For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

मुक्तिका; बेवफा से ... संजीव 'सलिल'

मुक्तिका;
बेवफा से ...
संजीव 'सलिल'
*
बेवफा से दिल लगा के, बावफा गाफिल हुआ। 
अधर की लाली रहा था, गाल का अब तिल हुआ।।

तोड़ता था बेरहम अब, टूटकर चुपचाप है।
हाय रे! आशिक 'सलिल', माशूक का क्यों दिल हुआ?

कद्रदां दुनिया थी जब तक नाश्ते की प्लेट था।
फेर लीं नजरों ने नजरें, टिप न दी, जब बिल हुआ।।

हँसे खिलखिल यही सपना साथ मिल देखा मगर-
ख्वाब था दिलकश,  हुई ताबीर तो किलकिल हुआ।।

'सलिल' ने माना था भँवरों को  कँवल का मीत पर-
संगदिल भँवरों के मंझधार भी साहिल हुआ।।

*****


Acharya Sanjiv verma 'Salil'

Views: 511

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by sanjiv verma 'salil' on October 14, 2012 at 5:42pm

अविनाश जी, योगराज जी, संदीप जी, राजेश कुमारी जी, वीनस जी, अम्बरीश जी, गणेश जी

आप सबको सादर नमन.
आपने मुक्तिका को सराह कर उत्साह वर्धन किया धन्यवाद.
प्रसन्नता है कि आप सब मुझे याद रखे हैं.
वीनस जी आप जब चाहें सीधे बात कर लिया करें... ०९४२५१८३२४४ या ०७६१ २४१११३१. अभी तो आपके दिल की पुकार सीधे ही मुझे खींच ले गयी.
ओबीओ को मैंने अपना ही मंच माना है. वातावरण और नियमों के परिवर्तन के कारण नियमित उपस्थिति संभव  नहीं हो पाती है.
लगभग हर दिन ओबीओ पर एक बार दृष्टिपात तो करता ही हूँ. सबको नमन.

Comment by AVINASH S BAGDE on October 12, 2012 at 7:05pm

अधर की लाली रहा था, गाल का अब तिल हुआ।।kya bat hai..wah.


प्रधान संपादक
Comment by योगराज प्रभाकर on October 12, 2012 at 10:52am

लाजवाब मुक्तिता आदरणीय आचार्य जी, दिल से बधाई.

Comment by SANDEEP KUMAR PATEL on October 12, 2012 at 9:19am

आदरणीय सलिल सर जी सादर प्रणाम
आपकी इस मुक्तिका ने मन मोह लिया
हर मुक्त द्विपंक्ति सुन्दर और सुगढ़ है
भाव शिल्प कथ्य सभी का सुन्दर समावेश किया है आपने
ह्रदय से बधाई इस अनुपम काव्य रचना हेतु


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on October 12, 2012 at 9:10am

कद्रदां दुनिया थी जब तक नाश्ते की प्लेट था।
फेर लीं नजरों ने नजरें, टिप न दी, जब बिल हुआ।।---मतलबपरस्त अहसान फरामोशी का अच्छा नमूना पेश किया ---बहुत ही अच्छी मुक्तिका मुझे तो ग़ज़ल लगी 

Comment by वीनस केसरी on October 12, 2012 at 1:00am

आदरणीय आचार्य जी कितना हसीन इत्तेफाक है कि अभी परसों ही सौरभ जी से आपका हाल चाल मालूम कर रहा था और उनसे निवेदन कर रहा था कि आपको यहाँ सक्रिय होने के लिए आपसे संपर्क करें और आज आप प्रकट हो गये
कहीं उन्होंने आपसे संपर्क तो नहीं किया या सच में यह महज इत्तेफाक है

तोड़ता था बेरहम अब, टूटकर चुपचाप है।
हाय रे! आशिक 'सलिल', माशूक का क्यों दिल हुआ?

इस शेर की तो जो तारीफ़ करू कम है
बेहद घिसी पिटी बात को आपने जिस बारीकी से नयेपन का जामा पहनाया है वह लाजवाब है
सादर

Comment by Er. Ambarish Srivastava on October 11, 2012 at 11:56pm

आदरणीय आचार्य जी, सादर प्रणाम !

आपके द्वारा रचित यह अनमोल मुक्तिका हमें बहुत  भायी! इसे हम सभी के मध्य साझा करने के लिए हार्दिक बधाई स्वीकारें !सादर  


मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on October 11, 2012 at 10:36pm

आदरणीय आचार्य जी, ओ बी ओ आपको और आपकी रचनाओं को सदैव मिस करता रहता है | आपकी यह रचना बहुत ही अच्छी लगी, उस्तादों वाली बात है इस अभिव्यक्ति में, बहुत बहुत बधाई स्वीकार करें |

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Admin replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-173
"स्वागतम"
17 minutes ago
Admin posted a discussion

"ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-173

आदरणीय साहित्य प्रेमियो, जैसाकि आप सभी को ज्ञात ही है, महा-उत्सव आयोजन दरअसल रचनाकारों, विशेषकर…See More
18 minutes ago
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . . विरह शृंगार
"आदरणीय चेतन जी सृजन के भावों को मान और सुझाव देने का दिल से आभार आदरणीय जी"
9 hours ago
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . . विरह शृंगार
"आदरणीय गिरिराज जी सृजन आपकी मनोहारी प्रशंसा का दिल से आभारी है सर"
9 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post दोहे -रिश्ता
"आ. भाई गिरिराज जी, सादर अभिवादन। दोहों पर आपकी प्रतिक्रिया से उत्साहवर्धन हुआ। स्नेह के लिए आभार।"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post दोहे -रिश्ता
"आ. भाई सुशील जी, सादर अभिवादन। दोहों पर उपस्थिति और प्रशंसा के लिए आभार।"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post दोहे -रिश्ता
"आदरनीय लक्ष्मण भाई  , रिश्तों पर सार्थक दोहों की रचना के लिए बधाई "
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . . विरह शृंगार
"आ. सुशील  भाई  , विरह पर रचे आपके दोहे अच्छे  लगे ,  रचना  के लिए आपको…"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post कहीं खो गयी है उड़ानों की जिद में-गजल
"आ. भाई चेतन जी सादर अभिवादन। गजल पर उपस्थिति के लिए हार्दिक धन्यवाद।  मतले के उला के बारे में…"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post कहीं खो गयी है उड़ानों की जिद में-गजल
"आ. भाई गिरिराज जी, सादर अभिवादन। गजल पर उपस्थिति के लिए आभार।"
yesterday
Chetan Prakash commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . . विरह शृंगार
"आ. सुशील  सरना साहब,  दोहा छंद में अच्छा विरह वर्णन किया, आपने, किन्तु  कुछ …"
yesterday
Chetan Prakash commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post कहीं खो गयी है उड़ानों की जिद में-गजल
"आ.आ आ. भाई लक्ष्मण धामी मुसाफिर.आपकी ग़ज़ल के मतला का ऊला, बेबह्र है, देखिएगा !"
yesterday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service