(बहरे रमल मुसम्मन मख्बून मुसक्कन
फाइलातुन फइलातुन फइलातुन फेलुन.
२१२२ ११२२ ११२२ २२)
जब भी हो जाये मुलाक़ात बिफर जाते हैं
हुस्नवाले भी अजी हद से गुजर जाते हैं
देख हरियाली चले लोग उधर जाते हैं
जो उगाता हूँ उसे रौंद के चर जाते हैं
प्यार है जिनसे मिला उनसे शिकायत ये ही
हुस्नवाले है ये दिल ले के मुकर जाते हैं
माल लूटें वो जबरदस्त जमा करने को
रिश्तेदारों के…
ContinueAdded by Er. Ambarish Srivastava on October 11, 2012 at 11:00pm — 22 Comments
Added by AVINASH S BAGDE on October 11, 2012 at 8:36pm — 17 Comments
मुक्तिका;
बेवफा से ...
संजीव 'सलिल'
*
बेवफा से दिल लगा के, बावफा गाफिल हुआ।
अधर की लाली रहा था, गाल का अब तिल हुआ।।
तोड़ता था बेरहम अब, टूटकर चुपचाप है।
हाय रे! आशिक 'सलिल', माशूक का क्यों दिल हुआ?
कद्रदां दुनिया थी जब तक नाश्ते की प्लेट था।
फेर लीं नजरों ने नजरें, टिप न दी, जब बिल हुआ।।
हँसे खिलखिल यही सपना साथ मिल देखा मगर-
ख्वाब था दिलकश, हुई ताबीर तो किलकिल हुआ।।
'सलिल' ने माना था भँवरों को कँवल का मीत पर-
संगदिल…
Added by sanjiv verma 'salil' on October 11, 2012 at 7:59pm — 8 Comments
रोज की तरह मंदिर के सामने वाले पीपल के पेड़ की छाँव में स्कूल से आते हुए कई बच्चे सुस्ताने से ज्यादा उस बूढ़े की कहानी सुनने के लिए उत्सुक आज भी उस बूढ़े के इर्द गिर्द बैठ गए और बोले दादाजी दादा जी आज भूत की कहानी नहीं सुनाओगे ?नहीं आज मैं तुम्हें इंसानों की कहानी सुनाऊंगा बूढ़े ने कहा-"वो देखो उस घर के ऊपर जो कौवे मंडरा रहे हैं आज वहां किसी का श्राद्ध मनाया जा रहा है, उस लाचार बूढ़े का जो पैरों से चल नहीं सकता था पिछले वर्ष उसकी खटिया जलने से मौत हुई थी उसकी खाट के पास उसकी बहू ने…
ContinueAdded by rajesh kumari on October 11, 2012 at 11:10am — 28 Comments
यूं ही तोड़ लिया था उस दिन,
एक सफ़ेद गुलाब बागीचे से,
मैंने तुम्हारे लिए/
कि सौंप कर तुम्हें..
तुमसे सारे भाव मन के
कह दूंगा,
नीली नीली स्याही सा
कोरे कागज़ पर बह दूंगा/
हो जाऊँगा समर्पित ,
पुष्प की तरह/
फिर तुम ठुकरा देना
या अपना लेना/
मगर फिर तुम्हारे सामने...
शब्द रुंध गये/
स्याही जम गयी/
धडकनें बढ़ गयीं/
सांस थम गयी/
मैं असमर्थ था ..
तुम्हरी आँखों के सुर्ख सवालों,
का उत्तर देने में/
या कि उस लिखे हुए उत्तर के…
Added by Pushyamitra Upadhyay on October 11, 2012 at 9:12am — 10 Comments
गज़ल के विषय में मेरा ज्ञान ना के बराबर भी शायद ही हो, फिर भी प्रयास कर रहा हूँ ! आशा है, आशीष रहेगा !
तुमसे जो चंद बात में कुछ पल ठहर गया !
जरा खबर ना हुई बड़ा लम्हा गुज़र गया !
अमृत ही पाने को निकला था सफर पे मै !
पीछे मधु की बूंदों के सारा सफर गया !
…
ContinueAdded by पीयूष द्विवेदी भारत on October 10, 2012 at 10:30pm — 18 Comments
तेरी यादों का श्रृंगार सजा
मैं भूले गीत सुनाता हूँ.
कृन्दन-रोदन के साज बजा
जीवन रीत सजाता हूँ.
वो वल्लरियों से पल
तेरी सुध से महके ऐसे
फिर से सिंचित कर उर में
मन को फिर समझाता हूँ.
कल बारिस की झनझन में
पैजनियाँ तेरी झंकार गई
मैं उन्हीं पुराने सुर में ही
फिर से गीत सजाता हूँ.
