
क्षणभर में एक गर्वित शिकारी
कब भिक्षुक बन बैठा
पता ही ना चला ,अति सुंदर अभिव्यक्ति आदरणीया राजेश जी ,आभार 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on August 17, 2012 at 9:25am

संदीप कुमार पटेल जी आपने मेरी लेखनी को मान दिया अच्छी लगी रचना आपको हार्दिक आभार 

Comment by SANDEEP KUMAR PATEL on August 17, 2012 at 9:11am

आदरणीया राजेश कुमारी जी सादर प्रणाम
बहुत सुन्दर रचना है
एक एक शब्द रचना में गहने की तरह सोभायमान हो रहा है
और फिर अंत में आपने शब्दों की बेजोड़ माला गुथी है
पता ही नहीं चल पा रहा है की इस माला की गाँठ कहाँ हैं
बधाई हो आपको


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on August 17, 2012 at 8:20am

बहुत बहुत हार्दिक आभार नीरज जी आपको रचना पसंद आई 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on August 17, 2012 at 8:19am

बहुत बहुत हार्दिक आभार अविनाश बागडे जी आपको रचना पसंद आई 

Comment by AVINASH S BAGDE on August 16, 2012 at 8:24pm

समझ नहीं पाए तुम 
कि शिकार तुम्हारा 
दिल हो चुका था 
पल में तुम्हारा दंभ
चकनाचूर हो गया 
क्षणभर में एक गर्वित शिकारी
कब भिक्षुक बन बैठा
पता ही ना चला...wah..kya shabd-rachana hai...Rajesh kumari mam.


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on August 16, 2012 at 6:43pm

सुरेन्द्र कुमार शुक्ल भ्रमर जी हार्दिक आभार आपको रचना पसंद आई 

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity


सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post कहीं खो गयी है उड़ानों की जिद में-गजल
"आदरणीय लक्ष्मण भाई , ग़ज़ल के लिए आपको हार्दिक बधाई "
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी and Mayank Kumar Dwivedi are now friends
yesterday
Mayank Kumar Dwivedi left a comment for Mayank Kumar Dwivedi
"Ok"
Sunday
Sushil Sarna commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post दोहे -रिश्ता
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी रिश्तों पर आधारित आपकी दोहावली बहुत सुंदर और सार्थक बन पड़ी है ।हार्दिक बधाई…"
Apr 1
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-120
"तू ही वो वज़ह है (लघुकथा): "हैलो, अस्सलामुअलैकुम। ई़द मुबारक़। कैसी रही ई़द?" बड़े ने…"
Mar 31
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-120
"गोष्ठी का आग़ाज़ बेहतरीन मार्मिक लघुकथा से करने हेतु हार्दिक बधाई आदरणीय मनन कुमार सिंह…"
Mar 31
Manan Kumar singh replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-120
"आपका हार्दिक आभार भाई लक्ष्मण धामी जी।"
Mar 31
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-120
"आ. भाई मनन जी, सादर अभिवादन। बहुत सुंदर लघुकथा हुई है। हार्दिक बधाई।"
Mar 31
Manan Kumar singh replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-120
"ध्वनि लोग उसे  पूजते।चढ़ावे लाते।वह बस आशीष देता।चढ़ावे स्पर्श कर  इशारे करता।जींस,असबाब…"
Mar 30
Admin replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-120
"स्वागतम"
Mar 30
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-177
"आ. रिचा जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए आभार।"
Mar 29
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-177
"आ. भाई अजय जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए आभार।"
Mar 29

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service