“मीत मन से मन मिला तू और स्वर से स्वर मिला,”
कर लिया यह कर्म जिस ने उस को ही ईश्वर मिला.
कांच की कारीगरी में जो निपुण थे साथियों,
आजकल उन के ही हाथों में हमें पत्थर मिला.
पेट भर रोटी मिली जब भूखे बच्चों को हुज़ूर,
सब कठिन प्रश्नों…
Added by लतीफ़ ख़ान on October 15, 2012 at 1:30pm — 15 Comments
Added by Er. Ambarish Srivastava on October 15, 2012 at 11:43am — 16 Comments
मैं निर्मल ,निःस्वार्थ
प्रस्फुटित हुआ
एक अभिप्राय के निमित्त
हर लूँगा सबका अभिताप ,व्यथा
अपनी अनुकम्पा से
अलौकिक अभिजात मलय
के आँचल की छाँव में
श्वास लेकर बढ़ता रहा
कब मेरी जड़ों में
वर्ण, धर्म भेद मिश्रित
नीर मिलने लगा
कब वैमनस्य ,स्वार्थ परता
की खाद डलने लगी
पता ही नहीं चला
विषाक्त भोजन
विषाक्त वायु ,नीर
से मेरे अन्दर कसैला
जहर भरता गया
फिर जो…
ContinueAdded by rajesh kumari on October 15, 2012 at 10:35am — 9 Comments
मुझको बता रहें हैं मेरी हद वो आजकल।
लगता है भूल बैठे हैं मक़्सद वो आजकल॥
उनका मुझे परखने का अंदाज़ देखिये,
लीटर से नापते हैं मेरा क़द वो आजकल॥
हल्के हवा के झोंके भी जो सह नहीं सके,
कहते फिरे हैं अपने को अंगद वो आजकल॥
रिश्तों की बात करते नहीं हैं किसी से अब
घायल हुए हैं अपनों से शायद वो आजकल॥
कल तक पकड़ के चलते थे जो उँगलियाँ मेरी
कहने लगे हैं अपने को अमजद वो आजकल॥
ख़ुद अपनी मंज़िलों की जिन्हें कुछ ख़बर नहीं,
पहुंचा रहे हैं औरों को…
Added by डॉ. सूर्या बाली "सूरज" on October 15, 2012 at 12:30am — 10 Comments
मानव मणि:
नर से नारायण - स्वामी विवेकानंद
संजीव 'सलिल'
*
'उत्तिष्ठ, जागृत, प्राप्य वरान्निबोधत।'
'उठो, जागो और अपना लक्ष्य प्राप्त करो।'
'निर्बलता के व्यामोह को दूर करो, वास्तव में कोई दुर्बल नहीं है। आत्मा अनंत, सर्वशक्ति संपन्न और सर्वज्ञ है। उठो! अपने वास्तविक रूप को जानो…
Added by sanjiv verma 'salil' on October 14, 2012 at 4:51pm — 4 Comments
सूरज ताप बढ़ाकर जो मरुभूमि धरा पर दृश्य दिखाता,
मानव अक्सर जीवन में यह रीत मिसाल बना भरमाता,
भाग रहा वह तेज भयंकर झूठ कहे फिर भी अपनाता,
हाथ न आय तहाँ वह रोकर व्याकुल नीर बहा पछताता/
Added by Ashok Kumar Raktale on October 14, 2012 at 1:00pm — 11 Comments
मेरे पास नहीं
बूढ़े बरगद सी बाहें
फैलाकर
जिन्हें अनवरत
बांट सकूं
छांह
धरती को चीरती
विकराल जड़ें -
गहराइयों की
लेती जो थाह
पास नहीं मेरे
पीपल का जादुई
संगीत
वो हरी- भरी
काया ,
वह पत्तों का
मर्मर गीत
कोई न
पूजे मुझको
पीपल, बरगद
के मानिंद
कंटकों से
पट गयी है
देह ऐसे-
निकट आते
हैं नहीं
खग वृन्द
मरुथली संसार में
रेत के विस्तार में…
Added by Vinita Shukla on October 14, 2012 at 12:30pm — 14 Comments
Added by SHARIF AHMED QADRI "HASRAT" on October 14, 2012 at 11:54am — 5 Comments
Added by Shubhranshu Pandey on October 13, 2012 at 9:30pm — 14 Comments
पिता की मृत्यु के चार वर्ष बाद बड़े लड़के निर्मल की शादी के समय छोटा भाई सबल 13 वर्ष का था । नयी बहु आये दिन साँस से झगडती रहती थी | निर्मल अन्दर से परेशान | भाई भाभी के बेरुखे व्यव्हार से और गलत संगत के कारण सबल देर रात तक आने लगा |एक दिन निर्मल ने अपने जीजा को कहने लगा "जीजाजी मेरी पत्नी को न मै समझा सकता हूँ, और न ही उसको डांटकर अशांति फैलाना चाहता हूँ" | परेशान हो माँ ने अलग रसोई करने का निर्णय स्वीकार कर लिया |
माँ को अल्प पारिवारिक पेंशन से अपना और छोटे लड़के सबल का निर्वाह…
Added by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on October 13, 2012 at 3:30pm — 7 Comments
स्वात घाटी की निर्भीक बेटी मलाला को समर्पित
सुन्दरी सवैया
अधिकार मिले सब शिक्षित हों बिखरे चहुँ ओर हि ज्ञान उजाला.