मन पुलकित होता बेसुध मैं
कम्पित करता तार वही
उसी भँवर में बार-बार मैं
घूम-घूम कर आता हूँ.!!
Added by Raj Tomar on October 10, 2012 at 7:22pm — 12 Comments
========ग़ज़ल=========
बह्रे - मुतकारिब मुसम्मन् महजूफ
वजन- १ २ २ - १ २ २ -१ २ २ - १ २
मुहब्बत है तो फिर जताओ जरा
ये पर्दा हया का उठाओ जरा
अजी मुस्कुराते हो क्यूँ आह भर
है क्या राज दिल में बताओ जरा…
Added by SANDEEP KUMAR PATEL on October 10, 2012 at 1:55pm — 9 Comments
In practice, a banana republic is a country operated as a commercial enterprise for private profit, effected by the collusion (मिलीभगत) between the State and favoured monopolies, whereby the profits derived from private exploitation of public lands is private property, and the debts…
ContinueAdded by MARKAND DAVE. on October 10, 2012 at 1:36pm — 6 Comments
गाँव की विधवाओं को सरकार की ओर से सहायता राशि वितरित की जा रही थी. तभी एक नौजवान विधवा अपने हिस्से की धनराशि लेने मंच की ओर बढ़ी, जिसे देख नेता जी ने सरपंच के कान में धीरे कहा,
"ये लड़की कौन है ?"
"ये नंदू लुहार की बहू है नेता जी."
"अरे भई इसको तो बाकियों से ज्यादा पैसा मिलना चाहिए था."
"वो क्यों नेता…
Added by योगराज प्रभाकर on October 10, 2012 at 10:00am — 34 Comments
सप्त पदी को पार करेंगे (०९-१०-२०१२)
हाथ थाम कर साजन सजनी सप्त पदी को पार करेंगे,
वचन बद्ध हो प्रिय चितवन का हर रस अंगीकार करेंगे...
चंचल चित्त माधुरी शोखी
और कभी गहरी ख़ामोशी,
प्रिय की हर इक भाव लहर से
अपना नव शृंगार करेंगे...
हाथ थाम कर साजन सजनी सप्त पदी को पार करेंगे,
वचन बद्ध हो प्रिय चितवन का हर रस अंगीकार करेंगे...
प्रिय के हिय में मुस्काएंगे
नयन प्रीति भर इतरायेंगे,
कर्म क्षेत्र में…
ContinueAdded by Dr.Prachi Singh on October 9, 2012 at 10:00pm — 34 Comments
कैसे कह दूं हिंद हूं मैं
चीन हूं या अमरीका हूं
यूरोप शुष्क भावों की धरती
या अंध देश अफ्रीका हूं
प्रिय विछोह के विरह ताप से
सहस्त्र युगों तक तप्त रही मैं
निर्जनता के दु:सह शाप से
सदियों तक अभिशप्त रही मैं
लखकर तब मेरे विषाद को
दृग केशव के भर आए थे
असंख्य यक्ष गंधर्वों ने मिलकर
अश्रु के अर्ध्य चढ थे
मुरली से फिर जीवन फूटा
उल्लासित दशों दिशाएं थी
ओढ ओस की झीनी…
ContinueAdded by राजेश 'मृदु' on October 9, 2012 at 3:58pm — 9 Comments
===========ग़ज़ल===========
बहरे- हजज
वजन- १ २ २ २- १ २ २ २- १ २ २ २- १ २ २ २
सिपाही मुल्क की सरहद पे सुबहो शाम क्या देखे
कटाने सर कफ़न बांधे खड़ा अंजाम क्या देखे
गरीबी ने मिटा डाला…
Added by SANDEEP KUMAR PATEL on October 9, 2012 at 2:30pm — 19 Comments
कुछ भी हो सकता है
जंगल राज है कुछ न कहो
ख़ामोशी अपनाओ
बापू के तीन बंदरों जैसे
ज्ञानी बन जाओ
अच्छा देखो न बुरा ही देखो
न ही सुनो न कहो
सुखी जो रहना चाहते हो
मूक दर्शक बन जाओ
वर्ना कुछ भी हो सकता है
सब कुछ लुट सकता है
मौत से डर नहीं लगता तो
हरगिज़ न घबराओ
फैसला आपके हाथ में है
कैसे जीना चाहते हो
इज्जत अगर है प्यारी
मेरे साथ आओ
मेरे साथ आ....…
Added by Deepak Sharma Kuluvi on October 9, 2012 at 1:17pm — 6 Comments
===========ग़ज़ल===========
बहरे- हजज
वजन- १ २ २ २- १ २ २ २- १ २ २ २- १ २ २ २
सुबह भी स्याह जिसकी वो सुहानी शाम क्या देखे
वो मारा फुर्कतों का रात का अंजाम क्या देखे
लगा कर हौसलों के पर परिंदा इश्क का…
Added by SANDEEP KUMAR PATEL on October 9, 2012 at 12:30pm — 14 Comments
बिनम्र भाव से बोले रावण
क्या मुझे जलाने आए हो
ज्ञानी पंडित भी साथ न लाए हो
मेरी मुक्ति कैसे होगी ?
