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सादर,
सुन्दर रचना छंदबद्ध करने का प्रयास किन्तु विचारों में ये विरोधाभास् क्यूँ है? एक तरफ तो गुलामी बेहतर लग रही है और फिर आजादी के पहले के हाल से कातरता भी!
सुनते हैं, आज़ादी से तो, बहतर रही गुलामी |
एकदम नहीं. एक गलत मिसरा. रचना-प्रयास सकारात्मक भाव का वाहक हो.
क्या व्याप्त और रचना में उल्लेख्य दोषों और गलतियों का सबसे बड़ा कारण हम स्वयं नहीं हैं ? हम सब नागरिकों की जागरुकता और मनस-भाव कहाँ और क्यों सुप्तावस्था में पड़े थे जब देश में ऐसे अक्षम लोग शासन योग्य समझे गये ? उँगली बता कर हम दोषमुक्त नहीं हो सकते.
हमारे देश जैसी आज़ादी विरले देशों को मिलती है. कर्णधारों की अयोग्यता हमारी ही ओढ़ी हुई अयोग्यता है.
रचना-प्रयास के लिये शशिजी आपको हार्दिक धन्यवाद.
बे-शुमार दौलत इक्कठी, कर ली है बेनामी |
नेताओं की किस्मत में, लिख दे दाता सूनामी |-----हाहाहा सही बददुआ दे रहे हैं पर लगता है सुनामी भी इनका कुछ नहीं बिगाड़ पाएगी -----बहुत सार्थक सामयिक लिखा बधाई आपको
badhiya .....saab ..wah
आदरणीय शशि मेहरा जी
आज की परिस्थितिती के अनुरूप बेहद सटीक रचना है
आपको हार्दिक बधाई
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