लड़ती जब जायज़ घायल क्यों सुकुमारि दुलारि पियारि 'मलाला'.
सब…
ContinueAdded by Er. Ambarish Srivastava on October 13, 2012 at 3:00pm — 20 Comments
ऐतिहासिक इमारतों में कितना आकर्षण समाया है. इक पूरी ज़िंदगी और ज़माने का कोई थ्री डी अल्बम हों ये जैसे. ख्यालों की लम्बी दौड़ लगानेवालों के लिए गोया ये फंतासी, रूमानियत, त्रासदी, और न जाने किन किन रंगों के तसव्वुरात की कब्रगाह या कोई मज़ार हैं ये इमारतें.
ज़िंदगी जीते हुए जितनी हसीन नहीं लगती उससे कहीं अधिक माजी के धुंधले आईने में नज़र आती है. जैसे गर्द से आलूदा किसी शीशे में कोई हसीन सा चेहरा पीछे से झांकता नज़र आ जाए और हम खयालों में मह्व (खोए), हौले से अपनी उंगुलियाँ आगे…
ContinueAdded by राज़ नवादवी on October 13, 2012 at 11:19am — 10 Comments
(1)
(तालिबानी फरमान न मानने वाली छात्रा बिटिया मलाला को समर्पित)
सुंदरी सवैया
उगती जब नागफनी दिल में, मरुभूमि बबूल समूल सँभाला ।
बरसों बरसात नहीं पहुँची, धरती जलती अति दाहक ज्वाला ।
उठती जब गर्म हवा तल से, दस मंजिल हो भरमात कराला ।
पढ़ती तलिबान प्रशासन में, डरती लड़की नहीं ढीठ मराला ।।
(2)…
ContinueAdded by रविकर on October 13, 2012 at 8:30am — 12 Comments
खूबसूरत दृश्य
हम गढ़ते रहे,
शब्द चित्रों की
सफलता के लिए |
शहर धीरे धीरे
बन बैठा महीन
दिख रहा है हर कोई
कितना जहीन
गाँव दण्डित है
सहजता के लिए || १ ||
घर की दीवारों
में हाहाकार है
लक्ष्मी का रूप
अस्वीकार है
कौन सोचे
नव प्रसूता के लिए || २ ||
जब से हम सब
खुद पे अर्पण हो गये
बस तभी शीशा से
दर्पण हो गये
या सुपारी हैं
सरौता के लिए || ३ ||…
Added by वीनस केसरी on October 13, 2012 at 1:00am — 6 Comments
Added by ajay sharma on October 12, 2012 at 5:30pm — 1 Comment
कितनी ख़ास ओ आम ज़िन्दगी
Added by ajay sharma on October 12, 2012 at 5:21pm — 3 Comments
तालाब में मगरमच्छ
शिकार की तलाश में हैं
गिरगिट अपना रंग बदले
दबे पाँव जमे हैं
मकड़ियाँ जाल बुनने में
व्यस्त हैं ।
इन सबके बीच
फूलों को फर्क नहीं पड़ता…
ContinueAdded by नादिर ख़ान on October 12, 2012 at 4:00pm — 2 Comments
======ग़ज़ल=======
बह्र ए खफीफ
वजन- २ १ २ २ , १ २ १ २ , २ २
यूँ बिछड़ने की ये अदा कैसी
इक मुलाक़ात की दुआ कैसी
जख्म दिल के हमारे भरने को
चश्म छलका रहे दवा कैसी
रात…
Added by SANDEEP KUMAR PATEL on October 12, 2012 at 3:38pm — 9 Comments
Added by MARKAND DAVE. on October 12, 2012 at 9:00am — 6 Comments
देख पिया को सम्मुख,मन हर्षाय,
देखे मुख को गौरी,नयन घुमाय/
पागल प्रेम दिवानी,पिया रिझाय,
सुधबुध खोकर अपनी,झूमति जाय/
हाथ धरे कभी शीश,चुमती जाय,
बनी मतवाली रीझ,घुमती जाय/
मुस्काय दिल पर हाय,घाव लगाय,
व्याकुल मनवा थिरके,चैन न पाय/
प्रेम पगे दिल आयी,मिलन कि चाह,
प्रेम बिना सूझे नहि, दूजी राह/
Added by Ashok Kumar Raktale on October 11, 2012 at 11:14pm — 17 Comments
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