मेरी मुक्ति नहीं होती
तभी तो बच जाता हूँ
सबसे अधिक बार जलने का
गिनीज़ वर्ल्ड रिकार्ड बनाता हूँ
Added by Deepak Sharma Kuluvi on October 9, 2012 at 11:00am — 5 Comments
ऐ मेरे प्रांगण के राजा
क्यूँ तुम ऐसे मौन खड़े
झंझावत जो सह जाते थे
जीवन के वो बड़े बड़े
क्यूँ तुम ऐसे मौन खड़े ?
बरसों से जो दो परिंदे
इस कोतर में रहते थे
दर्द अगर उनको होता
तेरे ही अश्रु बहते थे
उड़ गए वो तुझे छोड़ कर
अपनी धुन पर अड़े अड़े
क्यूँ तुम ऐसे मौन खड़े ?
इस जीवन की रीत यही है
सुर बिना संगीत यही है
उनको इक दिन जाना था
जीवन धर्म निभाना था
राजा जनक भी खड़े…
ContinueAdded by rajesh kumari on October 9, 2012 at 9:16am — 21 Comments
ना गर्मी में ताप है, ना सर्दी में शीत,
जाने कैसा दौर है, कोई नियम ना रीत |
गूंगे बहरे पा रहे अंधों से सम्मान,
ग़ालिब भूखे पेट है तुलसी नंगी पीठ |
जब पैसा साहित्य का बन जाता है धर्म,
ग़ज़लें बर्तन मांजती पानी भरते गीत |
Added by ajay sharma on October 8, 2012 at 10:00pm — 4 Comments
आह हस्रत तिरी कि ज़ीस्त जावेदाँ न हुई
यूँकि ये मरके भी आज़ादीका उन्वाँ न हुई
तू जो इक रात मेरे पास मेहमाँ न हुई
ज़िंदगी आग थी पे शोलाबदामाँ न हुई
ज़िंदगी तेरे उजालों से दरख्शां न हुई
ये ज़मीं चाँद-सितारोंकी कहकशाँ न हुई
बात ये है कि मिरी चाह कामराँ न हुई
एक आंधी थी सरेराह जो तूफाँ न हुई
दौरेमौजूदा में आज़ादियाँ आईं लेकिन
लैला-मजनूँकी तरह और दास्ताँ न हुई
याद तुझको न करूँ…
ContinueAdded by राज़ नवादवी on October 8, 2012 at 9:00pm — 2 Comments
(चार चरण : विषम चरण १३
मात्रा व जगण निषेध / सम चरण ११ मात्रा)
आदिशक्ति है नारि ही, झुक जाते भगवान.
नारी सबकी मातु है, सब जन पुत्र समान..
शक्तिरूप में ही वही, नहीं अल्प अभिमान.
परमेश्वर के रूप में, पिय को देती मान..
ताने सहकर नित्य ही, बनी रहे अनजान.
सदा समर्पित भाव से, सबका रखती ध्यान..
जान बूझ बंधन बँधे, बचपन बाँधे पित्र.
यौवन में पिय बाँधते, जरा अवस्था पुत्र..
ईश्वर ही नर…
ContinueAdded by Er. Ambarish Srivastava on October 8, 2012 at 1:13am — 13 Comments
2024
2023
2022
2021
2020
2019
2018
2017
2016
2015
2014
2013
2012
2011
2010
1999
1970
आवश्यक सूचना:-
1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे
2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |
3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |
4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)
5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |
© 2024 Created by Admin. Powered by
महत्वपूर्ण लिंक्स :- ग़ज़ल की कक्षा ग़ज़ल की बातें ग़ज़ल से सम्बंधित शब्द और उनके अर्थ रदीफ़ काफ़िया बहर परिचय और मात्रा गणना बहर के भेद व तकतीअ
ओपन बुक्स ऑनलाइन डाट कॉम साहित्यकारों व पाठकों का एक साझा मंच है, इस मंच पर प्रकाशित सभी लेख, रचनाएँ और विचार उनकी निजी सम्पत्ति हैं जिससे सहमत होना ओबीओ प्रबन्धन के लिये आवश्यक नहीं है | लेखक या प्रबन्धन की अनुमति के बिना ओबीओ पर प्रकाशित सामग्रियों का किसी भी रूप में प्रयोग करना वर्जित है |